मुकम्मल प्यार
मुकम्मल प्यार


आज उनकी शादी की 10 वीं सालगिरह थी। अनु बगीचे से दो सुर्ख लाल गुलाब तोड़ चाय की ट्रे में सजा अमित को जगाने चल पड़ी। अमित अधखुली आंखों से अनु को देख मुस्कुरा रहा था।
अनु ने जैसे चाय की ट्रे बेड की साइड टेबल पर रखा अमित ने उसे बाहों में भर लिया। शादी की सालगिरह मुबारक हो अनु, बोल अमित ने एक प्यारा सा चुम्बन उसके गालों पर अंकित कर दिया। अनु किसी नई नवेली दुल्हन की तरह अमित की बांहों में सिमटी जा रही थी। अमित की आंखो में आंखे डाल अनु ने भी उसे शादी की सालगिरह की मुबारक बाद दी।
चाय ठंडी हो रही है बोल, अनु ने खुद को अमित की पकड़ से छुड़ाने की कोशिश की तो अमित ने और जोर से जकड़ लिया।कैसे छोड़ दूं अनु? याद है तुम्हे, तुम्हारा हाथ थामने के लिए कितनी लड़ाईयां लड़ी थी मैंने।
अनु ने प्यार से अमित का माथा चूम लिया।कैसे भूल सकती हूं मैं, कितनी कठिन लड़ाई थी हमारी। सिर्फ घरवालों से नहीं पूरे समाज से लड कर हमने एक दूसरे का साथ पाया है।
चाय की चुस्कियों के साथ अमित अतीत की यादों के समंदर में गोते लगा रहा था। अमित को तो पता भी नहीं चला था, कब उनकी मित्रता में प्यार के अंकुर फूट चुके थे। बचपन से जानते थे दोनों एक दूसरे को। अमित ने अनु को कभी खुद से अलग समझा ही नहीं था। वो हमेशा अनु पर अपना अधिकार ही समझता था।
एक दिन अनु बेसुध सी भागते हुए उसके पास आई,और उससे लिपट कर रोते हुए बोल पड़ी। अमित घर वाले मेरी शादी की बात कर रहे हैं, लेकिन मैं तो सिर्फ तुमसे प्यार करती हूं। मुझे माफ कर देना मैंने तुमसे पूछे बिना तुम्हे अपना सबकुछ मान लिया है।
अमित एक पल को तो भौचक्का सा रह गया था लेकिन फिर उसने अनु के माथे को चूम अपनी स्वीकृति दे दी थी।अनु को ये अधिकार उसके प्यार ने ही तो दिया था।
समाज के जातिवाद के नियमों ने बहुत सारी अड़चन डाली थी उनके विवाह में। लेकिन प्यार जब सच्चा हो तो पूरी कायनात मदद के लिए खड़ी हो जाती है। दोस्तो की मदद से उन दोनों ने कोर्ट मैरिज कर ली थी। कुछ समय के बाद घर वालो ने भी उनके अंतरजातीय विवाह को मंजूरी दे थी।