अभिशाप बना वरदान
अभिशाप बना वरदान
जब से मैंने ऑफिस आते समय उस सिग्नल पर भीख मांगते हुए छोटे से बच्चे को देखा है तब से मन में विचारों का सैलाब उमड़ - उमड़ कर मुझे बीते दिनों में धकेल रहा है । उस बच्चे में अपना बचपन देखकर आज रह-रहकर वह बीते हुए दिन मुझे याद आ रहे हैं जब मैं पहली बार श्री अशोक शर्मा से मिला था ।
बाबूजी कुछ पैसे दे दो । दो दिनों से मैंने कुछ नहीं खाया है । ऐसे तो यें वाक्य मेरे जैसे भीख मांगने वाले सभी बच्चे बोलते हैं और उस समय भी मेरे साथ खड़ा लड़का भी वही वाक्य उस सिग्नल पर दोहरा रहा था जो मैंने कार में बैठे हुए आदमी से कहा था ।
मेरी बातें सुनते ही उस कार में बैठे हुए आदमी ने पहले तो मुझे ऊपर से नीचे तक देखा उसके बाद बिना कुछ बोले उसने अपनी गाड़ी की रफ्तार तेज कर दी । मैं कुछ दूर तक उस कार के पीछे दौड़ा लेकिन आठ साल के नन्हे पांवों में इतनी रफ्तार नहीं कि कार के रफ्तार के आगे थोड़ी देर भी टिक सके । अपने पांवों को दौड़ने से रोककर मैं एक तरफ खड़ा हो गया और अपने दोनों हाथों को घुटने पर रख तेज - तेज सांस लेने लगा । कुछ देर बाद जब मेरी श्वास सामान्य हुई मैंने अपने पीछे मेरे साथ आए उस लड़के को ढूंढना शुरू किया । पैसे भी नहीं मिले और यह लड़का ना जाने कहां चला गया ? सोचता हुआ मैं अपने उस ठिकाने पर पहुंचा जहां हम सभी भीख मांगने वाले बच्चे उस खूंखार और बेरहम दिल वाले शैतान सिंह को अपनी दिन भर की कमाई देते थे । भूख से बुरा हाल था लेकिन हमें खाना देने से पहले वो खूंखार शैतान सिंह हमसे दिन भर भीख मांग कर लाने वाले पैसे लेता था और उसकी गिनती करने के बाद ही हमें खाना खाने के लिए देता था ।
बस इतने ही पैसे ? कहीं तुमने इन पैसों में से कुछ पैसों से खरीद कर तो नहीं खा लिया ? शैतान सिंह की गरजती आवाज सुनकर दिल दहल उठा था मेरा । किसी तरह बनाते हुए मैंने कहा कि मैंने कुछ खरीद कर नहीं खाया है आज इतनी ही कमाई हुई है क्योंकि बहुत से लोगों ने भीख दी ही नहीं ।
झूठ बोलता है सा........ शैतान सिंह की गरजती आवाज के साथ-साथ उसके हाथ भी हम सभी बच्चों पर लगभग रोज ही उठते थे । हमें तो आदत हो गई थी लेकिन उसके द्वारा मारे जाने का दर्द हमारा शरीर झेल नहीं पाता था इसीलिए मैंने अपनी आंखें बंद कर ली और अपने दोनों हाथों से अपने शरीर को कस कर पकड़ लिया ।
मैं सोच ही रहा था कि अभी तक मेरे शरीर पर शैतान सिंह के हाथ द्वारा दिए गए मुक्के और थप्पड़ों का प्रहार नहीं हुआ तभी मेरे कानों ने सुना कि पकड़ लीजिए इस जालिम को इंस्पेक्टर साहब । यही वह दरिंदा है जो बच्चों को भीख मांगने के धंधे में लेकर आता है और उनकी जिंदगी बर्बाद करता है ।
मैंने तुरंत ही अपनी आंखें खोली तो देखा कि सामने तीन - चार पुलिस वाले हाथों में डंडे लिए खड़े हैं और उनके साथ आज सुबह कार में बैठा वही आदमी है जिसने उसे भीख नहीं दी थी ।
