खामोश मोहब्बत!
खामोश मोहब्बत!
भाभी! भाभी की आवाज लगाती राधा पड़ोस के शर्मा अंकल के घर में भागी जा रही थी। बचपन से राधा शर्मा जी और उनकी पत्नी को काका, काकी पुकारती थी। उनके ऊपर अपना हक भी जताती रही है।शर्मा जी स्वभाव से चंचल बातूनी राधा को अपनी बेटी मानते थे। उनके दो बेटे थे जब से बड़े बेटे की शादी हुई थी राधा का अधिकतर समय उनकी नई नवेली दुल्हन रश्मि, यानी कि उसकी प्यारी भाभी से बतियाते ही बीतता था। शर्मा जी शहर के जाने माने उद्योगपति थे, तीनों पिता पुत्र देर रात ही फैक्टरी से लौटते थे। तब तक राधा, भाभी के साथ दुनिया जहान की बाते किया करती थी।
एक दिन किसी काम से घर आई राधा रश्मि के हंसने की आवाज सुन, सीधे रश्मि के कमरे की तरफ दौड़ पड़ी। दौड़ती भागती राधा दरवाजे पर किसी अनजान युवक को देख गिरने वाली थी,तभी उसने राधा का हाथ पकड़ उसे थाम लिया। भौचक्की सी राधा उसकी आंखो में आंखे डाले खो सी गई थी, तभी रश्मि की हंसी की आवाज से उसकी तंद्रा टूटी। ननद रानी कभी तो देख कर चला करो। राधा थोड़ी झेप कर चुप चाप से खड़ी थी। रश्मि ने उस युवक से परिचय करवाया।
राधा इनसे मिलों, "ये हैं हमारे भैया श्याम।" राधा अपनी प्रश्नवाचक नजरों से पूछ रही थी।पहले तो कभी नहीं दिखे आपके भैया।
रश्मि ने फिर बताया, "श्याम भैया मर्चेंट नेवी में है। शादी के वक्त भी जहाज पर थे, इसलिए नहीं आ सके थे।"
राधा ने धीरे से नमस्ते किया।
"राधा तू बैठ! मैं चाय और पकोड़े बना कर ले आती हूं!" बोल रश्मि किचेन की तरफ चल पड़ीबातूनी राधा तो जैसे बुत बन गई थी। श्याम ने ही बात की शुरुआत की, राधा नाम है आपका?
"जी!" राधा बस इतना बोल पाई।
"सुना है आपका शहर बहुत सुंदर है। अपना शहर घुमाएंगी मुझे।" श्याम ने पूछा।
"जी!" राधा ने बोला
इस बार श्याम जोर से हंस पड़े "फिर से जी, आपको कुछ और बोलना नहीं आता।"
राधा बस मुस्कुरा दी।
तभी रश्मि चाय और पकोड़े ले आई, "अरे हां! राधा मेरे भैया को जैसलमेर घुमाने की जिम्मेदारी तेरी।"
"जी भाभी!कल सुबह 6 बजे जैसलमेर किला देखने चलेंगे। आप तैयार रहना", राधा तिरछी नजरों से श्याम को देख कर बोली "भाभी मैं जा रही हूं, मां इंतेजार कर रही होगी", बोल राधा श्याम को कुछ बोलने का मौका दिए बिना वहां से चल पड़ी।
राधा का दिल जोरो से धड़क रहा था।ये क्या हो गया है उसे,उसने पहले कभी ऐसा कुछ महसूस नहीं किया था।घर आ कर राधा ने मां को बताया, भाभी के भाई श्याम और उनको शहर घुमाने के प्रोग्राम के बारे में।फिर अपने कमरे में जा अलमारी से एक एक कर कपड़े निकलने लगी।जाने कैसा खिंचाव है, पर राधा कल सबसे खूबसूरत दिखना चाहती थी।
इधर श्याम चाय की चुस्कियां लेता हुआ मोबाइल चला रहा था तो उसकी आंखों में राधा की हिरणी सी आंखे तैर जा थी।कैसे वो हर बात पर अपनी आंखें बड़ी कर ले रही थी।सोच कर उसे हंसी आ गई। दिल का एक कोना सुबह होने का बेसब्री से इंतजार कर रहा था।
सुबह के पांच बज गए थे, श्याम तैयार हो कर ड्राइंग रूम में बैठा टीवी देखने लगे । नेवी में ऑफिसर होने की वज़ह से वो समय के पाबंद थे।
