गुॅंजन कमल

Tragedy

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गुॅंजन कमल

Tragedy

खट्टी - मीठी यादो का अलबम

खट्टी - मीठी यादो का अलबम

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मैं ना कहती थी कि मुझे अपनी यादों को संजो लेने दो । अपने बचपन के पलों को तो संजो नहीं पाई थी । उस समय कैमरा भी तो अमीरों के पास ही होता था । ईश्वर ने मुझे जिस घर में जन्म दिया वहां तो ऐसी चीजो की कल्पना तक हम नहीं कर सकते थे । मेरी एक - दो बचपन की तस्वीर माॅं ने स्टूडियो में खिंचवाई थी वही मेरे पास थी । दसवीं पास कर कॉलेज में जब गई तब परीक्षा फॉर्म पर चिपकाने के लिए पासपोर्ट साइज फोटो खिंचवानी पड़ती थी वही तस्वीर आज तक मैं अपने पुराने अलबम में रखती हूॅं । चंद तस्वीरें ही हैं लेकिन उन्हीं को देखकर कल्पना कर लेती हूॅं कि मैं उस वक्त कैसी दिखती थी ? शादी हुई उस समय माॅं की जिद पर फोटो खींचने वाले को बुलाया गया था । शादी की अलबम मेरे पास ही है । जब भी मन करता है देख लेती हूॅं । बचपन से ही अपनी मनपसंद चीजों को संजो कर रखने की मेरी इस आदत ने और तस्वीरों को संजोकर रखने का शौक ने शादी के बाद मुझे तस्वीरें खिंचवाने और खींचने दोनों की ही लत लगा दी थी । जिस घर में बनाई गई थी उस घर में कैमरा था । वही पुराना रील वाला कैमरा था जिसमें आज की तरह फोटो खींचकर अच्छी ना आने पर उसे डिलीट नहीं कर सकते थे बल्कि जो तस्वीर खींच ली गई हो वही तस्वीर निकलती थी । उस समय बच्चे छोटे थे । मैंने अपना बचपन तो नहीं देखा था ना ही कुछ ज्यादा याद था शायद तस्वीर देखती तो कुछ याद आता लेकिन यह हो नहीं पाया । यही वजह थी कि अपने बच्चों के बचपन के दिनों को तस्वीरों में कैद कर लेना चाहती थी और सच कहूं तो करती भी थी ।

आज दोनों बच्चों की बहुत याद आ रही है । घर में अकेले तन्हा जो हूॅं । कोई बात करने वाला भी नहीं है ।

सुमित और सुमन के पापा अपने भाई से मिलने गए हैं । मुझे भी साथ चलने को कहा था लेकिन आजकल तबीयत कुछ ठीक नहीं रहती इसलिए इच्छा नहीं हुई जाने की । मना कर दिया और वे अकेले ही चले गए । कुछ देर तो टीवी देखा मैंने लेकिन मन जब पुराने दिनों को याद करने लगे तो कहां किसी चीज में मन लगता है । यह - रहकर बच्चों की याद आ रही थी । पास भी तो नहीं रहते दोनों । उनका कहना भी तो बिल्कुल सही ही था । कब तक मैं अपने स्वार्थ के लिए उन्हें अपने आत्मनिर्भर बनने के पथ पर आगे बढ़ने में रुकावट बनती रहती ? जिन्हें वह दोनों मेरा स्वार्थ समझ रहे थे वह मेरी उनके प्रति सुरक्षा की भावना थी । बड़ी बेटी सुमन को बहुत ही नाजों से पाला है हम दोनों ने । अपने पिता की तो वह लाडली है । मेरी भी है लेकिन उसके पिता की तरह हर वक्त मैं उससे यह कहती नहीं । अपने अनुभव के आधार पर कहती हूॅं इस दुनिया में जो चीज देखा जाए उसी को दुनिया सच मानती हैं । महसूस किए गए रिश्ते का कोई नाम नहीं । उसे नकार दिया जाता है उसकी कोई पहचान नहीं । खैर छोड़ो ! मुझे इसकी तो आदत हो चुकी है । देखो तो इन आंखों को कितनी बार कहा है कि इनमें आंसू ना आने दे लेकिन यह मेरी सुनते ही कहा है ? जब भी दिल को तकलीफ होती है आंखों में आंसू आ ही जाते हैं । अभी मेरे दोनों बच्चे और मेरे पति मेरी आंखों में आंसू देख लेते तो कहते कि यह ऑंसू ही तो तुम्हारे हथियार है जिन्हें बहाकर तुम हम सब को कमजोर करना चाहती हो । कितनी बार कोशिश की है मैंने इन आंसुओं को अकेले में बहाऊं लेकिन इन आंसुओं को मेरे पर दया भी नहीं आती यह तो मुझे जलील करने के लिए हर जगह बहने को तैयार हो जाते हैं ।