इंस्पेक्टर साहब ! मैं इन लोगों पर बहुत दिनों से नजर रख रहा था । आखिरकार आज इस बच्चे के कारण मुझे मेरे काम में सफलता मिली है । इस बच्चे को देखता हूँ तो ना जाने क्यों मुझे अपने मरे हुए बच्चे की याद आ जाती है ? इस बच्चे में अपने बच्चे को देखकर ही मैंने तय किया था कि सिग्नल पर भीख मांगते सभी बच्चों को इस भीख मांगने के अभिशाप से मुक्ति दिलाऊंगा ।
इंस्पेक्टर साहब ! सभी बच्चों को आप गोल्डन रोज बेरी ऑर्फनेज में रख आइए सिवाय इस बच्चे को छोड़कर । यह बच्चा आज से मेरे साथ रहेगा । मैंने जरूरी सभी कार्रवाई कर ली है एडॉप्शन के पेपर भी मैंने तैयार कर लिए हैं । मेरा नाम अशोक शर्मा है और मैं इस बच्चे को गोद लेना चाहता हूँ। ये शब्द अपने लिए सुनते ही मुझे उसी दिन दुनिया भर की खुशी मिल गई थी । दूसरे बच्चों को जब मैं सिग्नल पर उनके पिता के साथ जाते हुए देखता था मेरे मन में भी ललक उठती थी और मैं और मैं उसी समय ईश्वर से प्रार्थना करने लगता था कि मेरी जिंदगी में भी कोई फरिश्ता भेज दो जो मुझे पिता की तरह प्यार दे सके । ईश्वर ने उस दिन मेरी सुन ली । काश ! मेरे पिता भी मुझे इसी तरह से प्यार करते और मेरे साथ समय बिताते । मुझे जन्म देने वाले मेरे बायोलॉजिकल माता - पिता ने तो गरीबी से तंग आकर मुझे भिक्षावृत्ति करने वाले गिरोह से बेच दिया था । बचपन से ही माता - पिता के प्यार के लिए तरसने बच्चे के मन में ख्वाहिशें तो सकती थी लेकिन उससे कौन पूरा करने आएगा यह सोचकर ही मन उदास हो जाता था लेकिन मन में सोची गई ख्वाहिश उस दिन पूरी हो गई थी जब श्री अशोक शर्मा जी ने मुझे कानूनी रूप से गोद ले लिया था ।
कुछ कागजी कार्रवाई करने के बाद श्री अशोक शर्मा कानूनी रूप से मेरे पिता बन गए थे । एक पिता के सभी जिम्मेदारियों का उन्होंने खुशी-खुशी निर्वहन किया था । शुक्रगुजार तो मैं श्री अशोक शर्मा जी की पत्नी साधना शर्मा का भी था जिन्होंने मुझे अपनी जिंदगी में एक मां की कमी कभी भी खलने नहीं दी। आज भले ही वो दोनों मेरी जिंदगी में नहीं है लेकिन उन्होंने मुझे भिक्षावृत्ति के दलदल से बाहर ही नहीं निकाला अपितु मुझे इससे योग्य बनाया कि आज मैं डीएम की कुर्सी पर बैठकर इस पूरे जिले के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने की कोशिश में दिन-रात लगा हुआ हूँ । आज भी हमारे देश में भिक्षावृत्ति एक अभिशाप की तरह ही है लेकिन यही अभिशाप मेरे लिए वरदान साबित हो गया और इसके तहत मेरी जिंदगी सुधर गई । मैंने अपने क्षेत्र से भिक्षावृत्ति जड़ से हटाने की मुहिम शुरू कर दी है । समय तो लगेगा ही लेकिन मैं इसमें पीछे हटने वालों में से नहीं हूँ । कुछ भी हो जाए मैं इस कार्य को करके ही रहूंगा । मुझे उम्मीद है कि एक दिन मुझे कामयाबी अवश्य मिलेगी ।
धन्यवाद