थोड़ी देर में दरवाजे पर होने वाली दस्तक की आवाज सुन, श्याम ने पलट कर देखा तो राधा खड़ी मुस्कुरा रहीं थी।सुर्ख गुलाबी रंग का सूट पहने मुस्कुराती हुई राधा को देख श्याम अपलक उसे निहार रहे थे।
शुभप्रभात के अभिनंदन के बाद राधा ने श्याम से पूछा, "भाभी तैयार नहीं हुई अभी।" श्याम ने ना में सर हिला दिया।
तभी रश्मि अंदर से आई और उसने राधा से बोला, "कल रात तुम्हारे भैया बहुत देर से आए थे तो सुबह मेरी आंख देर से खुली। राधा तू श्याम भैया को जैसलमेर घुमा दे ना।"
"भाभी", राधा की हिचकिचाहट देख श्याम ने बोला "क्यों नहीं घुमाएगी।"
राधा ने बस पलकें झुका ली, रश्मि ने फिर कहा "आप दोनों जाओ अब मैं थोड़ी देर और सो लूं।श्याम भैया आप इनकी कार ले जाओ ।"
"ठीक है" बोल, श्याम कार की चाभी ले कार लेने चला गया।
पता नहीं क्यों पर राधा को घबराहट सी लग रही थी। वो यूं श्याम के साथ अकेले, उसकी तो जैसे बोलती बन्द हो जाती है श्याम के सामने।
इधर श्याम के दिल का हाल भी कुछ कुछ ऐसा ही था। कार निकलते वक्त सोच रहा था, कितनी लड़कियों से मिला होगा वो अभी तक पर राधा की तरफ ये कैसा खींचाव महसूस हो रहा है उसे।श्याम ने पार्किंग से कार निकल दरवाजे पर रोकी, तो राधा उसकी बगलवाली सीट पर आ बैठी।
थोड़ी ही देर में दोनों जैसलमेर के किले के सामने थे।श्याम कार पार्किंग में लगा राधा के साथ धीरे धीरे किले के अंदर जाने लगे।
बीच बीच में श्याम जब भी ने राधा को देखता तो उसकी बड़ी बड़ी आंखें शर्म से झुक जाती। गालों का रंग सुर्ख गुलाबी हो जा रहा था। श्याम मुस्कुरा दिए और दूसरी तरफ देखने लगे। क्या कहे वो?क्या इसे ही प्यार कहते है?
दोनों चुप थे लेकिन उनकी खामोशी हजारों बाते कर रही थी।चलते चलते दोनों किले के ऊपर पहुंच चुपचाप से बैठ गए। दोनों के ओठ खामोश थे मगर दिल बाते कर रहे थे। इकरार की बाते इजहार की बात जिसकी भाषा सिर्फ प्यार में दीवाने दिल ही समझ पाते है। पहली नजर का प्यार ऐसा ही तो होता है।
सामने पूरा जैसलमेर शहर उगते हुए सूर्य की लालिमा से रोशन हो रहा था। श्याम ने धीरे से राधा को धन्यवाद दिया इस खूबसूरत सुबह को उसके साथ और खूबसूरत बनाने के लिए।राधा ने बस मुस्कुरा कर पलकें झुका दी।
सामने उगते सूर्य की लालिमा संग राधा के चेहरे पर भी हया की लाली घुल गई थी। पहले प्यार का रंग ही कुछ ऐसा होता है। दिल पर कहां काबू रख पाया है कोई आज तक।
दोनों अपने अपने खयालों में गुम सोच रहे थे क्या इससे प्यार कहते हैं । जैसे पिछले जन्म का कोई अनजाना रिश्ता हो दोनों के बीच जो पहली मुलाकात में ही बरसो की पहचान का एहसास करवा रहा था।उनकी खामोशी उनके मोहब्बत का इजहार कर रही थी।
थोड़ी देर साथ बिताने के बाद, अपने अनकहे जज्बातों को दिल में दबाए दोनों घर वापस हो लिए। हां श्याम ने मन ही मन निश्चय कर चुके थे उनकी जीवनसंगनी सिर्फ और सिर्फ राधा ही होगी। जिंदगी और खूबसूरत हो जाती है जब आपका पहला प्यार आपके जीवनसाथी के रूप में हर सफर में आपके साथ होता है।

