बेवकूफ
बेवकूफ
पति देव बोले -"बाजार जा रही हो तो बेटे को भी साथ ले जाना।"
"लेकिन क्यूँ ?"- मैंने पूछा।
"पता तो है तुम्हें किसी की भी बात में आकर बेवकूफ बन जाती हो और फिर जाने क्या - क्या ले आती हो।"
" हाँ- मम्मी पापा सही कह रहे हैं। मैं भी आपके साथ चलूँगा"- बेटा बोला।
मैंने स्टोर से कुछ सामन लिया और पैदल ही घर की ओर चलने लगी। मेरा आठ साल का बेटा भी मेरे साथ- साथ चल रहा था।
"आंटीजी ..आंटी जी. . . एक बार बस एक बार देख लो "-पीछे से आवाज आयी।
पलट कर देखा तो दस - बारह साल की लड़की छोटे से मिट्टी के कटोरे में बहुत ही खूबसूरत पौधा लेकर खड़ी थी। ऐसे कई खूबसूरत पौधे उसके पास थे।
"आंटी जी प्लीज एक ले लीजिये।"
बेटा तुनक कर बोला - "नहीं... हमें नहीं चाहिए। मम्मी- चलो पापा डांटेंगे।"
मैंने उससे पूछा कि - "ये कहाँ से लायी हो ?"
उत्सुकता से उसने बताया कि- ये उसने खुद बनाये हैं।
मैंने आश्चर्य से कहा -"लेकिन ये मिटटी के कटोरे कहाँ से लायी हो ? "
उसने बताया -" आंटी जी नवरात्रि का त्यौहार ख़तम होने के बाद लोग ये कटोरे शहर के बाहर नदी में डालते हैं। वहीं से मैं साफ़ करके इनमे छोटे -छोटे पौधे लगाकर लोगों को बेच देती हूँ। ये घर की सुंदरता तो बढ़ाते ही हैं साथ ही वातावरण भी स्वच्छ रखते हैं। आंटी जी प्लीज -आप भी ले लो ना।"
अच्छा चलो -"दो पौधे मुझे भी दे दो। कितने का है ?"- मैंने कहा।
"आंटी जी - वैसे तो बीस रुपये का है पर आपको पंद्रह का दे दूंगीं ।"
उसे मैंने चालीस रुपए दिए और जल्दी से घर की ओर चल दी।
घर में घुसते ही पति बोले - "अब ये क्या ले आयीं ? "
बेटे ने बताया - "पापा चालीस रुपये में लिये हैं मम्मी ने।"
वो जोर से हँसे और बोले -"फिर बेवकूफ बना दिया किसी ने तुम्हारी मम्मी को ।"
मैं मुस्कुराते हुए रसोई में चाय बनाने लगी और खुद से बोली- हाँ मैं बेवकूफ हूँ।