STORYMIRROR

Rashmi Trivedi

Drama Romance Tragedy

4  

Rashmi Trivedi

Drama Romance Tragedy

केसरिया रंग प्यार का..

केसरिया रंग प्यार का..

14 mins
466

ओ विनय, आज मैं कितनी खुश हूँ, पता है आज गाने की रिकॉर्डिंग भी हो गयी। खुशी ने चहकते हुए कहा।


खुशी का हाथ अपने हाथों में ले के विनय बोला, " तुम्हें खुश होना भी चाहिए तुम्हारा तो नाम ही खुशी है, बहुत जल्दी तुम्हारा सपना पूरा होने वाला है, मैं भी खुश हूं आज तुम्हारे लिये।"


खुशी एक हँसती-खेलती चुलबुली लड़की थी जिसको साक्षात माँ सरस्वती का वरदान हासिल था। खुशी के पिता एक संगीत शिक्षक थे और माँ भरतनाट्यम नृत्य में माहिर। बचपन से ही संगीत और नृत्य उसकी पहली पसंद थे। अपनी मधुर आवाज और मंत्रमुग्ध कर देने वाले अपने नृत्य से वो सबका दिल जीत लेती थी।


कॉलेज में जब पहली बार विनय ने खुशी को देखा था तभी पहली नज़र में ही उसे अपना दिल दे बैठा था। विनय की भी अपने कॉलेज में एक अलग पहचान थी। पढ़ाई में अव्वल, खेल-कूद में अव्वल, सभी का चहेता विनय हर काम में तेज़ था। 


कॉलेज के एनुअल फंक्शन का समय था, जब पहली बार विनय और खुशी की बातचीत हुई। इससे पहले तो बस दूर से ही आँखों आँखों में ही बात हुआ करती थी। अपने अपने क्लास की तरफ जाते हुए देखना मुस्कुराना और बस यही। लेकिन इस बार बात हुई, दोस्ती हुई और दोस्ती कब प्यार में बदल गयी दोनों को पता ही नहीं चला। 


एक दूसरे के साथ कॉलेज के दिन भी बड़ी तेजी से निकल गए लेकिन दोनों के प्यार में कोई कमी नहीं आयी थी बल्कि समय के साथ साथ उनका प्यार भी बढ़ता ही जा रहा था। दोनों ने तय कर लिया था, पहले अपने पाव पे खड़े होंगे, कुछ कर दिखाएंगे और फिर एक दूसरे के हो जाएंगे हमेशा के लिए। विनय को वो दिन अच्छे से याद था जब खुशी ने उसे अपने सपने के बारे में बताया था। खुशी का हमेशा से ही सपना था की खूब सारे लोगों से भरे एक ऑडिटोरियम में उसका एक बहुत बड़ा कार्यक्रम हो जिसमें वो अपने गायन और नृत्य का हुनर सबके सामने प्रस्तुत करें। तालियों की बौछार से सारा ऑडिटोरियम झूम उठे। उसके माता-पिता उस पे गर्व महसूस करें। 


कुछ ही दिनों में विनय की एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी लग गई। इधर खुशी भी अपने गायन और नृत्य के अभ्यास में व्यस्त हो गई। समय समय पर दोनों मिलते रहते थे। दिन भर अपने अपने काम में व्यस्त रहते और रात को फ़ोन पे खूब बातें करते। कभी कभी तो फोन पे बाते करते करते ही सो जाते। समय यूं ही बीतते गया। खुशी के पिता ने उसके सपने को पूरा करने की सारी तैयारियां कर ली थी। 


आज खुशी जब विनय से मिलने आई तो बहुत खुश थी। उसने विनय से कहा, " सब तय हो गया है, आज गाने की रिकॉर्डिंग भी हो गयी है, मेरा गीत तो रिकार्डेड रहेगा पर नृत्य लाइव रहेगा और हाँ अब बस दो दिन बचे है तुम भी अपनी देहरादून की टिकट बुक करा लो।"

"देहरादून"??? विनय ने आश्चर्य से पूछा।

‌"हाँ देहरादून, वही तो है मेरा पहला प्रोग्राम, क्या तुम नहीं आओगे"? थोड़ा सा रूठते हुए खुशी ने कहा। 

" ऐसा भी भला हो सकता है, मेरी जान का सपना पूरा होने जा रहा है और मैं ना आऊँ"? तुम बिल्कुल फिक्र मत करो मैं पहुँच जाऊँगा तुम बस मुझे वहाँ का पता भेज देना। विनय ने कहा।

आगे कुछ शरमाते हुए खुशी ने कहा, " और हाँ जैसे ही प्रोग्राम ख़त्म होगा मैं तुम्हें अपने मम्मी पापा से मिलवाऊंगी, ठीक है ना"? और ऐसे ही दोनों अपने आने वाले कल की बातों में डूब गए। 

प्रोग्राम वाले दिन सुबह सुबह खुशी का कॉल आया, वो अपने मम्मी पापा के साथ देहरादून के लिए निकल चुकी थी। रास्ते मे कही रुके थे तभी उसने मम्मी पापा की नज़र से छिप के कॉल किया था। विनय ने भी ऑफिस से छुट्टी ले रखी थी। 


"अरे हाँ, मैं समय से पहुँच जाऊंगा अपने सहारनपुर से २ घंटे की दूरी पे ही तो है देहरादून, तुम बिल्कुल चिंता मत करो", विनय ने कहा और जाने की तैयारी में लग गया।


