खाने की गोली
खाने की गोली
"बच्चों जल्दी से नाश्ता करने आ जा जाओ नहीं तो स्कूल के लिए देर हो जाएगी", डाइनिंग टेबल पर बैठे हुए तनु ने आवाज लगाई।
(अरे यह कैसी मम्मी है ? मम्मियां तो इस समय किचन में होती है, नाश्ता बना रही होती है। तनु ने शायद हमने नाश्ता बना कर मेज पर लगा दिया है)
नील और नीति भागते हुए आकर मेज पर बैठ गए ।
(अरे यह क्या ? मेज तो बिल्कुल खाली है। सिर्फ कुछ दवाइयों के डिब्बे जैसे रखे हुए हैं)
वह दोनों दवाइयों को डिब्बे खोलकर एक - एक गोलियाँ निकाल कर खाने लगे।
(क्या यह कुछ विटामिन की गोलियाँ है जो वह नाश्ते से पहले लेते हैं ?)
तबसे नीति चिल्लाई, "मम्मा देखिए ! नील फिर से जंक फूड की गोलियाँ खा रहा है"।
तनु ने आँखे तरेरते हुए कहा, "नील कितनी बार तुमको समझाया नाश्ते में जंक फूड की गोलियाँ मत लिया करों"।
(यह क्या नाश्ते में खाने की जगह गोलियाँ, कौन खाता है ? )
तबसे तनु के पति का आकर मेज पर बैठते हुए बोले, "तनु मेरी चाय, प्लीज अब यह मत कहना चाय नही बनाई है, सिरप पी लो"।
तनु मुस्कुराते हुए बोली, "हाँ मैं यही कहने वाली थी। आप भी न, एक कप चाय के लिए बर्तन गंदे करो, समय नष्ट करो, ऊपर से पानी का इस्तेमाल अलग से करना पड़ेगा। मालूम है ना पीने का पानी कितना मंहगा है"।
"अरे यार तनु, सिरप में वो चाय का मजा नही आता है", तनु के पति तरुण मुँह बनाते हुए बोले।
नील बोला, "क्या पापा आप भी, पंद्रह मिनट लगते है, गर्म चाय को पीने में। सिरप पंद्रह सेकेंड में पी कर हो जाता है।
"अरे बेटा तुम नही समझोगे, तुम गोली युग की पैदाइश, तुम नही जान सकते वो चाय की चुस्कियों का मजा", तरुण चाय का स्वाद मुँह में महसूस करते हुए बोले।
"तनु मैं अपने लिए चाय बनाने जा रहा हूँ, तुम पीओगी, बच्चों किसी को पीनी है"?
"पापा हम पहले ही दूध का सिरप ले चुकें है"।
(तरुण चाय बनाने किचेन में चला जाता है )
नील नीति से पूछता है, "कल तेरी सहेली की पार्टी कैसी थी "?
"अरे भैया पूछो मत, मजा आ गया। बीस तरह की तो मिठाई के जेल पेस्ट थे। फ्रेश फ्रूट (ताजे फलों) के कैपशूल थे, आईसक्रीम ड्रॉप्स (बूंदे) थे, दक्षिण भारतीय फूड पाउडर (चूर्ण), शर्बत और फालूदा के सिरप और जंक फूड, चाइनीज़ फूड, पंजाबी फूड की अलग अलग तरह की गोलियाँ थी"।
तनु ने आँखे दिखाते हुए पूछा, "बहुत अधिक गोलियाँ तो नही खा ली न। नही तो डाईजेस्टिव ओइन्टमेंट लगाना पड़ेगा"।
"नही मम्मा लिमिट में लिया था", नीति अच्छी बच्ची की तरह बोली और नील को देख कर मुस्कुरा दी।
नील बोला, "मैंने मिस किया। काश मेरा भी कोई दोस्त पार्टी देता। मम्मा चलो न एक दिन बाहर खाने, जैसे पहले बचपन मे हम होटल में जा कर खाते थे"।
तनु हाथों को हिलाते हुए बोली, "उस समय की तो याद ही मत दिलाओ। कितना काम करना पड़ता था। खाने में आधा घन्टा लगता था। पर पूरा दिन खाना बनाने, बर्तन माँजने और सबसे बढ़कर तो यह सोचने में बीत जाता था कि आज क्या बनाऊँ ? सुबह यह बनाया था तो अब शाम को क्या बनाऊँ। ऊपर से सबके नखरे अलग, मैं यह नही खाता, यह अच्छा नहीं बना है"।
