किस्से कहानी

किस्से कहानी

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"अब उठ भी जाओ....."

झुंझलाते शलभ चाय के इंतजार में थे। 7 बजने को थे लेकिन प्रतिमा की आँख नहीं खुल रही थी। अलसाती प्रतिमा बताने लगी

"कल देर रात यूषी से बातें होती रही"

"क्या कह रहे थे लाट साहब, दिन मे तो समय मिलता नहीं....सारी सारी रात जगा लो बस " शलभ ज़रा तुनके।

"अरे नहीं.... सारा दिन व्यस्त रहते है बच्चे....एक के बाद एक क्लास, खाना भी नहीं खा पाते। फिर लैब और शाम को खेलता भी तो है...चैन से बात कब करे।"प्रतिमा ने सफाई दी।

ऊँह... चैन से क्या बात करनी होती है... किस्से कहानियां करती रहती हो दोनो बेटों से..."शलभ मुस्कुराते हुए बोले।

करवट बदलती प्रतिमा बुदबुदायी

"सच में ... जब तक अपनी सारी उलझने उन दोनो से बांट ना लूँ, चैन नहीं पड़ता।

पता तो है आपको, समस्या से निबटने के नये नज़रिये ये बच्चे ही सुझाते है मुझे। कैसे मेरे शौक पूरे करवाने शुरू किये थे दोनों ने।आशू ने ढेरों किताबें और उपन्यास मंगवा दिये थे तो यूषी ने पेंटिंग की सारी सामग्री बक्से से निकाल कर सजा दी थी...."

"हाँ भाई, दोनों के चले जाने से तुम्हें जो खाली समय मिला उसका सदुपयोग होने लगा और हम लोग भी निश्चिंत हो कर अपने अपने काम कर पाये नहीं तो तुम्हारे अकेलेपन से हम सभी परेशान होने लगे थे।

वैसे अब क्या परेशानी हो गयी तुम्हें जिसकी चिंता मे रत जगे हो रहे है "शलभ ने पूछा।

"कुछ नहीं, वो अपने किस्से बता रहा था। अपनी उलझनो मे उलझा था, तो मैंने अपने अनुभव उससे साझा किये। अब उसे इंसानी फितरत के वो अनुभव हो रहे हैं,जो इस दुनिया की कड़वी सच्चाई है। उसका कच्चा मन इस स्वार्थी दुनिया का सच नहीं पहचानना चाहता। अभी उसका सामना "नव रसो" से कहाँ हो पाया है? पल पल रंग बदलती दुनिया के "क्रूर चेहरे" उससे नहीं संभल पाते।अभी तो उसने उड़ना शुरू ही किया है....भीड़ मे अपनी पहचान बना रहा है...मैं तो बस कोशिश कर रही थी कि उसका हौसला बना रहे...समझा रही थी कि जिंदगी किसी एक फार्मूले से नहीं चलती...

देखो क्या होता है...

कुछ समझ पाया, कुछ अनुभव समझा देंगे...पर मैं खुश हूँ कि कम से कम हम हर विषय पर चर्चा तो कर पाते हैं। आजकल की आम समस्या "जनरेशन गैप" तो हमारे बीच नहीं आती .... यूँ ही किस्से कहानी करते करते हम हर उलझन सुलझा पाते है..."प्रतिमा उनींदी सी बडबड़ायी।

" सही कह रही हो तुम....बगीचा लगा लेना फिर भी आसान है लेकिन हर मौसम के हिसाब से उसे संभालना मुश्किल है.... वर्षा मे विचारों की खरपतवार हो, पतझड़ मे विचार शून्यता हो या तेज़ आंधी मे मजबूत सहारा हो...। माली को तो अपनी बगिया हर मौसम मे संभालनी ही होगी।"

शलभ प्रतिमा के सिर पर हाथ फेरते हुये बोले,

"चलो.. तुम लेटी रहो...आज चाय मैं बना लाता हूँ..


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