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Ankita Bhadouriya

Tragedy

4  

Ankita Bhadouriya

Tragedy

किसान और बारिश

किसान और बारिश

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                       सुखिया, खेत में खड़ी अपनी लहलहाती फसल को देखकर गदगद हुआ जा रहा था। इतनी अच्छी पैदावार तो उसने कभी नहीं देखी थी। रोज खेत पर जाता और अपने भविष्य के सपने बुनता। अपनी फसल को देखकर उसके चेहरे पर जो रौनक आती वो देखते ही बनती है। कभी आपने उस बाप को देखा है जिसका बेटा अच्छी नौकरी में लग जाता है, तो जो चमक उसके चेहरे पे आती है और जैसी रौबीली उसकी चाल हो जाती है, ठीक वैसी ही चमक और रौब आजकल सुखिया के चेहरे पर रहता है।

उसने अपनी पत्नी सत्तो से कहा - "अबकी साल हमारे अच्छे दिन आने वाले हैं, खेत में फसल का जो अंदाजा लगा है उसके हिसाब से तो हम सेठ का कर्जा भी पटा देंगें। और चंदा का ब्याह भी कर देंगें।"

सत्तो की आँखें भी जगमगा गई, बोली - "हाँ, फिर तो सब चिंता ही खत्म हो जायेगी। बिटिया का ब्याह करके हम अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जायेंगें। बैसे भी 17 बरस की हो गई गाँव की सब औरतें टोंकतीं हैं, अबकी साल हाथ में जो रूपया आयेगा, उससे चंदा के हाथ पीले कर देंगें बस।"

           और दोनो पति पत्नी हर रोज आँखों में उम्मीद के जुगनू लिये कभी सेठ का कर्जा चुकाने की तो कभी अपनी बिटिया चंदा के ब्याह की बातें करते।

गरीबों के सपने भी ज्यादा बड़े नहीं होते, वे तो बस दो वक्त की रोटी और परिवार की जरूरतें पूरी हो जायें इतना ही सोचते हैं


दो साल पहले गाँव में सूखा पड़ा था। पानी की एक बूँद तक ना बरसी थी सबके खेत बंजर पड़े रहे थे। जिनके खेतों में ट्यूबवैल थे, उन्होनें तो अपने खेतों में पानी लगा दिया था। सुखिया और उस जैसे कई और गरीब किसानों ने जब उन लोगों से अपने खेतों में भी पानी लगाने को कहा तो ट्यूबवैल वालों ने पैसे माँगे लिये थे। जिनके पास पैसे थे, उन्होनें दे दिये और जिनके पास नहीं थे, उन्होने गाँव के एक अमीर आदमी सेठजी से उधारी पर पैसे लिये थे। खेत खाली डालने से अच्छा था, उधार लेकर फसल उगाई जाये।

                        सुखिया ने भी ये सोचकर सेठजी से कर्जा लिया था कि फसल बेच कर चुका देगा। लेकिन खेत में कभी एक बार पानी लगाने से फसल उगी है क्या? दूसरी बार उन ट्यूबवैल वालों ने पानी देने से ये कहकर इंकार कर दिया था कि जमीन का पानी गहराई में चला गया है। गाँव के कई गरीब किसानों के खेत में निकले छोटे छोटे पौधे धूप में जलकर सूख गये।

ये तो दोगुनी मार पड़ी थी, फसल भी ना उगी और कर्जा मुफ्त में हो गयाकर्जा चुकाने के तय वादे वाले दिन सेठ चार पहलवानों को लेकर सुखिया के दरवाजे पर पहुँच गया। सुखिया और उसकी घरवाली ने खूब हाथ पैर जोड़े, भगवान का वास्ता भी दिया, अपनी मजबूरी और गरीबी भी बताई, पर सेठ अपना रूपया लिये बिना जाने को तैयार ही ना था। अंत में सेठ ने सुखिया के सामने एक प्रस्ताव रखा कि वो अपनी चंदा का ब्याह सेठ के साथ कर दे।

                 इस पर सुखिया राजी ना हुआ। होता भी कैसे? गरीब था, पर था तो बाप ही, उसकी चंदा अभी पंद्रह बरस की भी ना हुई थी और वो सेठ बुढ़ऊ पचपन बरस में ब्याह के सपने देख रहा था। कब्र में पाँव थे पर खुद की बेटी से छोटी लड़की से ब्याह रचाना चाहता था।

