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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Inspirational

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Inspirational

किससे लिया बदला ?

किससे लिया बदला ?

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रात्रि दो बजे का समय था, मैं सोई हुई थी, तब ड्रॉइंग रूम में शोर से मेरी नींद खुली थी। मैं बिस्तर छोड़ बाहर आई थी। दृश्य, दुःखदाई था, मम्मी के गोरे गाल पर हाथों की अँगुली लालिमा लिए उभरी हुईं थीं। प्रतीत हो रहा था, पापा ने उन्हें मारा था। 

सिसकते हुए वे कह रहीं थीं- बाहरी औरतों के साथ सोने का बुरा काम करके आते हो, मेरी आपत्ति जताने पर घर आकर, मुझे पीटने का एक और बुरा काम करते हो। कैसे आपकी अंतरात्मा गवारा करती है ?

पापा शराब के नशे में दिखाई पड़ रहे थे, आग बबूला होकर उन्होंने कहा था - चुप कर, आगे कभी, मुझ पर आपत्ति दिखाने की दोबारा कोशिश न करना, तुझे और दोनों बेटी का गला दबा दूँगा, समझी ?

यह सुन में बुरी तरह सहम गई थी। मैंने, अपने को दरवाजे के पीछे छिपा लिया था। फिर, बिना आहट किये में अपने बिस्तर पर लौटी थी। जहाँ मेरी चार वर्षीया छोटी बहन अनु, गहन निद्रा मग्न सो रही थी। मैंने, खुद को उसके बाजू में लिहाफ़ में समेटा था।

आज से, लगभग चालीस वर्ष पूर्व, मेरी आयु तब आठ वर्ष थी। उस रात देर तक मेरी नींद नहीं लगी थी। मेरे पापा, मुझे एवं अनु को बहुत लाड़-प्यार करते थे। नित नए नए वस्त्र और खिलौने लाते थे। हम दोनों भी पापा को बहुत चाहते थे, लेकिन उस रात मुझे वे बहुत डरावने लगे थे। मुझे यूँ प्रतीत हो रहा था, जैसे अब तक हम किसी खतरनाक राक्षस की गोदी में खेलते रहे थे।

अगली सुबह रोज की तरह, मम्मी ने हमें जगाया नहीं था। जब नींद खुली तो देर हो चुकी थी। उस दिन हम स्कूल न जा सके थे। घर का माहौल बोझिल था। सब चुप-चुप से दैनिक कर्म में लगे थे। पापा, ग्यारह बजे करीब चले गए थे। माँ, दिन भर रुआँसी सी रहीं थीं। हमारे या सर्वेंट्स के सामने सामान्य दिखने की कोशिश करतीं रहीं थीं। केवल आवश्यक शब्द कम से कम ही कह कर काम चलाती रहीं थीं।

यह रात और यह दिन तबसे अब तक मेरे ह्रदय पटल पर स्पष्ट अंकित रहा था। मेरी मम्मी या पापा ने कभी जिक्र नहीं किया था। मैं भी इतनी घबराई रही थी कि मैं मम्मी से पूछने की हिम्मत न कर सकी थी। मम्मी ने भी हमें कभी बताया न था। शायद, बताकर पापा के प्रति हमारे मन में आदर और प्यार को वे कम नहीं होने देना चाहती थीं।

बाद के जीवन में हमें सारी सच्चाई ज्ञात हुईं थीं। हमारे पापा, तब सिने जगत के मशहूर अभिनेता थे। वे सिनेमा में उनके साथ काम करने वालीं कई अभिनेत्री/ अन्य आर्टिस्ट से संबंध रखते थे।

मेरी मम्मी, उन किसी अभिनेत्री से सुंदरता में कम नहीं थीं। मुझे, बाद में पता चला था, कि किसी पुरुष के लिए, घर पर बैठी समर्पित-सुंदर पत्नी से ज्यादा अहमियत उस साधारण किसी स्त्री की होती है, जो उसके लिए हर समय उपलब्ध नहीं।

15-16 वर्ष की उम्र में जब मुझे यह कटु सच्चाई अनुभव हुई तो, मैंन'किसी की पत्नी नहीं बनूँगी' यह तय कर लिया था। एक विचार और मेरे दिमाग पर हावी हुआ था कि मैं, अपने पापा से बदला ले कर रहूँगी। मेरी मम्मी को उन्होंने मानसिक रूप से जितना सताया था। मैं, उन्हें उससे ज्यादा सताऊँगी।

मैंने देखा एवं अनुभव किया था, धन-वैभव में एक से एक कीमती आभूषण-परिधानों में सुसज्जित दिखने वाली मेरी मम्मी, रात्रि पार्टियों में आकर्षक मुस्कान लिए तो मेरे पापा के साथ नज़र आती थीं मगर उनका दिल सदा रोता रहता था। हम बच्चों पर प्रभाव बुरा न पड़े इस लाचारी में उनके ओंठों तक उनकी कटु सच्चाई कभी न आई थी।

