भूरी
भूरी
भूरी गाय करीब आठ-दस साल से इसी मोहल्ले में घूम रही थी।
बच्चा-बच्चा उसे प्यार करता था। कोई घर ऐसा नहीं था जहाँ से भूरी को खाने के साथ प्यार न मिलता हो।
भूरी सारे मोहल्ले में घूम-फिर कर आमना के घर के आगे खड़ी हो जाती थी। आमना उसे गरमा-गरम रोटी और मुलायम चारा खाने को देती।
रोज़ की तरह आज भी भूरी आमना के घर के सामने आकर खड़ी हो गयी। कई घंटे बीत चुके थे पर आमना के घर से कोई बाहरनहीं निकला था।
भूरी को रात को हुए झगडे के बारे में कुछ पता नहीं था। भूरी बिलकुल अनजान थी कि अब इस घर से कोई बाहर नहीं आएगा। बीती रात घर के लोग झगड़े की भेंट चढ़ चुके थे।
लेकिन भूरी के लिए तो सबका प्यार और सबकी रोटी का स्वाद एक सा ही था। उसका धर्म सिर्फ प्यार लेना और देना था।