शिकायत तुम्हीं से थी
शिकायत तुम्हीं से थी
इस अंधेरे कमरे में बैठकर जब भी यादों के पन्ने पलटते हूॅं वें सभी चीख - चीख कर मेरी ही गलतियां गिनाते हैं। गलती भी तो मेरी ही थी। जब तक तुम मेरी जिंदगी में थे मुझे तुम्हारी बिल्कुल भी कद्र नहीं थी। बात - बात पर तुमसे लड़ाईयां करना ... तुम्हें ताने मारना ... तुमसे शिकायत करना ... यही सब तो तुम्हारे साथ करती थी मैं।
जब भी कॉलेज के दिन याद आते हैं होठों पर मुस्कान आ जाती है। पहली नजर में ही तुम्हें मुझसे प्यार हो गया था और जल्द ही तुमने मुझे भी प्यार का एहसास करा ही दिया था। कितने खुश थे हम दोनों एक - दूसरे का प्यार पाकर। एक - दूसरे के साथ जब हम होते थे हमें किसी चीज की कमी महसूस नहीं होती थी लेकिन यही कमी शादी के बाद मुझे क्यों महसूस होने लगी ? मैं क्यों तुमसे शिकायत करने लगी ? यह जानते हुए मैंने तुमसे शादी की थी कि तुम मध्यमवर्गीय परिवार से हो। अपनी ख्वाहिशों को पैसों की कमी के सामने दम तोड़ते हुए देखना मुझे मंजूर नहीं था और एक तुम थे जिसे मेरी हर बात मंजूर थी। मेरी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए तुम दिन - रात मेहनत करते थे फिर भी मैं तुमसे खुश नहीं थी। अपने अमीर पिता से लड़ कर आई थी इसलिए उनके पास जाना मुझे गंवारा नहीं था वर्ना कब का तुम्हारे द्वारा दिए जा रहे हैं इस गरीबी की जिंदगी को लात मार कर चली गई रहती।
मेरे द्वारा दिए गए संस्कार ही हमारे दोनों बच्चों में आ गए । मैंने उन्हें भी बिल्कुल अपने जैसा बना दिया था। मेरे द्वारा बनाए गए शिकायतों के पुलिंदे पर चढ़कर वें दोनों भी तुम्हारी बेइज्जती करने लगे। कभी-कभी उनके द्वारा की जाने वाली शिकायतें सुनकर मुझे भी बुरा लगता क्योंकि उनके बोलने का लहजा ऐसा था जिसे कोई भी माता-पिता सहन ना कर सके लेकिन मैं एक ऐसी माॅं थी जिनके सामने उसके खुद के ही बच्चे उसके पिता की सबके सामने इज्जत उतार देते थे और वह माॅं चुप रहती थी क्योंकि उसे लगता था कि उनके बच्चों के कहने का तरीका गलत है लेकिन वें दोनों सच ही तो कह रहे हैं।
हम सब की खुशी के लिए तुमने अपनी मेहनत द्वारा कमाई जमा पूंजी हमारे इस घर को बनाने में लगा दी और कितने प्यार से तुमने इस घर का नाम " सोनम - अभिषेक के सपनों का घर " रखा था। घर का नाम रखने पर भी मैंने तुम्हें ताना मार ही दिया था। चार कमरों का यह घर मुझे अभी तो बहुत बड़ा लग रहा है लेकिन उस समय मुझे यह घर छोटा लगा था। जिस तरह मैं तुम्हारे साथ समय बिताने के लिए तरसते हूॅं ठीक उसी प्रकार तुम भी मेरे साथ समय बिताने के बहाने ढूंढा करते थे। आज मुझे अपनी गलती का एहसास हो रहा है। बार-बार मन कर रहा है कि अतीत के गलियारों में जाकर उन पलों को जीऊं जब तुम मेरे साथ के लिए मेरे आगे - पीछे घूमते थे और मैं तुम्हें नजर अंदाज़ कर काम नहीं होने पर भी काम का बहाना कर तुमसे दूर जाने की कोशिश करती थी।
कोई तुम्हें नजरअंदाज करें तो उस पर क्या बितती है इस बात का एहसास आज मुझे तुम्हारे नहीं रहने पर हो रहा है। मेरे दोनों बच्चे आज तक मुझे नजरअंदाज ही तो करते आ रहे हैं। घर में नौकर है और वह भी उन्होंने इस दुनियां वालों को दिखाने के लिए रख रखा है। वें समाज को दिखाना चाहते हैं कि हमें अपनी माॅं की कितनी फिक्र है । इस उम्र में हमारी माॅं कैसे इतने बड़े घर का ध्यान रखेंगी.. खाना बनाएंगी ? यही वजह है कि उन्होंने राजू को इस घर की देखभाल करने के लिए रख रखा है। है भी राजू बहुत प्यारा बच्चा ... अपने बेटे से कम नहीं मानती मैं उसे। वह भी मेरी देखभाल किसी अपनें की तरह करता है।
आज उम्र के उस पड़ाव पर पहुॅं च चुकी हूॅं जहाॅं ना जाने जिंदगी की कौन सी सुबह ... कौन सी दोपहर ... कौन सी शाम और कौन सी रात आखरी हो। तुम्हें मेरी जिंदगी से हमेशा के लिए गए दस साल हो चुके हैं। मुझे तो तुम्हारी आदत पड़ चुकी थी। रोज सुबह उठकर तुम्हें ताने देना .. तुमसे शिकायते करना मेरी दिनचर्या में शामिल हो चुके थे। तुम्हारे जाने के बाद से ही मुझे तुम्हारी कमी खलने लगी । लोगों द्वारा कही बातों पर पहले मैं यकीन नहीं करती थी लेकिन तुम्हारे जाने के बाद मुझे यकीन हो गया कि जब तक अपनी पसंदीदा चीज अपने पास रहती है तब तक हमें उस चीज की कद्र नहीं होती लेकिन जैसे ही वह चीज हमसे खो जाती हैं ... किसी भी कारणवश हमसे जुदा हो जाती है हम उसके लिए बेचैन हो जाते हैं। अपनी पुरानी तमाम बातें हमारी ऑंखों के सामने घूमने लगती हैं और हम इस निष्कर्ष पर पहुॅंचते हैं कि हमें ऐसा नहीं करना चाहिए था।
मुझे भी अपनी गलती का एहसास तब हुआ जब तुम मेरी जिंदगी में नहीं थे। कमान से निकला हुआ तीर जिस तरह वापस कमान में नहीं आ सकता ठीक उसी तरह मेरी शिकायतें भी मेरे तानें और तुम भी तो वापस नहीं आ सकते। अगर आ सकते तो मैं तुम्हें अपने से कभी जुदा नहीं होने देती। मैं उन पलों को यादगार बना देती जिस पल में तुम मेरा साथ चाहते थे। बीता हुआ पल लौटकर नहीं आता और बीते हुए पल में हमारे द्वारा की गई गलतियां भी हम तभी सुधार सकते हैं जब वह शख्स इस दुनियां में हो।
मुझे शिकायत तुम्हीं से थी अभिषेक। काश ! मेरी पश्चाताप भरी बातें सुनकर तुम लौट आते ? आज फिर मुझे तुमसे एक और शिकायत है कि तुम मुझे छोड़ कर अकेले क्यों चले गए ? तुमने तो मेरा साथ देने का वादा किया था फिर भी जिंदगी के सफर में मुझे अकेले ही छोड़कर तुम चले गए। अपनी सोनम को साथ भी नहीं लेकर गए तुम।
माॅंजी ! ई .. का बड़बडा़ रही है आप। किस से आपको शिकायत है और कौन आपको छोड़ कर चला गया ? राजू के पूछे गए सवाल से सोनम देवी वर्तमान में आई और उन्होंने राजू से कहा कि मुझे कल भी शिकायत अपने पति से ही थी और आज भी शिकायत उन्हीं से है। वही मुझे अकेले छोड़कर चले गए।