ख़ुदगर्ज़ तो नहीं मैं ?
ख़ुदगर्ज़ तो नहीं मैं ?
लघुकथा:
अहमदी इलाके में फहाहील स्थित कुवैत आयल कम्पनी के एम.डी. ए.जी.अयूब के चैम्बर में डिप्टी चीफ़ इंजीनियर अनुपम वर्मा और एम.डी.के बीच तीखी बहस चल रही थी।
"मैं..मैं ऐसे जाब को लात मारता हूं जिसमें एक इम्प्लाई को उसके बाप की बीमारी में भी शरीक होने की छुट्टी न मिल सके।...सर ! मैंने अपने खून पसीने को लगाया है और आपकी कम्पनी को विश्व की नम्बर एक कम्पनी बनाने में मदद भी की है।"अनुपम बेकाबू बोल रहा था।
"आई नो । बट व्हाट कैन वी डू? देयर इज़ कोरोना एफेक्ट इन आल ओवर वर्ल्ड।नो फ्लाइट टू इंडिया। सो फ़ील अवर, हेल्पलेसनेस डियर अनुपम ! " एम.डी. अपनी बात समझाते हुए बोला।
घंटो बीत गया लेकिन इस बहस का कोई नतीजा सामने नहीं आया।
थके और दुखी मन से अनुपम उस दिन रिफाइनरी वापस चला गया। उसका मन कामकाज में नहीं लग रहा था।वह अपनी विवशता की इस घनीभूत पीड़ा से तिलमिला रहा था कि उसके मोबाइल की घंटी घनघना उठी। इंडिया से फोन था।
"हेलो,...हेलो...बेटा क्या हुआ ?..तुम्हें छुट्टी मिली?" फोन पर मम्मी की कातर आवाज़ गूंज रही थी।
"हां,..हां..मम्मी, मैं कोशिश में लगा हूं और उम्मीद है मैं आकर पापा को संभाल लूंगा...आप धीरज रखिए...और हां, मैनें आपके एकाउंट में पांच लाख डाल दिये हैं।पापा की दवाई में कोई कोताही ना करना।"अ नुपम ने दुखी मन से उत्तर देना चाहा लेकिन उधर से उसकी मम्मी का रोना जारी रहा।
"मम्मी,मेरी विवशता समझने की कोशिश करो..प्लीज़ रोओ मत।मैं..मैं..टूटकर बिखर रहा हूं। तुम हिम्मत रखकर पापा को हर संभव बढ़िया से बढ़िया इलाज दिलवाओ..मैं जल्दी पहुंच रहा हूं।"
अभी ढाढस के कुछ और शब्द वह बोल पाता कि फोन कट गया था।
शाम होते होते अनुपम जब घर पहुंचा तो उसकी पत्नी सविता, बच्चे आकाश और चमन इंडिया में की दादू के कैंसर की बीमारी और चल रहे इलाज से अवगत हो चुके थे। सविता झट किचन जाकर चाय लेकर आई और अनुपम से इंडिया चलने के बारे में पूछने लगी। अनुपम भला उनको क्या बताता?
एक दिन दो दिन..और अब हफ्ते हो चले हैं। बात जहां की तहां ।
उधर इंडिया में भोपाल से उसके सगे सम्बन्धी भी फोन पर लगातार दबाव बना रहे थे कि कैंसर के ट्रीटमेंट के दौरान उसकी अनुपस्थिति को लोग किस प्रकार ले रहे हैं। कीमोथेरेपी और रेडिएशन के दौर से गुज़र रहे उसके पापा अब धीरे धीरे लिक्विड डायट पर आ चुके थे।
आज अनुपम जब अपनी रिफाइनरी पहुंचा तो उसके कलीग आयुष्मान ने उससे एक गोपनीय बात शेयर की। उसने बताया कि मैनेजमेंट ने अनुपम और एम.डी.के बीच हुई तीखी बहस को आधार बनाकर अनुपम के विरुद्ध कार्यवाही करने का मन बना लिया है। वैसे भी इन दिनों कोरोना के चलते जो आर्थिक अवमूल्यन का दौर चला है एडमिनिस्ट्रेशन के टारगेट पर गैर कुवैती आ गये हैं। उन्हें तो बहाना चाहिए नौकरी से बर्खास्तगी का ।
अनुपम हैरत में आ गया। उसे याद आ गया आज से लगभग तेरह साल पहले का वह समय जब उसने इंडिया की इंडियन आयल रिफाइनरी के अच्छे जाब को छोड़कर धन कमाने की हर युवा की तरह इच्छा लेकर कुवैत आने का निर्णय लिया था।
वर्ष 2007 के सितंबर की पन्द्रहवीं तारीख़ को उसने उड़ान भरी थी। मन में ढेर सारे सपने लेकर कि वह खूब मन लगाकर काम करेगा, रुपये कमाएगा और..और अपने दोनों बच्चों को वह सब सुविधाएं सुलभ कराएगा जिसे वह अपने बचपन में अपने पिता की सीमित आय के कारण हासिल नहीं कर पाया था। मध्यपूर्व के इस रेगिस्तानी देश की करेंसी कुवैती दीनार दुनिया की सबसे ताकतवर करेंसी बनकर उभर चुकी थी। पेट्रोल, डीजल और उसके अनुषांगिक पदार्थ का कोई विकल्प सामने नहीं आया था। एक कुवैती दीनार का भारतीय मूल्य दो सौ बयालीस के क़रीब था। उसको एक लाख बीस हजार कुवैती दीनार हर महीने की सेलरी मिल रही थी। बच्चों ने वहां के सबसे महंगे स्कूल में पढ़ना शुरु कर दिया था।
अनुपम और उसकी पत्नी सविता की दुनिया मनचाहे सपनों से रंग गई थी। वे कभी कुवैत टावर्स तो कभी अल मुबारकिया रेस्टोरेंट अपनी शाम बिताते थे।बच्चों ने कुवैत की हर घूमने वाली जगहों को देख लिया था। ग्रैंड मस्जिद, ग्रीन आइलैंड, नेशनल म्यूजियम, आधुनिक वास्तुकला का सिंहनाद करता सीना ताने खड़ा अल हम्रा टावर, लिबरेशन टावर, शेख जबेर अल अहमद कल्चरल सेंटर, अल शहीद पार्क, शईफ पैलेस, कुवैत जू, नमील आइलैंड, मस्लीहा बीच....और जाने क्या क्या !
