खुशियों की चाबी
खुशियों की चाबी
"ईश्वर ने मेरे साथ ही ऐसा क्यों किया ? ऐसी ज़िन्दगी से अच्छा तो मुझे उसी दिन मौत आ जाती । मैंने तो आज तक भी किसी का बुरा नहीं किया था । ",घर की बालकनी में बैठा अविनाश, हमेशा की तरह अपने आपको और ईश्वर को कोस रहा था ।
"बेटा , जाओ थोड़ी देर बाहर घूम आओ । तुम्हें अच्छा लगेगा ;मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूँ ।",अविनाश की मम्मी ने उसके कमरे में प्रवेश करते हुए कहा ।
"कहीं नहीं जाना मुझे । ",अविनाश ने झल्लाहट से कहा ।
"बेटा ,तुम्हारी तकलीफ समझ सकती हूँ । लेकिन ज़िन्दगी जैसी भी हो ;ईश्वर की दी हुई है ;उसे प्रसन्नता पूर्वक जीना चाहिए ;यही ईश्वर के प्रति कृतज्ञता प्रदर्शित करने का सबसे बेहतरीन तरीका है । प्रसन्न रहकर ही हम ईश्वर को धन्यवाद दे सकते हैं ।",अविनाश की मम्मी ने उसे समझाते हुए कहा ।
"आप फिर शुरू हो गयी । कहना और उपदेश देना बहुत सरल है । ",अविनाश ने कहा ।
"लेकिन उन पर चलना कठिन भले ही हो ;लेकिन नामुमकिन तो नहीं । " ,अविनाश की मम्मी ने फिर समझाने की कोशिश
की ।
"आप जाओ यहाँ से यार । जब देखो तब उपदेश देने आ जाते हो । मेरी तकलीफ भला आप क्या समझोगे ?",अविनाश ने चिल्लाते हुए कहा
"ठीक है ;बेटा । ",अविनाश की मम्मी ,अपनी पनीली हो आयी आँखों को पोंछते हुए निकल गयी थी ।
एक दुर्घटना ने अविनाश को अपाहिज बना दिया था। उसकी अपंगता शारीरिक से ज्यादा मानसिक थी। उसके मम्मी -पापा की लाख कोशिशों के बाद भी वह सामान्य ज़िन्दगी नहीं जी पा रहा था। उसने अपने आपको घर की चहारदीवारी में कैद कर लिया था।जब देखो तब ,वह बालकनी में बैठकर बाहर देखते रहता था । बाहर चल -फिर रहे लोगों को देखकर उसका मन कभी वह दुःख से ;कभी ईर्ष्या से भर जाता था ।वह अपनी अपंगता को स्वीकार नहीं कर पा रहा था और न ही वह अपनी ज़िन्दगी के इस अध्याय को बदल सकता था । उसमें निराशा और कड़वाहट बढ़ती जा रही थी ।
तब ही एक सुबह उसे बाहर एक लड़की दिखाई दी । लड़की सांवली थी ;लेकिन उसकी साँवली सी सूरत में एक गज़ब का आकर्षण था।यह उसके चेहरे पर खिली लेने वाली मुस्कुराहट का जादू था या उसकी लोगों की मदद करने की आदत का ;अविनाश उसे एकटक देखे जा रहा था ।
अविनाश के घर की बिल्डिंग के सामने एक बस स्टॉप था ;घर की बालकनी से अब वह उसे अक्सर वहीं दिखाई दे जाती थी। वह भी शायद वहीं कहीं अविनाश की बिल्डिंग आसपास कोई नौकरी करती थी। उसका नियमित रूप से उसी समय पर आना और साथ में लंच का डिब्बा और बैग ;इस बात की गवाही देते थे।
वह किसी कॉलेज की विद्यार्थी भला कैसे हो सकती थी ,क्यूँकि वहाँ आसपास कोई कॉलेज था ही नहीं । अविनाश की हर सुबह अब उसी के इंतज़ार
से शुरू होती थी।अविनाश उसके तयशुदा समय से कुछ पहले ही बालकनी में आकर बैठ जाता था ।सुबह शाम उस लड़की की एक झलक अविनाश के
लिए एक टॉनिक का काम करती थी।