मेरे पापा की किस्मत का सितारा फिर अस्त होने लगा था, उनकी, की फ़िल्में ज्यादा व्यवसाय न कर रहीं थीं, जिससे, उनको मिलने वाला लगातार कम होते जा रहा था।

मैं, तब 19 वर्ष की हुई थी। मैंने, अपने पापा के नाम के बल पर गोपनीय तरीके से मूवीज़ में रोल तलाशने शुरू किये थे। पापा  के नाम का प्रयोग निर्माताओं पर, जब ज्यादा कारगर नहीं हुआ, तब मैंने अपने देह के जलवों का प्रयोग किया था। इससे मैं 1 बड़ी बजट की फिल्म में लीड रोल लेने में सफल हुई थी।

पापा को जब पता चला तो उन्होंने घर में हंगामा खड़ा किया। निर्माता पर दबाव बनाया कि मुझे हटाये। लेकिन पापा के रौब दाब का दौर, पुराना पड़ चुका था, काम नहीं आया था।

 मुझ पर पापा ने जबरन अपनी मनाही लादने की कोशिश की तो मैं, मम्मी और अनु के साथ अलग किराये के फ्लैट में, जो निर्माता ने अरेंज करवा दिया था, में रहने लगी थी। मेरी मम्मी चुप रहते, दबाव सहते अब तक भाव शून्य सी हो चुकी थीं।

मेरी पहली फिल्म, जब प्रदर्शित हुई तो मेरे खुले देह प्रदर्शन के कारण रिकॉर्ड तोड़ बिजनेस देने में सफल हुई थी। उसे देख, पापा के तन बदन में आग लग गई थी। एक दिन वे मेरे फ्लैट पर आये, बहुत गाली गलौज की, मुझसे कहा, यह विचार कर शर्म आती है कि तुम मेरी बेटी हो!

मैं, उनसे बदला लेने को उतारू थी। मैंने जबाब दिया था - आप, जब अपनी सह अभिनेत्रियों और जूनियर आर्टिस्ट, जो किसी की बेटियाँ थीं, के साथ अपनी रातें रंगीन करते थे और मम्मी पर जुल्म करते थे, तब आपकी यह शर्म कहाँ थी ?

आपने, अपने प्रभाव में, अन्य घरों की बहनों-बेटियों का जिस प्रकार दैहिक शोषण किया है, अपने साथी कलाकारों के साथ लिव इन रिलेशन में रहते या किसी रात उनके साथ बिस्तर शेयर करते हुए उस पाप को मैं धोऊँगी।

मेरा उत्तर सुन वे असहाय, अपमानित हो लौटे थे।

तब मेरी बहन अनु तब फूट फूट कर रोई थी। घर में वही थी, जिसकी संवेदना पापा के साथ थी। जो स्कूल में पढ़ते समय से ही, मुझसे तर्क करती थी। कहती, पापा के प्रशंसकों का विशाल समूह, इस बात का ध्योतक है कि अन्य लोगों की तुलना में वे ज्यादा प्रतिभाशाली हैं। उनके साथ एक ही चीज की कमी है कि वे किसी घटना/बात से सद्प्रेरणा ग्रहण नहीं का सके हैं। मैं तब, उसकी बातों को अनसुना कर देती थी।

कोई दस बरस और बीते थे। लोकप्रियता, ख्याति की बुलंदी और युवावस्था की रंगीनयाँ तब तक, मेरे पापा की ज़िंदगी से पूरी तरह विदा ले चुकीं थीं। वे अकेले में अपने भव्य अतीत की याद करते हुए दिन रात शराब पीते, नशे में चूर रह कर बुरे वर्तमान को सहते हुए, गंभीर रोग के शिकार हुए थे।

इस बीच अनु अपनी प्रतिभा के बल पर डॉक्टर हुई थी। उसने अपने स्कूल के सहपाठी, रोहित से विवाह कर लिया था, जो धनवान व्यवसायिक परिवार में बेटा था।

फिर एक दिन पापा, तन्हाई में इस दुनिया से विदा हुए थे।

उनकी अंत्येष्टि में, हम मम्मी सहित शामिल हुए थे। तब, न जाने कहाँ कहाँ से निकल उनके पूर्व प्रशंसकों का सैलाब उन्हें श्रध्दा-सुमन अर्पित करने आया था।

उनकी मौत का दुःख भी था, मगर एक तरह से मैं संतुष्ट भी हुई थी। मेरी माँ के जीवन पर ग्रहण बने, काला सूरज अस्त हुआ था। फिर भी मेरी माँ की आँखों में आँसू झिलमिलाये थे।

अनु बिलख बिलख रोई थी उनकी तस्वीर के सामने खड़े हो कहती थी- पापा, आपके जाने से ज्यादा वेदना मुझे यह बात देती है कि आप अपनी मिली प्रतिभा का उपयोग, समाज को सुपथ प्रशस्त करने वाले प्रतीक बनने में नहीं कर सके, जो आप चाहते तो करने में सफल होते। काश, पापा, मुझे आप सी योग्यता/प्रतिभा मिलती, मैं दिखाती ऐसा करके, जिससे मेरी पीढ़ी को गर्व होता कि वह मेरी समकालीन हुई।

