गुॅंजन कमल

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बेटी का कन्यादान

बेटी का कन्यादान

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कन्यादान हमारे समाज में एक ऐसी रस्म है जिसमें एक पिता अपने जिगर के टुकड़े को यानि की अपनी बेटी का हाथ अपने द्वारा चुनें गए दूल्हे को बहुत विश्वास के साथ  देता है और उससे यह उम्मीद करता है कि वह उसकी बेटी को जीवन पर्यंत खुश रखेगा । हमारे समाज में यह माना जाता है कि जब एक पिता अपनी बेटी का कन्यादान सफलतापूर्वक कर देता है तो ये एक बाप के लिए बहुत सौभाग्य की बात होती है लेकिन शादी के माहौल में कन्यादान के समय पंडित जी द्वारा कन्या के पिता को कन्यादान के लिए जब बुलाया जाता है तो कन्या के पिता

रामशरण अपनी कन्या के पास ना आकर वे डॉक्टर सुशांत की पास जाकर खड़े हो जाते हैं । वहां पर विवाह में उपस्थित रामशरण के सभी नाते - रिश्तेदार और दूल्हे पक्ष के  बाराती रामशरण को आश्चर्य की दृष्टि से देखने लगते हैं ।

डॉक्टर साहब ! चलिए ... मेरे साथ चलिए । रामशरण के इतना कहने के बाद डॉक्टर सुशांत रामशरण की तरफ मुस्कुराते हुए कहते हैं कि समधी साहब ! आप जहाॅं कहेंगे मैं वहाॅं चलने के लिए तैयार हूॅं लेकिन सबसे पहले आप अपनी बेटी का कन्यादान तो कर दीजिए ।

वही तो करने के लिए आपको लेकर जा रहा हूॅं । रामशरण द्वारा कही बातों का अर्थ नहीं समझते हुए डॉ. सुशांत .. रामशरण की तरफ देखते हुए कहते हैं कि कन्यादान में बेटी के पिता की जरूरत होती है ना की बेटे के पिता की ।

मैं अच्छी तरह जानता हूॅं कि एक बेटी के पिता को ही कन्यादान का हक है और इसी हक के नाते मेरी बेटी का कन्यादान उसके पिता द्वारा ही होगा । उस पिता द्वारा जिसने मेरी बेटी का कदम - कदम पर साथ दिया ... उसकी जिंदगी बचाई .... उसके गुनाहगारों को ऐसी जगह पहुॅंचाई जहाॅं उन जैसे हैवानों को रहना चाहिए । एक बेटी को जिस समय अपने माता-पिता की सबसे अधिक जरूरत होती है उस समय जिस पिता ने उसका साथ दिया होता है ... जिस पिता ने उसके जीवन को संवारा होता है वही पिता तो सही मायने में कन्यादान का हकदार होता है । प्रियंका कहने को तो मेरी बेटी है .. मैं उसका पिता हूॅं लेकिन जिस समय मेरी बेटी को मेरी आवश्यकता थी मैं उसके साथ नहीं था । ना तो शारीरिक रूप से उसके साथ था और ना ही मानसिक रूप से ही ।

