कबाड़
कबाड़
"मम्मा अपना पर्स साफ़ कर लो। बहुत ही कबाड़ा भर रखा है आपने..."-मेरी बेटी ने कहा।
"कल कर लूंगी। अब मैं थक गयी हूँ..."-मैंने सोते हुए कहा।
सुबह बहुत देर से ऑफिस के लिए कैब ट्राय कर रही थी। तभी कैब के लिए पूल का ऑप्शन लिया जो मैं बिलकुल पसंद नहीं करती थी। अनजान लोगों के साथ ट्रेवल करना मुझे ज़रा भी अच्छा नहीं लगता था। खैर कैब के लिए 2 मिनट बाद गेट पर पहुँची।
कैब में कोई नयी नवेली शादीशुदा 20-22 साल की लड़की बैठी थी। मैं भी अंदर बैठी और कैब चल पड़ी। हम दोनों ने एक-दूसरे को स्माइल किया और चुपचाप बैठ गयीं। थोड़ी देर बाद उसका फोन बजा। दूसरी तरफ किसी लड़के की जोर-जोर से चिल्लाने की आवाज़ आ रही थी। पर सुनाई कुछ भी नहीं दिया था। फोन बंद होते ही वो डरी-सहमी सी ड्राइवर से बोली-"भैय्या थोड़ा जल्दी ले लो। हमारी तरफ दंगा भड़क गया है। मेरे हस्बैंड का ही फोन था।"
अभी कैब उसके मोहल्ले पहुंची भी नहीं थी अचानक सामने से लोगों का झुंड आता दिखा। वो लड़की जोर-जोर से रोने लगी कि आज नहीं बचूँगी मैं। मेरी भी जान सूख गयी। आज तो मैं भी इन लोगों के हाथों मारी जाऊंगी।
भीड़ को देखते ही मुझे समझते देर नहीं लगी। भीड़ के कैब के नजदीक पहुँचने से पहले ही मैंने अपना पर्स खोलकर कबाड़ में से किसी तरह ढूँढ कर एक बिंदी निकाल कर उसके माथे पर लगा दी और अपनी लिपस्टिक से उसे अपनी मांग में निशान लगाने और सख्ती से बिल्कुल चुप रहने को कहा।
कैब के नजदीक आकर एक लड़के ने शीशा नीचे करने को कहा।
"ये साथ में कौन हैं आपके?"- उसने मुझसे पूछा।
"ये मेरी छोटी बहन है।"
"क्या नाम है तुम्हारा?"-उसने कड़कती आवाज में उस लड़की से पूछा।
उस लड़की ने मेरा हाथ कसकर पकड़ लिया। उसका जिस्म ठंडा पड़ चुका था।
"ये गूँगी है। बोल नहीं सकती। अभी नयी-नयी शादी हुई है इसकी। इसे इसके सुसराल छोड़ने जा रही हूँ मैं।"-मैंने झट से कहा।
"ठीक है।"-उसने लड़की के माथे और मांग को घूरते हुए हमें आगे जाने को कहा। भीड़ आगे बढ़ गयी।
कैब के चलते ही उसने अपने पति को फोन कर मोहल्ले के दूसरी तरफ आने को कहा।
सामने एक खूबसूरत सा नौजवान खड़ा दिखा। कैब के रुकते ही वो हमारी तरफ भाग कर आया।
"मीना तुम ठीक हो न।"
"हाँ इन दीदी की वज़ह से मैं बिल्कुल ठीक हूँ।"- और अपने पति से लिपट गयी।
मीना के बदले रूप को देख वो सब समझ गया और मेरे पैरों में गिर पड़ा। मैंने उसे प्यार से उठाया और मीना को ध्यान से साथ ले जाने को कहा। कैब आगे बढ गयी।
अच्छा ही हुआ जो मैंने पर्स साफ नहीं किया। आज पहली बार मुझे अपने पर्स के कबाड़ में पड़ी चीज़ों का मूल्य पता चला। मैं तो इन्हें सिर्फ साज-श्रृंगार का सामान ही समझती थी।