खाली गिलास
खाली गिलास
आज सुबह से ही शांता सदन में चहल पहल है। शांता जी के पोते शौर्य का बारहवाँ जन्मदिन है। शांताजी की खुशी का ठिकाना नहीं है। सुबह से ही रसोई घर में बन रहे तरह तरह के पकवानों की खुशबुओं ने पूरे घर को अपने आगोश में ले लिया है।
शांता जी के पति का देहांत चार साल पहले हार्ट सर्जरी के समय काॅम्पलीकेशन होने के कारण हो गया था।
शांता जी के साथ उनका छोटा बेटा अनिल, बहू सविता और पोता शौर्य रहता है। शांता जी के एक बेटी अमिता है जो अनिल से बड़ी है । अमिता विदेश में रहती है। दो- तीन वर्ष में भारत आ पाती है।
सविता दोपहर के भोजन के बाद ब्यूटी पार्लर चली गई। शांता जी सुबह से रसोई में लगी हुई हैं। उनसे बोल गई शाम को पांच बजे तक आ जाएगी। तब तक शांता जी सब काम निपटा लें। रोटी-पूरी मेड बना देगी।
काफ़ी लोग आने वाले हैं। शौर्य के दोस्त, सविता और अनिल के दोस्त व उनकी फैमिली सभी को बुलाया गया है।
शांता जी ने पाव-भाजी, दम आलू, पनीर टिक्का, शाही पनीर, छोले, मटर पुलाव, खीर, हलवा सब तैयार कर दिया। घर सुबह मेड ठीक ठाक कर गई थी।
शांता जी हाथ धोकर रसोई से बाहर निकल रही थी कि सविता ब्यूटी पार्लर से आ गई।
शांता जी ने कहा," बहुत सुंदर लग रही हो बहू।"
सविता बोली," ठीक है, मम्मी जी। थैंक यू। आप अभी तक यहीं हैं? सवा पांच बज रहा है। छह बजे तक सभी आ जाएंगे। "
शांता जी बोली," अच्छा बहू। मैं तैयार हो जाऊं?"
" अरे ! नहीं, नहीं। हाथ के इशारे से मना करते हुए सविता आगे बोली," आप अपने रूम में रहना। वहीं खाना पहुंचा देंगे। बर्थडे पार्टी में बच्चे आ रहें हैं। रूम से बाहर मत निकलना कहीं आपको देखकर कोई डर न जाएं।"
शांता जी सुनकर एक पल को चुप रह गईं। फिर थोड़ा सम्भलकर बोली, " ठीक है बहू। "
धीमे-धीमे चलती हुईं वह अपने रूम में आ गईं।
उनका रूम १२×१० का एक छोटा कमरा है जहां एक तख्त और एक मेज-कुर्सी रखी है। वह तख्त पर बैठ गईं।
छह बज गया है। शांता जी की निगाहें दरवाजे पर लगी हुई हैं। माँ को अनिल बुलाने चला तो आंगन में अनिल से सविता रोक दिया, कह रही है कि मम्मी जी को रूम में रहने दो। उनका बदसूरत चेहरा देखकर बच्चे डर जाएंगे।
शांता जी को रूम में ही सारी बातें सुनाई पड़ गई।
दरअसल दो साल पहले रसोई में दाल का कुकर शांता जी के मुंह पर फट गया था। मुंह जल गया था। आंख बच गईं थीं। फफोले पड़ जाने से चेहरे की त्वचा खराब हो गई थी। इसी बात को मुद्दा बनाकर सविता ने शांता जी का बाहर आना-जाना और मिलना-जुलना बंद करा दिया था।
थोड़ी देर बाद शौर्य भी दादी को ड्राइंग रूम में न देखकर बुलाने जाने लगा। उसे सविता ने कहा कि दोस्त आने लगे हैं, उनका स्वागत करो। दादी थोड़ी देर में पार्टी ज्वाइन कर लेंगी।
शौर्य बच्चों को वेलकम करने लगा। केक काटे जाने के समय दादी को उसकी नज़रें ढूंढने लगीं तो सविता और अनिल ने कहा कि केक काटो, दादी आ रहीं हैं।
इधर थोड़ी देर बाद रूम में शांता जी को प्यास लगी। गिलास उठाया तो देखा गिलास में पानी नहीं था। बाहर जाने का सवाल ही नहीं था। बहू मना कर गई थी।
पार्टी खत्म होने के बाद अनिल माँ के लिए खाना लेकर आया तो देखा माँ नहीं रहीं। उनके हाथ में खाली गिलास था।
अनिल वहीं सिर पकड़कर बैठ गया।
काश! माँ को रूम में रहने को बोला न होता। काश! माँ को बाहर आने से रोका नहीं होता। अब जिंदगी भर इसी गम में रहना है कि माँ को खुशी में शामिल कर लिया होता तो उनका साथ न छूटता। काश! सविता ने जब माँ के जल जाने पर उनको बदसूरत कहा और बदसलूकी करनी शुरू की तब ही सविता को रोक दिया होता।
पर अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत...
दोस्तों, किसी भी घर का मजबूत स्तंभ होते हैं, बुजुर्ग। उनका दिल न दुखाएं। उनकी उपेक्षा और अपमान नहीं करें। बुजुर्गों को उचित आदर सम्मान दें। बुढ़ापे में उन्हें दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल कर न फेंकें। याद रखें, बुढ़ापा सभी पर आता है। भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है किसे पता? आपकी करनी आप पर लौट कर पड़ सकती है। ऐसा न हों कि जब आपकी आंख खुले, तब तक बहुत देर हो जाए।
आपको मेरी यह कहानी कैसी लगी, मुझे अवश्य बताएं। मैंने यह कहानी बहुत मन से लिखी है। यदि आपके दिल तक संदेश पहुंचाने में कामयाब रही है , तो अपनी राय साझा कीजिएगा। आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा।