खड़ूस
खड़ूस
ट्रेन में अपनी सीट पर बैठी खिड़की से बाहर झाँकती अमृता अंदर की ओर देखना ही नहीं चाहती थी। अकेले सफर कर रही स्त्री को आज के आधुनिक युग में भी पुरुष समाज किसी सहज सुलभ वस्तु की भाँति ही नजरें गड़ाकर देखता है।
अब सफर करना तो छोड़ा नहीं जा सकता, और निगाहों के तीर तब तक घायल नहीं करते जब तक निगाहें न मिलें। बस इसीलिए सफर के दौरान या तो वह कोई पत्रिका पढ़ती थी या इसी प्रकार प्रकृति को निहारती।
अचानक ट्रेन किसी स्टेशन पर रुकी और बाहर खड़े कुछ नए यात्री भीतर आने को उद्यत हुए।
अचानक अमृता की नजर एक युवक पर पड़ी, जो कंधों पर बैग लटकाए कूपे के ठीक सामने खड़ा था। एक पल को निगाहें मिलीं और अगले एक मिनट में वह युवक उसी के कूपे में था। कुछ सहयात्री उतर भी गए थे और सामने खिड़की वाली सीट जो अभी अभी खाली हुई थी, वहीं विराजमान हो गया।
इस हलचल की वजह से अमृता का पूरा ध्यान ट्रेन के अंदर लौट आया था। सामान की सुरक्षा भी तो सुनिश्चित करनी थी। कहीं कोई जाते जाते सीट के नीचे से उसका बैग भी न उतार ले जाए।
सामने वाले युवक से निगाहें मिलीं तो वह न जाने क्यों मुस्कुरा दिया। यह एक सहज सामाजिक मुस्कान थी, पर न जाने अमृता ही क्यों असहज हो उठी और बिना मुस्कान का जवाब दिए पुनः खिड़की से बाहर देखने लगी।
"कहाँ जा रही हैं आप?"
युवक बातचीत शुरू करना चाहता था।
लेकिन अमृता ने एक पल घूर कर उसे देखा, निगाहों से ही जैसे पूछा 'आपसे मतलब?'
और पुनः बाहर देखने लगी।
युवक ने और कुछ नहीं पूछा और अपने मोबाइल फोन में व्यस्त हो गया। शायद किसी लड़की की तस्वीर देख कर मंद मंद मुस्कुरा रहा था। अपने स्वभाव के विपरीत अमृता की रुचि न जाने क्यों युवक में जाग रही थी।
उसने कनखियों से उसे मुस्कुराते देखा और मन ही मन कहा
"हुँह, गर्लफ्रेंड है फिर भी हर लड़की से बात करनी है जनाब को।"
युवक बीच बीच में अमृता को भी देखता जाता था। कई बार निगाहें मिलीं पर अमृता उदासीन ही थी।
मुरादाबाद आया तो अमृता सीट के नीचे से अपना बैग उतारने लगी, युवक ने सहायता के लिए हाथ बढ़ाया तो अमृता ने घूर कर देखा। युवक ने दोनों हाथ पीछे खींच लिए और धीरे से बुदबुदाया 'खड़ूस'।
अमृता के कानों में भी यह शब्द पड़ा पर वह बिना कुछ बोले उतर गई। युवक भी पीछे पीछे उतर गया, और अपनी राह पकड़ी।
घर पहुँच कर माँ बाबा और छोटी बहन से बड़े प्यार से मिली वह। उबाऊ सफर की थकान पल भर में मिट गई थी। बिना रुके बोलती जा रही थी वह। कितना कुछ था बताने के लिए, इतने दिनों में जो घर आई थी।
"अच्छा अब आराम कर ले कुछ देर, फिर कल क्या पहनना है दोनों बहने मिलकर सोच कर रखना, कल लड़के वाले आ रहे हैं देखने"
"फोटो तो दिखाओ माँ"
अमृता बोली तो बहन ने जवाब दिया
"अरे दीदी फोटो ही नहीं मिली अब तक। वह लोग कहते हैं लड़के को फोटो खिंचवाने का शौक नहीं है, कोई अच्छी फोटो है ही नहीं लड़के की, सीधे मिल ही लेना। अब बताओ आजकल हर मोबाइल में कैमरा है तो ऐसा संभव है कि फोटो ही न हो? मुझे तो लगता है कोई खड़ूस आने वाला है तुझे देखने जिसे किसी बात का कोई शौक नहीं है। मैं तो सारा दिन सेल्फी लेती हूँ अपनी और उन जनाब के पास कोई ढंग की फोटो नहीं है।"
न जाने क्यों 'खड़ूस' शब्द सुनकर अमृता मुस्कुरा उठी।
"तू चुप रह, इतना अच्छा परिवार है और तेरे पापा ने तो लड़का भी देखा है, इतनी तारीफ कर रहे थे। ये रिश्ता जुड़ जाए तो सौभाग्य होगा हमारा।"
माँ ने बहन को झिड़का।
अगले दिन नियत समय पर लड़के वाले आ गए। अमृता बैठक में आई और चुपचाप सोफे पर बैठ गई। लड़के के मम्मी पापा के कुछ प्रश्नों का उत्तर देते हुए जैसे ही लड़के पर नजर पड़ी वह घबरा उठी
यह तो वही था ट्रेन वाला, जो कल उसे खड़ूस कह रहा था। ये रिश्ता तो पक्का नहीं होने वाला। युवक उसे देख कर मुस्कुराया। आज की मुस्कान तो कल से भी मोहक थी, परंतु अमृता को उस मुस्कान में व्यंग ही दिख रहा था।
कुछ देर बाद दोनों को एकांत में बातचीत का अवसर दिया गया।
लड़के ने चुटकी ली
"हाँ तो मैडम खड़ूस, क्या विचार है आपका मेरे बारे में"
"रहने दीजिए, आप भी कम खड़ूस नहीं, एक अच्छी तस्वीर तक खींच कर भेज नहीं सके। अगर मैंने तस्वीर देखी होती तो वैसा व्यवहार नहीं करती। पर आप इतनी आत्मीयता क्यों दिखा रहे थे, आप हर लड़की से दोस्ती करने का प्रयास करते हैं क्या?"
"क्योंकि मैंने तस्वीर देखी थी, और ट्रेन वाली लड़की का तस्वीर से मिलान भी कर लिया था। आप भी देखिए"
कह कर उसने मोबाइल में अमृता की फोटो निकाल कर आगे कर दी।
"तो अब क्या विचार है इस खड़ूस के बारे में आपका?"
अमृता ने जानना चाहा।
"ये खड़ूस पसंद न आई होती तो आज यहाँ आता ही नहीं"
इसी के साथ दोनों खिलखिला दिए।
अंजाना राही अब अंजाना नहीं था।

