हम! सब पर भारी
हम! सब पर भारी
' आज आप लोगों को मैंने आपातकालीन सूचना देकर एक अहम बात बताने के लिए बुलाया है। कल रात मैंने एक स्वप्न देखा और उसके बाद से मेरा मन विचलित है। स्वप्न में मुझे एक तराजू दिखाई दिया। इसे मैंने पहले भी मनुष्यों द्वारा बनाए गए फिल्मों में देखा था। आप सब ने भी तो उस तराजू को देखा ही होगा। नहीं ... नहीं देखा है। याद करिए ! जब हम पर बनाई गई फिल्में हमें फॉरेस्ट ऑफिसर द्वारा दिखाई गई थी तब उसी फिल्म में हम सभी ने उस चीज को देखा था। याद आ गया ना सबको ! मैंने कहा था ना कि आप सब ने उस तराजू को देखा है। मेरे स्वप्न में आने वाले उस तराजू का दोनों पलड़ा एक समान ही था ...... दोनों बराबर ही थे..... ना तो एक पलड़ा झुका ही हुआ था और ना ही उसका दूसरा पलड़ा ऊपर ही था। एक तरफ मैं जंगल का राजा शेर, कल्लू कुत्ता, लाली मुर्गी और चींचीं चिड़िया थे और उस तराजू के दूसरी तरफ एक इंसान खड़ा था। कहने को तो हम चार थे लेकिन उस अकेले खड़े इंसान को देख कर मैं यही सोच रहा था कि इस अकेले इंसान की सोच ने सबसे पहले तो हमें हमारे घरों से हमें दूर किया। ये इंसान सुखपूर्वक और सुविधाओं से संलग्न अपने आलीशान घरों में रह सके इसके लिए उन्होंने हमारे घरों ( जंगलों ) को काटना शुरू किया और हमें आश्रय विहीन कर दिया। उसके बाद हम जान बचाने के लिए दूसरी तरफ भागने लगे।
हम जहां भी जाते हैं ये इंसान हमें मिल ही जाते। इन्होंने हमारा शिकार करके हमारे खालों और हड्डियों से पैसे कमाने भी शुरू कर दिए। इंसानों की सोच के कारण है हमारे परिजन हमसे बिछड़ते चले गए और आज ऐसी नौबत आ गई है कि हमें चिड़ियाघर के पिंजरे में कैद होकर रहना पड़ रहा है। हम अपने ही घरों में आजादी से जी नहीं सकते। हम खुलकर सांस भी नहीं ले सकते। चीं चीं चिड़िया भी अपने पिंजरे में ही फुदक सकती हैं। पहले की तरह खुले आसमान में उड़ना अब इसके नसीब में नहीं। जिनके नसीब में खुले आसमान में उड़ना है उनकी तादाद भी अब बहुत कम ही है। इन इंसानों के कारण ही हमारी ऐसी हालत हुई है। अब तो हम सिर्फ इंसानों को दिखाने के लिए यहां पर है। हमारी खुद की जिंदगी तो कुछ है ही नहीं। अभी कुछ देर के बाद हमें फिर से पिंजरे में बंद कर दिया जाएगा और साथ ही हमें अलग - अलग भी कर दिया जाएगा। सब कहते हैं कि हम जानवर हैं। हम हिंसक प्रवृत्ति रखते हैं। ईश्वर ने हमें सोचने और समझने की शक्ति नहीं दी हैं। यह शक्ति तो उन्होंने इन इंसानों को ही दी हैं। क्या इन इंसानों ने हमारे बारे में कभी भी नहीं सोचा ? यें हमें अपने फायदे के लिए मारते चले गए लेकिन इनके दिल में दया का भाव तक नहीं आया ? लाली मुर्गी जैसी कितनी ही मुर्गियां रोज ही इन इंसानों के जिह्रा का स्वाद बनती है। चलती फिरती इन मुर्गियों पर वार करते हुए इन्हें तनिक भी तरस नहीं आता। यें इंसान हम जानवरों को हिंसक कहते हैं लेकिन क्या यह हमारे प्रति हिंसात्मक रवैया नहीं अपनाते ? हमसे ज्यादा हिंसक तो यें है जो रोज ही हमारा संहार करते हैं । यें रोज हमें तकलीफ देते हैं और सिर्फ और सिर्फ अपनी खुशी के लिए। मैंने जो सपने में तराजू देखी उसपर एक तरफ यह अकेला इंसान बैठे और एक तरफ हम जानवरों को बैठा दिया जाएं तब भी यह अकेला इंसान ही हम सब पर भारी पड़ेगा क्योंकि यह इतना शातिर है इतना हिंसक है कि कैसे भी करके अपना दिमाग लगाकर यें हम सब से बच कर निकल जाएगा और हम सब इसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगे बल्कि एक दिन ऐसा भी आ सकता है जब यें हम जानवरों की पूरी प्रजाति को ही समाप्त कर देगा। शेर आगे कुछ बोलता उससे पहले ही सीटी बज चुकी थी। अब सभी जानवरों को अपने - अपने पिंजरे में रख दिया जाएगा और फिर से इन्हीं इंसानों के सामने उनकी नुमाइश होगी। इन्हीं इंसानों में से कोई इंसान चाहे वह छोटा या बड़ा होगा उसके पास आकर उसे परेशान करेगा और वह कुछ भी नहीं कर पाएगा। अब उसे और उसके साथियों को यहीं पर रहना उन सबकी किस्मत है। जब तक वे सभी जिंदा रहेंगे उन्हें रोज इसी तरह से सबकुछ झेलना पड़ेगा। अब वह दिन गए जब वह जंगलों में अपनी मदमस्त चाल के साथ चलता था और ऐसा दहाड़ता था कि उसके दुश्मनों तक उसकी गर्जना पहुंचती थी। यही सब सोचते हुए शेर अपने पिंजरे में जाकर चुपचाप बैठ जाता है।
धन्यवाद