अनुपम ने ऐसी नौकरी की कल्पना नहीं की थी लेकिन इस अचानक आई ख़बर ने उसे बेचैन कर रखा था। दुनिया भर में कोरोना अपना हाहाकारी रुप ले चुका था ।भारत भी उससे अछूता नहीं था। महीनों के लाक डाउन से अभी अभी उबरा था और फिर वैसी ही परिस्थिति बनने लगी थी। वंदे भारत मिशन के तहत अपने अपने देश जो भारतीय चले गये थे उनकी वापसी पर अब मैनेजमेंट ने चुप्पी साध लिया था। मैनेजमेंट अपनी शातिराना हरकतों पर अब भी अड़ा हुआ था और अनुपम को पक्का यक़ीन था कि अगर वह मैनेजमेंट को नाराज़ करके इंडिया गया तो वे उसको वापस नहीं बुलाएंगे...कतई नहीं बुलायेंगे।
इंडिया में पापा का कैंसर ट्रीटमेंट शुरू हो चला था। प्रतिदिन अनुपम व्हाट्सएप पर मां से बात करके प्रगति पूछता। अपनी विवशता बताता।
आज तो अनुपम इतना परेशान हो उठा कि उसने रिजाइन करके इंडिया वापस जाने की ठान ली। यार दोस्तों ने तो समझाया ही उसकी पत्नी सविता ने बच्चों के कैरियर की दलील दी। आकाश और चमन दोनों बच्चों का फाइनल ईयर था ..एक का हाईस्कूल और दूसरे का इंटर .....और ऐसे में इंडिया जाने का मतलब उनका कैरियर समाप्त हो जाना है।
तभी फोन की घंटी घनघना उठी।
"हेलो, हां मम्मी !पापा कैसे हैं?" अमन ने फोन उठाते ही पूछा।
"बेटा, पापा की हालत ठीक नहीं है। उनको कोरोना हो गया है। कल रात उनको इमरजेंसी में एडमिट किया गया है।" इतना कहकर वे रोने लगी थीं।
अनुपम गश खाकर गिरने लगा तो उसकी पत्नी ने उसे संभाला।
फोन कट चुका था और सभी लोग अनजान भय से सहम गये थे।
रात जागते सोते बीती। सुबह नींद का एक हल्का झोंका आया ही था कि एक बार फिर फोन की घंटी घनघना उठी।
अनुुपम की बहन का फोन था।
"भैय्या, पापा नहीं रहे। उन्हें थर्ड लेवल का कोरोना इन्फेक्शन हो गया था और डाक्टर उन्हें बचा नहीं सके।" बहन की सिसकियां थम नहीं रही थीं।
अनुुपम नि:शब्द था। वह बोले भी तो क्या ? सांत्वना भी दे तो क्या?
उसने आनन फानन में तय कर लिया कि उसे अब एक सेकंड यहां नहीं रुकना है। वह अभी इसी समय एयरपोर्ट निकलने को उद्यत था।
सविता बोल उठी-"कम से कम एक बार जानकारी तो ले लो कि इंडिया के लिए फ्लाइट शुरू हुई है या नहीं?"
उसको यह बात समझ में आई। उसने फोन पर जानकारियां जुटानी शुरु कर दीं। पता चला कि फिलहाल सारी फ्लाइट्स निरस्त हैं। उसने इंस्ताबुल, लंदन या पेरिस होकर भी इंडिया जाने का प्लान बनाना चाहा लेकिन कोरोना की दूसरी लहर ने सारी फ्लाइट्स रद कर रखी थीं।
अनुपम का सिर मानो फटा जा रहा है। उसे समझ में नहीं आ रहा है कि भगवान इतना निर्दयी कैसे हो सकते हैं? उसके होंठ बुदबुदा उठते हैं..
"घर से निकल आया हूं दौलत को कमाने के लिए,
और अब तड़प रहा घर के ख़जाने के लिए ।
हो सके तो मुझको माफ़ करना मेरे जन्मदाता,
मैं तो ख़ुदगर्ज़ हो गया हूं ज़माने के लिए !"
(समाप्त)