एक वैसी जगह....
एक वैसी जगह....
एक वैसी जगह....
जहां कोई मुझे ना जानता हो,मिट्टी से अनजान सी खुशबू आती हो,भाषा ना मुझे किसी की आती हो ना किसी को मेरी।
एक घर हो,जिसके सामने सड़क तक एक गलियारा हो,उसके चारो तरफ अमरूद के पेड़ लगे हों। गलियारे के पास में जामुन का एक बड़ा सा पेड़ हो,नीचे नरम घास और उसपर दो कुर्सियां,एक मेज और मेज पर कुछ किताबें।
घड़ी की टिक टिक की जगह चिड़ियों की चहचहाहट, एक गिलहरी जो हर वक़्त पेड़ से जूठे अमरूद कुतर कर छोड़ दे।
और एक लालटेन....
रात की गहरी नींद,ठंडी सुबह...
एक कुर्ता,जिसकी जेब में हो सुकून भरा।
बस....... इतना ही.... और कुछ नहीं....।