सिंदूर
सिंदूर
आज वह बड़ी खुश थी। मायके जाना था। कल भैया दूज जो आ रहा था। सारी तैयारी हो ही चुकी थी। तय भी हो गया था कि कल रीना को साथ लेकर वह ड्राइवर के साथ मायके जाएगी। अचानक फोन की घंटी बजती है। उसके भाई का फोन आता है, मीना आज ही आ जाओ आप सब। बच्चों की भी छुट्टियाँ है, वह खेल भी लेंगे। असमंजस में कभी हाँ, कभी ना, करते हुए आखिर वह परिवार सहित मायके एक दिन पहले रात को ही चले जाती है। जल्दबाजी में वह भैया दूज पर्व मनाने हेतु सामग्री, मिठाई, फल, आदि कुछ भी नहीं खरीद पाती। रात हँसी-खुशी में बीत जाती है। सुबह सब बड़ी बहनें पूरी तैयारी के साथ भैया दूज पर्व मनाने आ जाती हैं। मीना भी शीघ्रता में भ
ाई के लिए मिठाई, फल आदि खरीदने भाई के साथ ही बाज़ार चली जाती है। तिलक करने की सामग्री वह फिर भी नहीं ला पाती। सभी बहनें अपनी-अपनी थालियाँ सजाती हैं। अरे, ये क्या! आजकल टीका लगाने वाली सामग्री बहुत ही कम होती है बाज़ारी पैकेट में!! एक बहन बोली। लो मैं तो आप सबके आसरे ही रही कि तुम लोग तिलक हेतु सामग्री ले आओगे। दूसरी बहन ने कहा। अब क्या करें .!!..यही सोचकर एक बहन ने मीना से कहा, " तेरे पर्स में हमेशा मेकअप की सारी चीज़ें होती हैं, चल जल्दी से सिंदूर निकाल कर ले आ। " अरे-अरे वो आजकल कौन लगाता है, मीना बोली !! तभी नन्ही रीना बोली ---मम्मी, आप सिंदूर लगाया करो ना!! सुंदर लगता है।