कमीने दोस्त
कमीने दोस्त
चाहे! जिंदगी में दोस्त कम बनाओ, लेकिन बेशक कमीने बनाओ।
एक बार हम चार दोस्त ( मैं, नरेन, हरी और कपिल।) स्कूल बंक करके मेला देखने चले गए।
मेरे दो दोस्त (नरेन और हरी) कमीने थे, मैं और कपिल थोड़ा डरते थे।
लेकिन वो दो कभी नहीं डरे।
हम दोनों को उकसाकर ले गए।
हम भी तैयार थे, क्योंकि आज तक कभी भागे ही नहीं थे आज भागकर देखना था कि क्या होता है।
हम मेले में चले गए और पता ही नहीं चला कि स्कूल की तो छुट्टी हो चुकी हैं। हमें पता तब चला, जब वहां हमारे गुरुजी अपने परिवार के साथ पहुंचे।
हम चारों को स्कूल यूनिफॉर्म में देखकर बोले - "कमीनो ड्रेस तो बदल लेते।"
हमें हंसी आ गई।
सुबह प्रार्थना सभा में पहुंचे तो गुरुजी ने कहा कि - शिशपाल, हरी, नरेन और कपिल तो कल मेला देखने गए थे बड़ा मज़ा आया होगा ।
मेरी चिकोटी काटकर बोले - क्यों चिनियां।
हमें लगा सब सेट हो गया है।
लेकिन जब कक्षा में प्रवेश किया तो कक्षाध्यापक जी ने बाहर निकाल दिया।
कक्षाध्यापक - "अपने-अपने अभिभावक को बुलाकर लाओ। अन्यथा कक्षा में प्रवेश नहीं करने दूंगा। और तो और आज का टेस्ट बकाया रखकर, प्रिंसिपल सर से शिकायत करूंगा।"
काफी देर तक हम वाल्मीकि की लिखी गई रामायण की तरह सुन रहे थे, फिर दो दो चपेट खाकर बाहर आ गए।
अब करें भी तो क्या, क्लास में तो प्रवेश निषेध हैं।
हम तो चोर जो ठहरे, स्कूल से बाहर आकर एक तरकीब सोची कि क्यों न आज गुरुजी के द्वारा की गई बेइज्जती का बदला लिया जाए और गुरुजी को बेवकूफ बनाया जाए।
बाहर एक पेड़ था वहां जाकर बैठ गए और 2 घंटे बाद वापिस
चारों स्कूल पहुंचे और बोले -
अभिभावकों ने मोबाइल नंबर दिए है बात कर लो, कहकर चारों ही जल्दी से निकल पड़े।
और स्कूल के बाहर उसी पेड़ के नीचे बैठ गए।
हमने जो नंबर गुरुजी को दिए थे वो चारों फोन हमारे पास थे।
गुरुजी ने जस्ट फोन किया, हमने पहले तो काट दिया ।
क्योंकि किसी की हिम्मत नहीं थी कि गुरुजी से बात कर सके।
दुबारा फोन आया तो चारों ने आपस में बात कर ली।
वो भी एक दूसरे के अभिभावक बनकर।
गुरुजी को शक तब हुआ, जब चारों के अभिभावक एक ही जवाब दे रहे थे -
“कि कल स्कूल में प्रवेश करने देना गलती हो गई। आगे नहीं होगी।”
गलती से एक दोस्त ने यह भी कह दिया कि, “क्या फ़र्क पड़ता शरारत तो करेंगे ही।"
अब 10 वीं के छात्रों को कौन कहेगा कि शरारत करेंगे।
रही कही में जो गुरुजी मेले में मिले थे उन्होंने कह दिया कि कल चारों बिना स्कूल ड्रेस बदले मेले में घूम रहे पागलों की तरह।
अब हमारी खटिया खड़ी हो गई।
जब वापिस स्कूल पहुंचे तो गुरुजी ने कहा - “बेटा शिशपाल एक मोटा और लंबा तगड़ा मजबूत डंडा लेकर आ। इन तीनों को मारेंगे। तेरी तो कोई गलती नहीं है, क्योंकि तुम्हें तो ये फुसलाकर ले गए थे।”
मैं खुशी खुशी में एक मजबूत सा डंडा ले आया।
गुरु हमेशा गुरु होता है।।
हमें कहा गया, जो जिसके जितनी जोर से मारेगा उसे घर की शिकायत से वंचित किया जाएगा।
अब स्कूल की मार काफी थी और घरवालों से पीटना कोई नहीं चाहता था तो आपस में बेहद खूबसूरत डंडे बरसाए।
अंत में हमें घर भेज दिया।
लेकिन जब दूसरे दिन सुबह स्कूल में मिले तो चारों के लफ्ज़ एक ही थे।
“तेरे पापा ने तुझे कितना पीटा।”
उस दिन कसम खा ली थी कि कभी कमीनो के साथ स्कूल बंक नहीं करूंगा।