रामशरण द्वारा कहे गए शब्दों का अर्थ समझते हुए डॉक्टर सुशांत ने रामशरण का हाथ पकड़ते हुए कहा कि सबसे पहले तो मैं एक डॉक्टर हूॅं इस नाते किसी भी मरीज को डॉक्टरी सुख सुविधाएं उपलब्ध कराना ... उसका इलाज करना मेरा सबसे पहला कर्तव्य है । रही बात आपकी बेटी प्रियंका का साथ देने की तो मेरी भी एक बेटी है । मैं भी एक बेटी का पिता हूॅं और मैं यह अच्छी तरह से जानता हूॅं कि हम माता-पिता अपनी बेटी का जरूरत पड़ने पर साथ नहीं देंगे तो भला कौन देगा ? ईश्वर ना करें किसी भी बेटी को प्रियंका जैसा दुख झेलना पड़ेगा लेकिन आप ही बताइए ! अगर मेरी बेटी के साथ यह सब हुआ रहता तो क्या मैं अपनी बेटी का साथ नहीं देता ? उसे मरने के लिए छोड़ देता ? नहीं ... बिल्कुल भी नहीं ... हर पिता को अपनी बेटी का साथ देना चाहिए । अगर बच्चे गलती करते हैं तो माता पिता का फर्ज होता है कि उसे सही राह पर लाए ... उसका दोस्त बनते हुए उसके मन को समझे ... उसे समझने का प्रयत्न करें । उसे सही और गलत समझाते हुए उसका कदम - कदम पर साथ ही दें तभी सही मायनों में हम माता - पिता का फर्ज निभा सकते हैं । उन आवारा लड़कों ने प्रियंका के साथ जो घिनौना काम किया उसमें उनकी गलती तो थी ही साथ ही मैं उनके माता-पिता को भी इस बात का गुनाहगार मानता हूॅं कि उन्होंने उसे बचपन से ही लड़कियों और औरतों की इज्जत करना नहीं सिखाया । उसे नहीं सिखाया कि कोई भी लड़की ... औरत उस घर की इज्जत होती है ... मान - सम्मान होती है और हमें अपने घर की इज्जत और मान - सम्मान का आदर तो करना ही चाहिए साथ ही दूसरे की बहू - बेटियों और औरतों का भी मान सम्मान करना चाहिए। उन जैसे लड़कों के माता पिता तब संभालते हैं जब उनके बच्चे गलती कर चुके होते हैं और ऐसी गलती जिसमें घर वापसी की कोई गुंजाइश नहीं होती । उन जैसे दरिंदों की जगह उनका घर नहीं बल्कि जेल की सलाखें होती हैं । जितना दर्द वें लड़की को दिए रहते हैं उससे ज्यादा दर्द उनको मिलना चाहिए । उन्हें इस बात का एहसास होना चाहिए कि उन्होंने एक लड़की की जिंदगी से खेलना है इसके लिए उन्हें अपनी जिंदगी गंवानी पड़ेगी । प्रियंका ने तो कोई गलती की नहीं थी फिर भी उसे ऐसी सजा मिली थी जिसने उसके जीवन के सुनहरे पलों को ही समाप्त कर दिया था । शारीरिक और मानसिक तौर पर स्वस्थ होने में प्रियंका को सात साल लग गए । ईश्वर का शुक्र है और साथ ही प्रियंका की हिम्मत भी कि इसने मजबूती के साथ उन कठिन परिस्थितियों का सामना किया और अपने गुनहगारों को उसकी जगह पहुॅंचाने में हमारा साथ दिया लेकिन हमारे देश में ऐसी भी बहुत सारी लड़कियां हैं जिनके साथ दुष्कर्म होने के बाद हम डॉक्टर्स उसे बचा नहीं पाते हैं । आपकी बेटी बहुत हिम्मत वाली है और आपको तो गर्व होना चाहिए कि आप एक ऐसी बेटी का कन्यादान करने जा रहे हैं जो औरतों के लिए मिसाल बन चुकी है । आपकी बेटी आज एक सफल और लोकप्रिय वकील है जो औरतों और लड़कियों को अपने बिना किसी स्वार्थ के और निःशुल्क उनका केस लगती है और उन्हें न्याय दिलवाती हैं ।

रामशरण जी अपनी बेटी की तरफ देखते हुए कहते हैं कि सच कहा आपने मुझ जैसे पिता को गर्व होना चाहिए कि मेरी बेटी आज इस मुकाम पर खड़ी है और मुझे इस बात का गर्व है भी लेकिन साथ ही मैं आपका बहुत बड़ा आभारी हूॅं कि आपने सब कुछ जानते हुए भी अपने बेटे के लिए मेरी बेटी प्रियंका का हाथ माॅंगा और आज आपके बेटे के साथ मेरी बेटी प्रियंका की शादी हो रही है । आप और आपका बेटा निशांत मेरे लिए ईश्वर तुल्य है जिनका अहसान मुझ जैसा पिता कभी भी चुका नहीं सकता है ।

डॉक्टर सुशांत से उक्त बातें कहने के बाद रामशरण जी उनके पैरों की तरफ जैसे ही झुकने लगते हैं डॉक्टर सुशांत अपने दोनों हाथों से रामशरण जी को पकड़ कर उठाते हुए कहते है कि इसमें अहसान ऐसी कोई बात नहीं है । दोनों बच्चों ने एक - दूसरे को पसंद किया है ऐसे में हम दोनों पिता का यही तो फर्ज बनता है कि हम अपने बच्चों की खुशी को देखते हुए उनकी खुशी में खुश हो और ढेरों आशीर्वाद दें ताकि उनकी आगे की जिंदगी खुशहाली में बीते ।

रामशरण जी डॉक्टर सुशांत के सामने हाथ जोड़ते हुए कहते हैं कि कन्यादान तो आप ही को करना पड़ेगा समधी जी क्योंकि अब प्रियंका मेरी बेटी नहीं है बल्कि आपकी बेटी है । जिस इंसान ने मेरी बेटी के लिए इतना सब कुछ किया वही मेरी बेटी का कन्यादान करेंगे और कन्यादान का यह पुण्य मैं स्वयं आपको देना चाहता हूॅं । चलिए ! मेरी बेटी और पंडित जी सब आपका इंतजार कर रहे हैं ।

डॉक्टर सुशांत की ऑंखों में रामशरण जी की बातें सुनकर ऑंसू आ जाते हैं । तालियों की गड़गड़ाहट के बीच डॉक्टर सुशांत प्रियंका की तरफ बढ़ते हैं और प्रियंका का हाथ अपने बेटे की हाथों में सौंप कर अपनी बेटी का कन्यादान करते है । इसके बाद सात फेरों की रस्म उनके बेटे और बेटी के विवाह के अनुष्ठान को पवित्र करती है । दूल्हा निशांत और दुल्हन प्रियंका  एक - दूसरे से सदा साथ रहने और साथ निभाने जैसे सात वचन देकर इस विवाह को पूर्ण करते हैं ।



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