कलुषित
कलुषित
"इस लड़की से ब्याह तो कर लिया तुमने। अपने मन की भी कर ली तुमने। अब मेरी सुनो और इस लड़की को लेकर अभी मेरे घर से चले जाओ"-बिना आशीर्वाद दिए अपने पैर पीछे खींचते हुए अम्मा जी ने अपने लाडले बेटे अनिल को घर से चले जाने को कहा।तुमने हमारे कुल पर दाग लगा दिया।
"इसे छूने भर से ही हम सब का जीवन कलुषित हो जायेगा और ये हमारे कुल की बहू बनने का सोच भी कैसे सकती है?"-बड़ी बहू नीमो चिल्लाई।
अनिल ने कॉलेज में अपने साथ पढ़ने वाली एक अछूत लड़की से ब्याह रचा लिया था।इस ब्याह से घर में कोई भी खुश नहीं था।अनिल को ये भली प्रकार पता था कि उसका दकियानूसी परिवार इस विवाह को कभी स्वीकार नहीं करेगा लेकिन अनिल पढ़ा-लिखा नए विचारों वाला लड़का था। लाडो पढ़ी-लिखी खूबसूरत लड़की थी जिससे अनिल ने विवाह किया था।
अम्मा जी की बात को मानने में और अपनी पत्नी लाडो के प्रति अपने कर्तव्य के भँवर में फँसा अनिल बुझे मन से लाडो को साथ ले घर से निकल गया।
दोनों के जाते ही अम्मा जी दहाड़ें मार कर रोने लगीं।
ऊपर छज्जे में खड़ी बड़ी बहू नीमो अनिल और लाडो को घर छोड़कर जाता देख ख़ुशी से फूली न समा रही थी। अचानक ध्यान बंटते ही नीमो की गोदी से उसकी छः महीने की बच्ची छिटक कर नीचे गिर गयी। अनिल का हाथ छिटक कर लाडो ने किसी तरह उस बच्ची को अपनी बाहों में कसकर लपक लिया और बच्ची के साथ जमीन पर औंधे मुहँ नीचे गिर गयी।
नीमो चीखती हुई नीचे भागी और लाडो की गोद से बच्ची को लेकर अपने सीने से लगा लिया। शोर सुन कर अम्मा जी भी बाहर भागीं और बच्ची को गोद में लिया।
"अरे ! भला हो अनिल की बहू का जिसने हमारी बच्ची को बचा लिया "-रोते -रोते अम्मा जी बोलती जा रही थीं।
तभी कोने में खड़ा नौकर शम्भू बोला -"पर अम्मा जी बच्ची को तो लाडो भाभी ने छू लिया है और बच्ची को आपने और बड़ी बहू ने।
नीमो और अम्मा जी खिसियाते हुए शम्भू को घूरने लगीं।