वह लड़की कभी किसी बुजुर्ग की सड़क पार करने में मदद करती ;कभी सड़क पर घूम रहे बच्चों को बिस्किट बाँटती। एक दिन तो बहुत से बच्चे उसे घेरकर बैठे हुए थे और शायद वह उन्हें कोई किस्सा या कहानी सुना रही थी। वह भी उन्मुक्त रूप से हँस रही थी ;उसकी मोतियों सी दन्त -पंक्ति देखकर अविनाश ने अनुमान लगा लिया था। उसे घेरकर बैठे हुए सभी मासूम बच्चे भी तो खिलखिला कर हँस रहे थे।
वह उसके साथ खड़े सभी बुजुर्ग पुरुषों और महिलाओं की बस में चढ़ने में मदद करती थी और सबसे अंत में खुद चढ़ती थी। इस चक्कर में कभी -कभी उसकी बस छूट जाती थी ;जब बस चली जाती तो उसके चेहरे पर वही परिचित मुस्कान खेलने लग जाती थी। मानो उसकी ज़िन्दगी में शिकायत नामक शब्द था ही नहीं ।
एक दिन जैसे ही वह बस स्टॉप पर आयी ,बारिश होने लगी। अविनाश सोच रहा था कि आज वह लड़की बारिश से बचने के लिए उसके घर की बिल्डिंग मेंही आ जायेगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ ;सभी बच्चों ने उसे घेर लिया था। उसने अपना बैग और लंच बॉक्स बस स्टॉप पर बने टिन शेड के नीचे रखा और वह बच्चों के साथ बलखाती नदी के जैसे नृत्य करने लगी और बारिश का लुत्फ़ उठाने लगी ।उस लड़की ने एक ऐसी चाबी तलाश ली थी;जिससे हर स्थिति में खुशियों के लिए ज़िन्दगी के दरवाज़े को खोला जा सकता था । उस दिन अविनाश भी वहाँ जाना चाहता था ;लेकिन वह नहीं गया। वह अभी तक भी अपने दुःख की दुनिया से बाहर आने की हिम्मत नहीं जुटा सका था ।
अविनाश उस लड़की के साथ एक अनजाने से रिश्ते में बँध गया था। उन दोनों को बाँधने वाली डोर अदृश्य थी।
फिर वह लड़की कई दिनों तक अविनाश को दिखाई नहीं दी।वह रोज़ सुबह -शाम बालकनी में बैठकर उसका इंतज़ार करता;लेकिन उसका इंतज़ार समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रहा था । अविनाश को उसकी कमी खलने लगी थी । लेकिन अविनाश को उसके बारे में कुछ भी तो पता नहीं था। उस लड़की ने तो शायद कभी अविनाश को देखा तक नहीं था। एक दिन अविनाश ने तय किया कि वह सड़क पर घूमने वाले बच्चों से उस साँवली लड़की के बारे में पूछेगा ;शायद उन्हें कुछ पता हो। लेकिन वह कैसे जाए ;आज उसे अपनी लाचारी पर गुस्सा आ रहा था। उसने ठान लिया था कि वह आज जाकर ही रहेगा।
अविनाश ने अपनी बैसाखी उठा ली थी और लगभग 1 साल बाद वह अपने घर से निकल कहीं बाहर जा रहा था।
जब वह अपनी बैसाखी उठाकर जाने लगा तो उसकी मम्मी बोलने ही वाली थी कि ,"बेटा ,अकेले कहाँ जा रहे हो ?" ,लेकिन पापा ने हाथ से उन्हें कुछ न बोलने का इशारा कर दिया और दोनों बस उसे जाता हुआ देखने लगे। मम्मी -पाप दरवाज़े पर खड़े होकर अविनाश को जाता हुआ देखने लगे । सरकार द्वारा समय -समय पर जारी गाइडलाइन्स के अनुसार बिल्डिंग्स बाधामुक्त और विकलांग जनों की आवश्यकताओं के अनुरूप होनी चाहिए । लेकिन अक्सर बिल्डर्स इन गाइडलाइन्स का शत -प्रतिशत पालन नहीं करते । सौभाग्य से अविनाश की बिल्डिंग चलने -फिरने में असमर्थ लोगों की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए निर्मित हुई थी ।