                          सुखिया ने विवाह प्रस्ताव को ठुकरा दिया तो सेठ ने अपने पहलवानों से सुखिया के बैल खोल लेने को कहा। सुखिया ने खूब कोशिश की रोकने की मगर पहलवानों ने एक ना सुनी , जाते - जाते सेठ धमकी दे गया - " ये तो ब्याज था, मूल की रकम बाकी है। अगर अगले साल भी ना चुकाया तो तुम्हारे खेत भी छीन लूँगा।"

                    गाँवों में सेठ साहूकार पता नहीं, किस तरह के ब्याज पर रूपया देते हैं कि कर्जदार कभी कर्जमुक्त नहीं हो पाता। बैलों की कीमत सुखिया द्वारा उधार लिये गए रूपयों से निश्चित ही ज्यादा थी पर अभी भी कर्जा बाकी था।

बेचारा सुखिया और सत्तो अपनी किस्मत और भगवान को कोसते रहे। ना जाने कब तक सेठ को बद्दुआयें देते बैठे रहे।

                             इस साल भगवान की कृपा से अच्छी बारिश हुई थी, सुखिया ने अपनी पत्नी के कुछ गहने बेचकर बीज और खाद खरीदी। जानपहचान वालों से बैल माँगकर अपना खेत जोता, फिर बीज डाले। जब बीजों में अंकुर फूटा तब खाद डाली। खेत में बीज बोने से लेकर फसल पकने तक सुखिया और सत्तो ने कई बार खेतों की निराई- गुडाई की, खरपतवार को हटाया। पानी की समस्या तो इन्द्रदेव ने पूरी कर दी, महीने में कई बार ठीक ठाक पानी बरस जाता। कुछ वक्त पर होने वाली बारिश और कुछ सुखिया और सत्तो की जी-तोड मेहनत का फल ये रहा की उनके खेत में फसल कुछ ज्यादा ही अच्छी उगी थी। दानों के वजन से पौधों की डालियाँ झुकी जा रहीं थी।

                        किसान के लिए उसका खेत और खेत में खड़ी फसल उसकी औलाद जैसी होती है। जितना प्यार और लगाव एक पिता को अपनी संतान से होता है , उतना ही मोह किसान को अपनी फसल से होता है। अपनी आँखों के सामने अपनी मेहनत को हर दिन थोड़ा - थोड़ा बढ़ता और फलता - फूलता देखकर सुखिया अपनी पूरी थकान भूल जाता। आजकल उसके चेहरे पर एक अलग ही सुकून था।

                            अब बस 20 दिन बाद अपनी फसल काट लूँगा, मन ही मन हिसाब लगाते हुये बोला,- " 50 क्विंटल अनाज तो निकलेगा ही, इसमें तो सेठ का कर्जा भी पट जायेगा और कहीं एक अच्छा लड़का देखकर चंदा का ब्याह भी कर दूँगा। सत्तो के बताऊँगा तो वो भी खुश हो जायेगी। उस बेचारी के लिये भी एक नई साड़ी और कानों के छोटे - छोटे चाँदी के झुमके खरीद दूँगा, कितने साल बीत गये उसके लिये कुछ नहीं खरीद पाया, इस बार जरूर खरीद दूँगा।" मन ही मन सुखिया ने सारा हिसाब लगाया और घर की ओर चल पड़ा।

                        उस रात उसने और सत्तो ने बिटिया के भविष्य की खूब बातें की।

***********

                 कभी - कभी खुशियों को हमारी ही नज़र लग जाती है, सुखिया की खुशियों को भी लग गई थी। खेत में पकी फसल खड़ी थी, आठ - दस दिन में काटे जाने योग्य होने वाली थी कि तभी आसमान में काले काले बादलों ने डेरा डाल लिया। इतने घने बादल थे कि दिन में भी अंधेरा छा गया। सभी किसान अपने - अपने देवी देवता मनाने लगे कि पानी ना बरसे। पर दुआयें हमेशा कबूल कहाँ होतीं हैं.......!

