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Ashutosh Shrivastwa

Abstract

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Ashutosh Shrivastwa

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खुशबू सरल होती है

खुशबू सरल होती है

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इन आंखों से जो दिखता है... वो बहुत जटिल है... उलझा हुआ।

कोई हंसता हुआ दिखता है, उसी क्षण वहीं व्यक्ति टूट रहा होता है..

उसके टुकड़े हो गए होते है..

इतना शोर है यहां.... आग लगी है.. 

हमने बस देखना सीखा है... महसूस करना भूल गए हैं।

इसलिए मै अब आंखों से कम देखता हूं चीजों को..

मै चीजों को उनकी खुशबू से देखता हूं..

खुशबू शांत होती है, एकदम मौन.. और सरल...

जैसे कभी शाम के वक़्त बालकनी में बैठना, आंखे बंद कर के...

महसूस करना.. हवा को.... उसमे मिली वो भिनी सी खुशबू..

जो तुम्हें उस बालकनी से खींचकर कहीं और ले जाएगी...

वहां जहां तुमने कभी सुकून से सांसे ली हो...

हंसे हो खिलखिला कर, इतनी जोर से को आंखे नम हुई हो।

खुशबू आपको उस गांव में ले जाती है जहां मिट्टी के चूल्हे होते थे...

बारिश होती थी.. और धूप भी... 

अपने अलमारी में तह लगाकर रखें कपड़ों में से आती वो खुशबू..

जो तुम्हारे प्यार ने कभी पहना था, और जिसे तुमने बिना

धोए संभाल कर रखा था... उस खुशबू को हमेशा जिन्दा रखने के लिए...

की भले वो मेहबूब रहे ना रहे.. उसकी खुशबू जरूर रहेगी...

हमेशा... अनंत तक।

खुशबू सरल होती है.. एकदम सुलझी हुई।


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