अविनाश ने लिफ्ट रोकने के लिए बटन दबा दिया था और कुछ देर बाद ही लिफ्ट उसके फ्लोर पर आकर रुक गयी थी ।अविनाश लिफ्ट के अंदर प्रवेश कर गया था । अविनाश के मम्मी -पापा घर के अंदर चले गए थे । दरवाज़ा बंद करके दोनों सीधा बालकनी में चले गए ताकि वहाँ से अविनाश को देख सकें ।
उन्हें घर की बालकनी से अविनाश सड़क पर खड़ा दिख गया था। वे दोनों भी चुपचाप उसके पीछे -पीछे आ गए थे। अविनाश ने सड़क के दोनों तरफ देखकर सड़क क्रॉस की और बस स्टॉप तक पहुँच गया।
उसने बच्चों से उस साँवली -सलोनी लड़की के बारे में पूछताछ शुरू की । बच्चों ने कहा कि ,"पता नहीं ,दीदी बहुत दिनों से इधर आ नहीं रही। "
इधर -उधर काफी पूछने पर पता चला कि ,"दीदी ,किसी हॉस्पिटल में काम करती थी। "अविनाश के घर के आसपास ३-४ हॉस्पिटल थे। अब अविनाश ने हर हॉस्पिटल में जाकर उसके बारे में पूछने का तय किया। अब तक अविनाश के मम्मी -पापा भी आ गए थे।
अविनाश अपने मम्मी -पापा के साथ हॉस्पिटल पहुँच गया था। वहाँ उसने रिसेप्शन पर पूछताछ की। रिसेप्शनिस्ट ने पूछा ,"आप जिनके बारे में जानना चाहते हैं ;उनका नाम बताइये ?"
"पता नहीं। ",अविनाश ने कहा।
"क्या काम करती थी ?"
"पता नहीं ;शायद नर्स होगी। ",अविनाश ने कहा।
"कोई फोटो ?"
"नहीं है। लेकिन साँवली थी और हमेशा हँसती रहती थी। ",अविनाश ने कहा।
"मैंने चेक कर लिया है। हमारा कोई भी लेडी स्टॉफ लम्बे समय से छुट्टी पर नहीं है। "
अविनाश दूसरे हॉस्पिटल में गया और फिर तीसरे में ;लेकिन कहीं से भी उसके बारे में कुछ पता नहीं चला। वह बहुत निराश था ;अब केवल एक हॉस्पिटल बचा था।
उसने रिसेप्शन पर पूछा।
"हमारा कोई लेडी स्टाफ तो छुट्टी पर नहीं है। ",नयी -नयी आयी रिसेप्शनिस्ट ने चेक करके बता दिया था।
अविनाश निराश होकर बैठ गया था। तब तक वहाँ पुरानी रिसेप्शनिस्ट आ गयी थी। नयी लड़की ने उसे अविनाश की पूरी कहानी सुना दी थी।
अविनाश ,अपने मम्मी -पापा के साथ वापस जाने के लिए मुड़ा ही था कि एक आवाज़ ने उसे रोक लिया ,"मुझे लगता है आप शायद प्रेरणा के बारे में पूछ रहे हैं। "
अविनाश रिसेप्शनिस्ट के पास पहुँचा तो वह उसे एक फोटो दिखाते हुए बोली कि बोली ,"प्रेरणा ,यहाँ नर्स थी। सबसे अच्छी नर्स थी। पेशेंट तो उसकी बातों से ही आधे ठीक हो जाते थे। "
अविनाश फ़ोटो देखते ही पहचान गया था कि ,"यह तो वही लड़की है। "
"आप बार -बार थी क्यों बोल रही हैं ?क्या अब वह यहाँ काम नहीं करती। ",अविनाश ने पूछा।
"प्रेरणा अब इस दुनिया में नहीं है। उसे एक बड़ा दुर्लभ कैंसर हो गया था। वह कैंसर से हार गयी। अपनी मौत को नज़दीक जानकर भी उसने कभी जीना नहीं छोड़ा था। ",रिसेप्शनिस्ट ने बताया।
अविनाश अपने मम्मी -पापा के साथ लौट गया था। लेकिन अब वह पुराना निराशा में डूबा हुआ ,ज़िन्दगी से मायूस अविनाश नहीं था। बल्कि अब वह ज़िन्दगी का महत्व समझ गया था और यह भी जान गया था कि ज़िन्दगी कैसे जीनी है।
प्रेरणा जाते -जाते उसे जीना सिखा गयी थी।