                                    वही हुआ जिसकी आशंका थी, बादलों में जोरदार गड़गड़हट के साथ झमाझम पानी बरसने लगा। बारिश को देखकर पहले सुखिया ने अनुमान लगाया - "इस बार सत्तो के गहने और कपड़े नहीं बनवाऊँगा, अभी उसके पास कई साड़ियाँ हैं पुरानी हैं तो क्या हुआ पहनीं जा सकतीं हैं। और झुमके पहनकर कहाँ जायेगी? उनकी भी अभी जरूरत नहीं है।"

              बरसते - बरसते सुबह से शाम हो गई, नुक्सान का अनुमान लगाते हुये सुखिया खुद से बोला - "बिटिया की शादी इस साल नहीं करेगा, अच्छा लड़का बाजार में थोड़ी ना मिलता है जो जब चाहो खरीद लाओ। ढूँढ़ना पड़ता है। लड़का ढूँढ़नें में एक - डेढ़ साल तो लग ही जायेगा, बिटिया वैसे भी अभी छोटी ही तो है।"

                       सुखिया पूरी रात एक पल को भी ना सोया इस बीच आसमान ने लगातार पानी बरसता रहा। अब सुखिया ने अंदाजा लगाया - "अब तो सेठ खेत भी छीन लेगा। नहीं , मैं सेठजी से कुछ समय की मोहलत और ले लूँगा। पर पिछली बार की तरह ना माने तो? खेत छीनने की जिद्द पर बैठ गये तो? खेत छिनता है तो छिन जाये। मैं किसी और का खेत बटाई पर ले लूँगा। बस भगवान सालभर तीन लोगों के खाने लायक दाने बचा लेना।"

                        कहते हैं आदमी के ज़िंदा रहने के हवा के बाद जो सबसे ज्यादा जरूरी होता है वो है - उम्मीद। आदमी भोजन के बिना 15 दिन और पानी के बिना 3 दिन ज़िन्दा रह सकता है, पर उम्मीद के बिना कुछ मिनट भी नहीं.......। हम मनुष्य बड़ी से बड़ी मुसीबत की घड़ी में भी उम्मीद का सिरा ढूँढ़ ही लेते हैं। उसी तरह सुखिया और सत्तो भी उम्मीद की ड़ोर थामें बारिश रूकने की दुआ माँग रहे थे।

                                    एक किसान के लिए बारिश ही सब कुछ है। सही समय पर हो तो अमृत है , गलत समय पर हो जहर समान। जिस बारिश के ना होने पर पिछले साल उसके बैल छिन गये थे, इस साल उसी बारिश के होने से उसका खेत भी छिन जायेगा। कितना मुश्किल होता होगा ना , अपनी खून - पसीने की मेहनत को ऐसे खोते देखकर। किसान भी कितना बड़ा जुआ खेलता है , सिर्फ उम्मीद के भरोसे........।

                       तीन दिन बाद बारिश रूकी। सुखिया और सत्तो नुक्सान का अंदाजा लगाने भरे पानी के बीच दौड़कर अपने खेत पहुँचे। देखा तो एक तिनका भी ना बचा था। खेत कहीं था ही नहीं, जहाँ तक नज़र जा रही बस ताल ही ताल भरा था। अब आसमान की बारिश रूक चुकी थी, पर उम्मीदों के टूटे काँच की चोट से खून आँसू बनकर आँखों से लगातार बरस रहा था।

 खेत से लौटते समय याद आया कि चंदा कई दिनों से जलेबी खाने की ज़िद्द कर रही थी। सुखिया ने जेब में हाथ डालकर कुछ सिक्के और नोट बाहर निकालकर गिने पूरे सत्तर रूपये थे। सुखिया ने सत्तो की ओर देखा, दोनों नें आँखों ही आँखों में बात की। सत्तो ने एक दुकान से पचास रूपये की जलेबी और सुखिया ने दूसरी दुकान से चूहे मारने वाली दवा का पैकेट खरीदा और आसमान की ओर देखकर मन ही मन कहा - "कर ली ना, अपने मन की। अब हमारे पास एक ही रास्ता बचा है।"

दोनों पति पत्नी घर की ओर चल दिये, जहाँ चंदा दरवाजे पर निगाहें गड़ाए उनका इंतज़ार कर रही थी।



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