Deepa Dingolia

Drama

5.0  

Deepa Dingolia

Drama

अबकी बार का "बसंत"

अबकी बार का "बसंत"

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छोटा सा जमीन का टुकड़ा हरी के जीवन का वाहिद सहारा था। जिस पर खेती-बाड़ी करता था हरी। घर में पत्नी रामो ,दो लड़के और एक 15 साल की बेटी लाली थी। बच्चों की उम्र में बहुत फासला था। लड़के काफी बड़े थे और गाँव की जिंदगी से ऊब कर व गरीबी से तंग आकर दोनोंअपने परिवारों के साथ शहर चले गए थे। 

कई साल से हरी मेहनत कर रहा था पर जमीन पर कुछ भी नहीं उग रहा था। खाने के लाले पड़े थे। रामो रोज़ाना जमीन बेचने को कहती। मेहनत मजदूरी कर हरी किसी तरह गुजारा कर रहा था। पर उसका मन अपनी जमीन से ही लगा था।

"बंजर हो गयी है अब ये ज़मीन। कुछ न देगी ये अब। मेरी मानो इसे बेच दो।अब तो दो-चार पैसे मिल भी जाएंगे। वरना हाथ मलते रह जाओगे। कोई खरीदार भी न मिलेगा और न ही इस पर कुछ पैदा होगा"-रामो रोज़ाना यही गाना गाती।

हरी का विश्वास भी अब जमीन पर कम होने लगा था। शाम को खेत से वापस आया तो बैकुंठ को अपने घर की ड्योढ़ी पर बैठे देखा।

"कैसे आये बैकुंठ ?"

"वो चची ने बुलाया था। कह रहीं थीं कि खेत वाली जमीन बेचना चाह रहे हो तुम चाचा। कितना दाम लगाया है ?"-बैकुंठ ने पूछा। 

"जमीन में मेरे प्राण हैं। अगर बेच दूँगा तो जी न पाउँगा भैय्या। पर घर वाले मेरे पीछे पड़े हैं। बीवी-बच्चे सब पीछे पड़े हैं "-ठंडी साँस भरकर हरी ने उदास होते हुए कहा।

"अरे ! बैकुंठ तुम ज्यादा से ज्यादा मुनाफा करा दो। ये तो हमें गरीबी में ही मार देंगे। लड़के तो चले गए अब लड़की भी जवान हो रही है। इन्हें कुछ चिंता नहीं। तुम लाला के मुनीम को ले आना और जमीन के कागजात ले जाना"-हरी की पत्नी रामो निराश व बुझे मन से बैकुंठ से बोली।

दरवाजे के पीछे खड़ी बेटी लाली सब सुन रही थी। भागी हुई हरी के पास पहुंची और रूआँसी होते हुए बोली-"बाबा ये जमीन मत बेचो।आज नहीं तो कल ये फसल देगी बाबा। आप अम्मा को रोक लो "

"हाँ बिटिया। सोना उगलती थी मेरी मिटटी। तुम परेशान मत हो। जो भगवान् को मंजूर"-हरी के भी आँसू बहने लगे। 

"चची कहाँ हो ? मुनीम जी आये हैं। जमीन के कागज़ ले आओ"-बैकुंठ की आवाज़ आयी।

"हाँ हाँ अभी लायी। ये लो कागज। अच्छी तरह जांच-पड़ताल कर लो। अगले हफ्ते तक हमें पैसे दे देना मुनीम जी "- रामो ने कहा। कागज़ ले बैकुंठ और मुनीम जी चले गए। 

अचानक रात को दरवाजा बजा। लाली ने खोला तो दोनों भाई सामने खड़े थे। 

"तुम यहाँ कैसे ? हरी ने कहा। 

" माधो से पता चला कि जमीन बिक रही है।इसलिए हमारा हिस्सा हमें दे दो हम फिर चले जायेंगें"-दोनों ने बड़ी ही ढिठाई से कहा।

 हरी का मुहँ पीला फक्क पड़ गया। 

आज की रात आखिरी रात और सुबह जमीन बिक जायेगी। मेरी जमीन…इसके बिना कैसे रहूँगा मैं… यही सब सोचते हुए हरी का कलेजा मुँह को आ रहा था और सुबकते हुए उसकी आँख लग गयी। 

सुबह -सुबह बैकुंठ मुनीम जी के साथ पैसे लेकर पहुँच गया। 

"चची जरा चाचा को बुला लाओ। हाँ चाचा ! ये लो रुपये और अब जमीन हमारी हुई”- बैकुंठ बोला |

दोनों लड़के भी पहुँच गए और हरी के हाथ से रुपये का बंडल छीनने लगे।

"अरे रुको तुम -रामो बोली। रुपये मुनीम जी से लेकर रामो ने हरी को दिए। 

जैसे ही हरी अपने काँपते हाथों से रुपये पकड़ने लगा तभी लाली भागती हुई आयी और चीख-चीख कर ख़ुशी के मारे हरी से लिपट गयी और बोली -"बाबा बाबा- जमीन पर कपोलें फूट रहीं हैं" और हरी का हाथ पकड़ खींच कर खेत की ओर ले दौड़ी ।

रुपये जमीन पर गिर गए। रोमा मुनीम के हाथ से जमीन के कागज़ ले लाली और हरी के पीछे-पीछे दौड़ पड़ी ।  

दोनों लड़के, बैकुंठ,मुनीम जी बुत बने खड़े रह गए।

आसमान की और देख कर मुनीम जी बोले -"अबकी बार का "बसंत" शुभ हो गया हरी के लिए भई । चल-चल बैकुंठ, अब कोई फायदा नहीं यहाँ रुकने का। 


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