"हाँ क्या मम्मी ? आप इतनी मेहनत से बनाती थी और हम सब ऐसे बोलते थे", नीति बोली।
"हाँ बेटा, तुम सब तो छोटे थे। पर तब परिवार के लोगों का यही हाल था। संयुक्त परिवार था। सारा दिन रसोई में ही बीत जाता था", तनु लम्बी उमांस लेते हुए बोली।
नील चिढ़ते हुए बोला, "मैं आपसे घर पर बनाने के लिए नही होटल में जा कर खाने की बात कर रहा हूँ"।
"अरे बेटा खाना खाना बहुत मँहगा पड़ता है। ठीक है पापा होटल वाले खाने की स्पेशल गोलियाँ ले आएंगे", तनु नील को बहलाते हुए बोली।
"नही मम्मा प्लीज, ले कर चलो न" ।
"नहीं बिल्कुल नही, कह दिया न एक बार नही जाना तो नही जाना। पापा से गोलियाँ मँगवा दूँगी", तनु जोर से बोली।
तनु को अपने कंधे पर किसी का स्पर्श महसूस हुआ। उसने घूम कर देखा, तरुण खड़े मुस्कुरा रहें थे।
वह मुस्कुराते हुए बोले, "आज फिर तुम अपने कल्पनालोक में हमलोगों को धमका रही थी।
तनु अपने सिर पर हाथ मारकर मन में सोची, "यार तनु यह सिर्फ एक कल्पना थी। कोई खाने की गोलियाँ, कैप्सूल या सिरप नहीं होती है। चल उठ किचेन में फटाफट खाना तैयार कर"।
तनु मुस्कुराते हुए बोली, "नही, आप चाय बनाने जा रहे थे। तो मैं आपको किचेन में जाने से रोक रही थी"।
तरुण ने प्यार से तनु को बाँहो में भर लिया, "मेरी प्यारी पत्नी , इतना प्यार करती है मुझसे कि उसे अपनी कल्पना में भी मेरा किचेन में जाना पसंद नही"।
तनु तरुण की बाँहो में सिमटी सोच रही थी, "अब इन्हें क्या बताऊँ। मेरी कल्पनाओं में तो मुझे खुद भी किचेन में जाना पसंद नही है। काश सच में ऐसी गोलियाँ आती होती तो हम औरतों को कुछ काम करना ही नही पड़ता। चलिये आधा काम कम हो जाता"।
फैंटसी पर लिखना था। मेरे जीवन में या हमारी उम्र के लोगों के बचपन की लगभग सभी कल्पनाएं आज साकार हो चुकी है। वह आकाश में उड़ने का सपना हो (हवाईजहाज हमारे समय में भी थे मैं बात कर रहीं हूँ, ग्लाइडर, पैराग्लाइडिंग और पैरासेलिंग की) या जादुई दर्पण (मोबाइल वीडियो कॉलिंग) में दूर बैठे लोगों से बातें करने का या आकाश को छूने का (गगनचुंबी इमारते है)। तो क्या लिखूँ ? पूरा जीवन खंगाल डाला। क्या कोई परिकल्पना थी जो आज तक साकार नही हुई ? हाँ एक और फैंटेसी थी मेरी, मेरा एक कमरा हो पूरा किताबो से भरा, मैं जितना मर्जी उतना पढ़ सकूँ । आज मोबाइल एप्प द्वारा वो भी साकार हो गयी है।
फिर खंगालते खंगालते पहुँची, ससुराल के दिनों में। बाइस लोगों का संयुक्त परिवार सारा दिन रसोई में ही बीत जाता तब मैं हमेशा यही सोचती काश कोई खाने की गोली का आविष्कार कर देता तो ना खाना बनाना पड़ता, न बर्तन माँजने पड़ते न ही सोचना पड़ता कि आज खाने में क्या बनाऊँ ।
सोच कर देखिएगा पूरी जिंदगी दो समय खाने के इंतजाम के खटराग में बीत जाती है। खाना न हो तो कमाना भी न पड़े, न कुछ काम करना पड़े। तो बस अपनी इसी फैंटेसी पर कहानी लिख दी। पढ़ कर अपनी अमूल्य समीक्षा अवश्य कीजियेगा।