अरे ! अलबम हाथों में लिए मैं ना जाने क्या बेकार की बातें सोचे जा रही हूॅं । बच्चों की तस्वीरें देख कर मन को सुकून मिलेगा इसीलिए तो यह उठाई थी  कहते हुए शकुंतला देवी ने अपने हाथों में रखें अलबम जिन्होंने उसे खट्टी - मीठी यादों की अलबम का नाम दिया था को पलटना शुरू किया । हर एक तस्वीर को देखते हुए वें भावुक हो रही थी । कभी उनके होठों पर हल्की सी मुस्कान दौड़ जाती तो कभी आंखों में इस कदर उदासी छा जाती कि वें अपना सिर ऊपर करके आंखों में आए आंसुओं को अपने भीतर समेटने की कोशिश करने लगती । कितनी प्यारी हंसी थी ना सुमन की । यह तस्वीर मैंने उसे बिना बताए खींची थी । बचपन की उसकी शैतानियां , जिद , रोना - धोना उसके सोते - जागते सभी तस्वीर मैंने अपने यादों के पिटारे में जो रख रखी है ।

शकुंतला देवी तस्वीर देखते हुए बड़बड़ाने भी लगती । जब भी उसका जन्मदिन आता था कितनी खुश रहती थी वों । अपनी मनपसंद चीजे मुझसे बनवा - बनवा कर खुद भी खाती थी और दोस्तों को भी खिलाती थी । २० साल की हो गई है अभी तो लेकिन अभी भी जब भी जन्मदिन आता है वैसे ही खुश होती है । दोनों भाई - बहन एक साथ कितने प्यारे लग रहे हैं ना इस तस्वीर में । नजर ना लगे मेरे दोनों बच्चों को । मुझसे मिलने भी आते हैं । इनके साथ मैं भी इनकी उम्र की हो जाती हूॅं और बहुत खुशी मिलती है मुझे इनके साथ समय बिताने में ।

"शकु .... शकु .... संभालो अपने आप को।" अपनी पत्नी को यूं अलबम हाथों में लेकर बड़बड़ाते हुए देखकर शकुंतला देवी के पति रामसरन सिंह ने उनसे कहा ।

"देखिए ना जी,सुमन और सुमित दोनों ही इस तस्वीर में कैसे एक-दूसरे से झगड़ रहे हैं । इनके रोज-रोज के झगड़ों से मैं तंग आ गई थी लेकिन आज उनके उन्हीं झगड़ों को बहुत याद करती हूॅं मैं । उनके हॉस्टल जाने के कुछ दिन पहले की ही यह तस्वीर है ना । मेरे कहने पर देखिए ना मुंह बनाते हुए किस तरह इन दोनों ने तस्वीर खिंचाई है ? अबकी बार जब वें दोनों आएंगे तो एक अच्छी सी तस्वीर खींचकर मैं इस अलबम के बाकी बचे जगह को भर दूंगी ।" शकुंतला देवी आगे भी कुछ बोलना चाह रही थी लेकिन तभी रामसरन सिंह ने बीच में बोलते हुए कहा :-" बस भी करो शकु ! बार-बार क्यों भूल जाती हो तुम कि हमने अपने दोनों बच्चों को सड़क दुर्घटना में खो दिया है । अब वें दोनों कभी भी हमारे पास नहीं आ सकते हैं । हम चाह कर भी उनसे नहीं मिल सकते हैं । इस घटना को छः साल बीतने को आए हैं लेकिन तुम रोज ही अपने इस अलबम को लेकर बैठ जाती हो और तस्वीरों को देख - देखकर उनसे बातें करने लगती हो । तुम्हें ऐसा करते हुए देख कर मुझे बहुत तकलीफ होती है । दिन - पर - दिन तुम्हारा मानसिक संतुलन बिगड़ता जा रहा है । मैंने अपने दोनों बच्चों को तो खो दिया है लेकिन अगर मैं अभी तुम्हें खो देता हूॅं तो मैं अकेला अपनी आगे की जिंदगी कैसे जिऊंगा कभी तुमने इस बारे में सोचा है । मुझमें तो इतनी हिम्मत भी नहीं कि मैं आत्महत्या भी कर सकूं ।"

"ऐसा मत बोलिए जी । मैं जानती हूं कि मेरे बच्चे कभी भी वापस लौट कर नहीं आएंगे लेकिन इन खट्टी - मीठी यादों की अलबम में मैंने उनके साथ जो यादें कैद कर रखी है उसे देखकर उनके साथ रोज ही थोड़ी सी जी लेती हूॅं लेकिन अगर आपको मेरी यह बात तकलीफ देती है तो आगे से मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूंगी । अब हम ही तो एक - दूसरे का सहारा है।" कहते हुए शकुंतला देवी अपने पति के सीने से लग गई ।

रामशरण सिंह जानते थे कि अपनी खट्टी - मीठी यादों की अलबम देखकर उनकी पत्नी अपने बच्चों की तस्वीर के साथ उन पलों को जीत लेती है नहीं तो दिन भर यूं ही उदास खोई - खोई सी बैठी रहती है ।

"अब मैं भी रोज तुम्हारे साथ बैठकर अपने दोनों बच्चों के साथ समय व्यतीत करूंगा । इनके साथ हस बोल कर हमारा दुख तो कम होगा । इनकी यादें ही तो अब हमारे जीने का सहारा है । लाओ मुझे भी तो यह खट्टी मीठी यादों की अलबम दिखाओ" कहते हुए रामशरण सिंह अपनी पत्नी शकुंतला देवी का हाथ थामें  पलंग पर रखें अलबम की तरफ जाने लगते हैं ।


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