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Dr.Purnima Rai

Tragedy

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Dr.Purnima Rai

Tragedy

ख्याल

ख्याल

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आज दोपहर को ऑफिस से लंच ब्रेक में निकलते वक्त प्रीति थोड़ा लेट हो गई थी।

"अब क्या करुँ?आज तो पक्का बेटे की बस आ गई होगी।हाय!सड़क कैसे पार की होगी उसने?हे ईश्वर सब सही करना।"

शीघ्रता से अपनी एक्टिवा स्टार्ट करती हुयी प्रीति खुद से बात कर रही थी।

"शुक्र है,अभी नहीं आई बस!"सड़क के एक छोर पर घर की ओर जाने वाले मोड़ पर अपनी एक्टिवा खड़ी कर दी प्रीति ने ,प्रतीक्षा करने लगी बस की!"

चिलमिलाती धूप में खड़ी वह छाया ढूँढ रही थी ,तभी किसी के कराहने की आवाज़ आई!आवाज़ आने की दिशा में जब वह आगे बढ़ी तो देखा एक बुढ़िया पास में बन रहे मकान की चौखट में बैठी थी। 

"माँ जी,लगता है ,मिस्तरी नहीं आये आज!!आप यहाँ इस तरह क्यों बैठी हो,गर्मी में??"

प्रीति की बात सुनकर बुढ़िया हाथ फैलाकर बोली,"बिटिया ,बूढ़ी को पाँच दस रुपये दे दो,चली जाऊँगी। "

मैं इस कालोनी में कुछ गुजर बसर करने हेतु माँगने आई हूँ,आँखों का आप्रेशन हुआ,कुछ दिन पहले,गर्मी में पसीना आ रहा है ,आँखों को तकलीफ होती है,और ऊपर से पैर में कंकर लग गया,अँगूठा दिखाते हुये बोली,"यह देखो चोट लग गई।धूप भी तेज है ,चल नहीं पा रही हूँ,तो यहाँ बैठ गई,जरा ठण्डा होते ही चली जाऊँगी। "

प्रीति ने बीस रुपये देते कहा,"आपका कोई बेटा नहीं है।"

तब बुढ़िया ने कहा,है न! दो बेटे और एक बेटी है पर वह भी बाल बच्चेदार हैं ,उनके घर का ही गुजर मुश्किल से होता है,वह तो मुझे पलकों पर बिठाते हैं,

मैं ही उन पर अपना बोझ नहीं डालना चाहती ।यूँ ही इधर-उधर आ जाती हूँ वक्त काटने के लिये और अपना गुजारा भी कर लेती हूँ।

प्रीति बेटे को लेकर जब जाने लगी तो बुढ़िया ने कहा,बेटे,"माँ का ख्याल रखना।जीते रहो।"



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