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Dr.Purnima Rai

Fantasy Inspirational

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Dr.Purnima Rai

Fantasy Inspirational

बिंदास(लघुकथा)

बिंदास(लघुकथा)

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कैसी लड़की है ! लड़कों से हमेशा हंसते हुए ही बात करती है। लड़कों की तरह बिंदास मोटर बाईक चलाती है। बिल्कुल भी शर्म और लिहाज नहीं है। अक्सर ही तृषा को लोगों के ताने और तंज सहने करने पड़ते थे। वह बेपरवाह जिंदगी को मुस्कुराते हुए जीती चली जाती है। अरे बापू जी, किधर जा रहे हो? तेज़ धूप है ,गर्मी भी बहुत है ।आईए बैठिए ! मेरे मोटर साइकिल पर ,छोड़ देती हूँ, जहाँ जाना है आपको? बापू जी, तृषा के पुराने जानकार तो नहीं ,लेकिन उनकी वृद्धावस्था देख तृषा ने उनकी सहायता करने का सोच लिया और बिठा लिया मोटर बाईक पर! अचानक तृषा ज़ोर से बोली, हाथ हटायें ,मेरी कमर से ! बापू जी डरी आवाज़ में बोले ,क्या हुआ बेटा, मैं गिरने लगा था। क्या कुछ ग़लत किया मैंने !

तृषा फिर बोली, शर्

म करें कुछ ! बापू जी घबराई और लड़खड़ाती आवाज़ में बोले, "बेटा, मैं बूढ़ा हो गया हूँ। मुझे मोटर बाईक पर बैठकर हमेशा गिरने का डर लगा रहता है। मेरा बेटा जब भी मुझे अपने मोटर साइकिल पर बैठने को कहता था तो वह पहले यही कहता था कि मुझे अच्छे से पकड़ लीजिएगा, अन्यथा गिर जायेंगे।" बस इसलिए मैंने बिटिया तुमको अपना बेटा समझकर सहारा लेने के लिये तुमको पकड़ लिया। बापू जी धीरे-धीरे बोल रहे थे, काश उस दिन बस दुर्घटना में बेटे की जगह मैं मर जाता। सजल आँखों से अपना सा मुँह लेकर अशान्त तृषा बोली, "आगे सड़क ख़राब है ,गिर मत जायें, ध्यान से बैठ जायें।" तृषा यही सोचने लगी कि बिंदास घूमना और बिंदास बनकर रहना ही बिंदास होना नहीं है वरन् सोच और व्यवहार में बिंदासपन की आज भी कमी है।



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