इधर मेरे लिए, जीवन के एक बड़े उद्देश्य की पूर्ति तो हो गई थी। लेकिन उसके लिए अख्तियार रास्ते की, बुराई मेरी आदत हुयी थी। मैं, शराब, पार्टी और खुले दैहिक संबंधों की दिनचर्या में ही अपनी ज़िंदगी बिताते चली गई थी।

काल परिवर्तन के साथ अब-

पिछले महीने, मेरी मम्मी स्वर्ग सिधार गई है। मुझे दुःख हुआ है, उनका पूरा जीवन, कामुक-नशेड़ी पति के अधीन वैभव-सुविधा सुसज्जित बँगले में कुंठाओं में बीत गया था।

उनके जाने पर मैं व्यथित हूँ। अब, मेरी दृष्टि स्वयं मेरे जीवन पर गई है।अनु, के कथन भी मेरे स्मरण में आये हैं। पापा के हश्र की कहानी मुझे, मेरे साथ दोहराये जाते प्रतीत हुई है। उम्र के इस पड़ाव में मेरे जलवों की ताकत खोने लगी है। धन-वैभव तो बहुत है, मगर साथ को लालायित भीड़ कम हो गई है।

ऐसी परिस्थिति में, मैंने अब घर से बाहर निकलना बंद कर दिया है। कुछ दिन के चिंतन-मनन के उपरान्त, नशे और रात्रि पार्टियों की दिनचर्या एक झटके में त्याग दी है। शायद यह, मेरी मम्मी के प्रति श्रध्दांजलि है। मुझे समाज दायित्व बोध की चेतना आई है।

अब मैंने, इतिहास साहित्य पढ़ना, दिनचर्या बनाई है। इनसे मेरे ज्ञान चक्षु खुले हैं। मैं आज की वास्तविकता देख पा रही हूँ।

मैंने लगभग सौ वर्ष पूर्व के समाज का अध्ययन किया है। जन जीवन, जिसमें, संतोषी हुआ करता था। जिसकी भव्य परम्परा में, 'एक पति और एक पत्नी दैहिक और मानसिक रूप से परस्पर समर्पित होते थे'। जो, अतीव सुख, की मृगतृष्णा लिए, अनेकों से संबंध को उत्सुक, न स्वयं भटकते थे और न ही किसी अन्य के भटकाव के कारक बनते थे।

आज का परिदृश्य जबकि इससे नितांत ही भिन्न हुआ है। आज -

"एंजिन से निकलते धुयें के साथ उड़े कोयले के कणों से सिर और वस्त्रों का रेलयात्रा में पुर जाना, फिर घर गंतव्य पर पहुँच कर धोने और स्नान से तरोताजा होने वाली यात्राओं का दौर, अब हमारे देश से अतीत हुआ है। कोयले से धधकने वाली अग्नि से, एंजिन का चलना बंद हुआ है। (विकसित तकनीक)


यह होते-होते, मगर, मानवीय जीवन यात्रा में, शरीर में कामाग्नि से धधकते, मनुष्य की जीवनशैली, नया दौर बनी है। ऐसे में अनेक पुरुषों की कामाग्नि से, उत्पन्न कालिख ने अपनी चपेट में लेकर, अनेक मासूम/नारी के जीवन को काला कर देना, वर्तमान की विडंबना बना दिया है।(उन्नत तकनीक प्रयोग से लज्जाजनक कृत्य के प्रसारण से)"

हमारे देश-समाज में, इस 180 अंश के बदलाव के लिए मैंने अनुभव किया कि सिने जगत, जिसमें मेरे पापा के तरह के लोग, तथा प्रतिशोध/प्रतिरोध का गलत मार्ग चुनती मेरी तरह की ख्याति लब्ध महिलाओं का होना भी कारक हुआ है।  

उन्नत तकनीक के दो उदाहरण मेरे सामने हैं। एक के जरिये हमने अपने जीवन से हानिकारक साधन हटाया है।

दूसरे के जरिये, निर्मित किये, सिनेमा/वीडियो, अनैतिक दृश्य, तथा पर्दे के पीछे के बुरे कृत्य से चटपटे प्रस्तुतियां /समाचार बनाये हैं।

हमने अपने बिन सोचे विचारे किये गैर-जिम्मेदार कृत्यों से, मानवता को लज्जित करने वाली अपसंस्कृति, घर घर तक पहुँचाई है।  

निश्चित ही, मेरा जीवन, मेरी लोकप्रियता का प्रयोग, मेरे प्रशंसकों में कदाचित इस संदेश के प्रसार के लिए नहीं होना चाहिए।

अपने किये का ग्लानि/पश्चाताप बोध अनुभव करते हुए, मैं, अपने बिताये का सँक्षिप्त वर्णन पाठकों के समक्ष, यह तय करने के लिए लिख रही हूँ कि आखिर मैंने

किससे लिया, बदला ?  


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