भूली बिसरी यादें।।
भूली बिसरी यादें।।
सुहानी रात की शिफ्ट के लिए घर से हॉस्पिटल निकल ही रही थी। तभी उसके मोबाईल की घंटी बज उठी। स्क्रीन पर हॉस्पिटल लिखा देख सुहानी ने 2 मिनट रुक, बात करना ही ठीक समझा। हेल्लो बोलते उसकी जूनियर डॉ शांति ने बोला, मैम एक एमरजेंसी हैं। शांति बता रही थी 65 साल के एक बुजुर्ग को हृदय घात हुआ है। सुहानी ने शांति को सारे ज़रुरी टेस्ट के बारे में समझा, बस आ रही हूँ बोल फोन रख दिया।
सुहानी हॉस्पिटल के पास में ही रहती थी मुश्किल से 15 मिनट की दूरी थी। उसके घर और हॉस्पिटल के बीच। पार्किंग में स्कूटी खड़ी कर वो सीधा इमरजेंसी वार्ड की तरफ चल पड़ी। जहाँ शांति सारी केस हिस्ट्री के साथ उसकी प्रतीक्षा कर रही थी।
मरीज की उम्र ज्यादा थी, पर सुहानी की सुझबुझ और हृदय घात का पहला घात होने की वजह से मरीज अब खतरे से बाहर था। बाकी की दवाइयों के बारे में नोटपैड पर लिख, सुहानी ने शांति को ज़रुरी दिशा निर्देश दे दिए। इमरजेंसी की भागमभाग में रात के 3 बज चुके थे।
शांति और बाकी स्टाफ को भी थोड़ा आराम करने के लिए बोल सुहानी अपने केबिन की तरफ जा ही रही थी तभी उसे किसी के पुकारने की आवाज़ सुनाई दी। सुहानी बेटा। जानी पहचानी आवाज़ सुन सुहानी के पैर वहीं ठिठक गए। उसने पलट कर देखा तो, सफेद बाल, चेहरे पर उभर आई उम्र की लकीरों के बीच भी ताई जी का चेहरा तुरंत से पहचान लिया उसने।
सुहानी बुत बनी वही खड़ी थी, तभी ताई जी ने आगे बढ़ कर उसे गले से लगा लिया। सुहानी बेटा तू नहीं होती, तो तेरे ताया जी का क्या होता? ताया जी, सुहानी तो उनको पहचान भी नहीं पाई थी। वो इस हाल में कैसे? कितने सारे सवाल सुहानी के मन में उमड़ रहे थे। अपने मन को सयंत कर सुहानी ताई जी को बिठा तस्सली देनी लगी।
आप चिंता मत कीजिए ताई जी, ताया जी बिलकुल स्वस्थ हो जायेंगे। सुहानी ने कैन्टीन स्टाफ को बुला, ताई जी के खाने पीने की व्यवस्था की फिर थोड़ी देर में मिलती हूँ, बोल खुद अपने केबिन की तरफ चल पड़ी। ना जाने कितनी भूली बिसरी यादें अतीत की गलियों से निकल सुहानी की आँखों के सामने आ खड़ी हुई थी।
यादों में भटकती सुहानी अपने केबिन में आ कुर्सी पर बैठ गई। काम की थकान और भूली बिसरी यादें उसके मन को बोझिल किए जा रही थी।
एक एक बातें आँखों के सामने चलचित्र की तरह तैर रही थी। संयुक्त परिवार था उनका, ताया जी घर के मुखिया थे। सारी महत्वपूर्ण बातों का निर्णय ताया जी ही लेते थे और घर के बाकी सदस्यों को उनकी बात माननी होती थी। उनके घर की यही व्यवस्था थी। घर के बड़े की बात सर्वमान्य होती थी, उनकी बात काटना बड़ों का अनादर माना जाता था।
परम्परा और रूढ़िवादिता में बहुत जरा सा का अंतर होता है। समय के अनुसार और अनुरूप न बदल कर, पुराने चले आ रहे नियमों पर चलते जाना विद्रोह का कारण बनता है।
आज भी वो उसे वो दिन अच्छी तरह से याद है,10वी के परीक्षा का परिणाम आ चुका था। 98% नंबर आए थे उसके। पूरे घर को उसने अपने सर पर उठा रखा था। उस वक्त तक उसे सिर्फ इतना ही पता था, अपने डाक्टर बनने के सपने को पूरा करने के लिए उसे परीक्षा में अच्छे नंबर लाने होंगे।
ख़ुशी ख़ुशी जब वो ताया जी के पास आशीर्वाद लेने गई, तो ताया जी ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा। अब हम अपनी लाडो के लिए अच्छा लड़का देख इसके हाथ पीले कर देंगे। बहुत हो गई पढ़ाई लिखाई।
उसके पैरों तले से तो जमीन ही खिसक गई थी। आँखों में आँसू भर मिठाई का डब्बा लिए बुत बन गई थी वो। पिताजी को उसकी मनोस्थिति समझते देर नहीं लगी थी, इससे पहले की वो ताया जी के सामने अपने आगे पढ़ने और डॉ बनने के सपने के बारे में कुछ बोलती, पिताजी उसे कमरे से बाहर ले आये थे। आँसू भरी आँखों से जब उसने पिताजी को देखा तो उन्होंने उसे चुप रहने का इशारा कर दिया था।
सुहानी को अपने सपने शीशे की तरह बिखरते दिख रहे थे। वो तो भूल ही गई थी, उसके घर में लड़कियों के पढ़ने की परम्परा नहीं है। ताया जी तो 8वी के बाद ही उसकी पढ़ाई छुड़ाना चाहते थे। वो तो पिताजी ने कैसे भी उन्हें मना कर उसे 10वी तक पढ़ने की इजाज़त दिलवाई थी।
उसका मन बैठा जा रहा था तो क्या उसके सपने अधूरे रह जायेंगे, सुहानी को बाहर के कमरे से पिताजी और तायाजी की जोर जोर से बातें करने की आवाजें सुनाई देने लगी थी।
ताया जी गुस्से में पिताजी का नाम ले कर चिल्ला रहे थे। देख रघु एक तो तूने बेटी को जन्म दिया। फिर मेरे लाख मना करने पर भी उसे पढ़ाया। अब मेरी बात मान और कोई ऊँच-नीच होने से पहले उसका ब्याह करवा दे, उसे अपने घर विदा कर दे।
सुहानी की आँखों से झर-झर आँसू बहने लगे थे। थोड़ी देर में उसे अपने पिताजी का शांत स्वर सुनाई दिया था। भईया, आप बड़े हैं और मेरे लिए हमेशा आदरणीय है, लेकिन आज मैं आपकी बात नहीं मान सकता।
सुहानी को आगे की पढ़ाई करने का उतना ही हक है, जितना उसके भाइयों का। मेरे लिए मेरे दोनों बच्चे बराबर हैं। बेटा और बेटी का भेदभाव नहीं करता हूँ मैं।
बस, ताया जी ने पिताजी को परिवार समेत घर छोड़ कर चले जाने का फरमान सुना दिया था।
बहुत मुश्किलों भरा सफर था। पर उसके पिता ने ना खुद हिम्मत हारी ना उसे कभी हारना सिखाया। सुहानी ने भी जी जान लगा पढ़ाई की और आज वो हार्ट स्पेशलिस्ट है।
आज अचानक ताई जी को सामने देख कर सारी बीती बातें ताज़ा हो गई थी। घर से बाहर निकल ताया जी ने फिर कभी उनकी सुध नहीं ली थी। उनकी नज़र में उसके पिता गुनेह्गर थे उनके।
सुहानी अपनी भूली बिसरी यादों में खोई थी तभी उसकी जूनियर डॉ शांति उसके लिए कॉफ़ी का मग ले केबिन में आ गई।
कॉफ़ी पीते पीते सुहानी ने ताया जी के बारे में पूछा तो उसने बताया। वो होश में आ चुके है और उससे मिलना चाहते है।
काफी ख़तम कर वो icu की तरफ चल पड़ी। ताया जी तो उसे देखते पहचान गए थे। सुहानी ने हाथ जोड़ कर उन्हें प्रणाम किया और अपने काम में लग गई।
तभी ताया जी, ने उसे पास बुलाया। आँखों में भर आए आँसू बिना कुछ कहे सुहानी से उनके मन की सारी बातें बयान कर रहे थे। अस्पष्ट शब्दों में वो बोलने लगे। बेटा हो सके तो मुझे माफ़ कर देना। सुहानी ने ताया जी का हाथ पकड़ लिया। ताया जी बड़े तो सिर्फ आशीर्वाद देते अच्छे लगते है। आप जल्दी पुरी तरह से ठीक हो जायेंगे। सारे जाँच ख़तम कर सुहानी केबिन से बाहर निकल आई।
अंदर ताया जी और ताई जी दोनों की आँखें नम थी। जिस बच्ची के लिए उनके मन में कभी स्नेह नहीं था। आज उसकी वजह से उनकी जान बच पाई थी। मन ही मन वो निश्चय कर चुके थे। हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होते सबसे पहले, वो अपने छोटे भाई रघु से माफ़ मांगेंगे।
आज उनकी आँखों से पुरानी परम्परा के नाम पर पड़ी पट्टी खुल चुकी थी। बेटियों को प्यार, सम्मान और अपने सपने पूरे करने का पूरा अधिकार होता है।