खौफ़
खौफ़


खौफ़ का भयानक चेहरा कल मैंने देखा था,हँसियेगा नहीं आप। क्या कहा आपने, देश की राजधानी में कैसा डर?अरे यही तो आपको पता नहीं। इस शहर में जैसे तो खौफ़ मंडराता रहता है। अब कल की बात ही देख लीजिए.....
हुआ ये की एक महिला ऐसी ही रोजमर्रा की चीज़े लाने के लिए शाम के समय छोटी सी लड़की को लेकर ऑटो में गयी। गलती से वह अपना फ़ोन घर में भूल गयी थी। वह किसी और शहर से मेहमान के तौर पर देश की राजधानी में आयी थी।ऑटो वाले ने उन्हें जहाँ उन्हें जाना था वहाँ ना उतारकर कही और उतार दिया।
शाम का समय,अनजान सी जगह,साथ में छोटी सी लड़की इन सबसे वह महिला खौफ़जदा हो गयी थी।
क्या करे? कैसे करे? सारे सवाल उसका पीछा करने लगे थे।उसके पास पैसे थे, समझ भी थी।था नहीं तो एक भरोसा की दूसरा ऑटो भी अगर घर की जगह कही और पहुँचा देगा तो?
चलिये, शहर में कुछ अच्छे लोग भी भरोसे लायक मौजूद है तभी वहाँ खड़े किसी आदमी ने अपना फ़ोन देकर उनके घर के लोगो से बात करवायी और फिर वह महिला और छोटी सी लड़की अपने घर वापस आ गयी।आखिरकार इस खौफ़नाक वाक़ये का अंत हुआ।
यह शहर सूंदर तो है लेकिन इस शहर में लोग खौफ़ के साये में रहने के जैसे आदी हो गये लगते है।आये दिन की खबरें इस बात को पुख्ता करती रहती है।
मुमकिन हो की ये मुमकिन ना हो.....