विनय समय से पहले ही ऑडिटोरियम पहुँच गया था। उसने खुशी के मोबाइल पे कॉल किया। फ़ोन स्वीच ऑफ़ था।


"मैं भी कैसा पागल हूँ अभी तो वो अपनी तैयारियों में बिजी होगी" खुद से ही विनय ने कहा। 


उसने सोचा वक़्त है तब तक आस पास कही घूमकर आता हूँ। थोड़ी देर बाद जब वो ऑडिटोरियम पहुँचा तो वहाँ बाहर अजीब सा सन्नाटा था। उसे लगा उसे आने में देर हो गयी।वो जल्दी से टिकट काउंटर की तरफ बढ़ा, वहाँ एक आदमी कुछ पढ़ते हुए बैठा था। उसने जो बताया उसे सुनकर विनय कुछ परेशान हो गया। उस आदमी के मुताबिक प्रोग्राम कैंसिल हो गया था कारण उसे पता नहीं था। 


विनय ने तुरंत खुशी को कॉल किया, उसका फ़ोन अभी भी स्वीच ऑफ़ था। विनय कुछ बेचैन सा हो गया, क्या करूँ उसके कुछ भी समझ नहीं आ रहा था।


उसने खुशी के फ़ोन पे बार बार कॉल किया पर हर बार वही जवाब। फिर उसे याद आया संजना, खुशी की सहेली का नम्बर उसके पास था। उसने संजना से बात की, खुशी की उससे दो दिन पहले बात हुई थी, उसे नहीं पता था प्रोग्राम क्यों कैंसिल हो गया। विनय ने अपने एक दोस्त को फ़ोन किया और कहा कि वो खुशी के घर जा के पता करे कि क्या हुआ है। थोड़ी देर में पता चला वहाँ तो कोई नहीं है, घर पे ताला है। विनय हताश मन से सहारनपुर लौट आया। जैसे ही वो घर पहुँचा उसके मोबाइल पे एक कॉल आया। 

वो कॉल देहरादून के एक हॉस्पिटल से था। आगे विनय ने जो भी सुना एक पल के लिये वो सुन्न हो गया। देहरादून के बिल्कुल पास पहुँचकर खुशी के कार का एक्सीडेंट हो गया था। आस पास की लोगों की मदद से खुशी, उसके माता पिता और ड्राइवर चारों को देहरादून के नजदीकी हॉस्पिटल में ले जाया गया था। दुर्घटना भीषण थी, ड्राइवर और खुशी के पिताजी की इलाज के दौरान मौत हो गयी थी। खुशी और उसकी माँ की हालत भी गंभीर थी। खुशी के मोबाइल में सबसे आख़िरी डायल नंबर विनय का ही था। इसीलिए उसे कॉल किया गया था।


विनय ने अपने आप को संभाला और वो तेज़ी से निकल पड़ा देहरादून हॉस्पिटल की तरफ। दो घंटे का रास्ता जो सुबह उसे बहुत ही कम लग रहा था अचानक से बहुत ज्यादा लगने लगा था। बार बार खुशी का चेहरा उसके आँखों के सामने आ रहा था। उसकी आंखें नम थी। वो जल्दी से जल्दी अपनी खुशी के पास पहुँचना चाहता था। 


वो हॉस्पिटल पहुँचा और पूछताछ करके खुशी के कमरे में दाखिल हुआ। खुशी के माथे पे सफेद पट्टी बँधी थी, चेहरे और हाथों पे घाव के निशान थे। एक हाथ मे सलाईन लगी थी और खून चढ़ाया जा रहा था। वो बेहोश थी। उसी के बगल में दूसरे बेड पे खुशी की माँ भी थी। वो भी काफी घायल हुई थी। दोनों को इस हालत में देख विनय खुद को रोक न पाया, कमरे से बाहर आया और फूट फूट कर रो पड़ा। एक बात उसे अंदर ही अंदर कचोटती जा रही थी, की जब इन दोनों को होश आयेगा और पापा के बारे में पता चलेगा तो क्या होगा।इतना बड़ा सदमा !! अपने आप को कुछ संभालने के बाद विनय कमरे में आया। इस बात से अनजान की गम का एक पहाड़ तो अभी उसके ऊपर गिरना बाकी था। 


वो खुशी के बेड के पास आया और पास ही रखी छोटी सी कुर्सी पे बैठ गया। उसने धीरे से खुशी के हाथ पे अपना हाथ रखा। उसकी आँखें फिर नम थी। उसने अपना सिर नीचे झुका लिया और बेड पे रख दिया। तभी अचानक मानो उसके शरीर में बिजली दौड़ गयी हो, उसने तेज़ी से अपना सिर बेड से हटाया। वो कुछ सोचने लगा, " ये क्या जब मैंने सिर नीचे रखा वो खुशी के पाव पे आना चाहिए था।" उसने काँपते हाथों से चादर पे हाथ रखा और लगभग चीख़ते हुए वो कमरे से बाहर आया। "डॉक्टर, डॉक्टर साहब???"


विनय की हालत देख के पहले तो डॉक्टर ने उसे रिलैक्स होने का समय दिया और फिर सारी बात बताई। 


"देखिए मिस्टर विनय, खुशी को आज सुबह जब यहाँ लाया गया तो वो काफी जख़्मी थी, उसका बायां पैर इस कदर क्षतिग्रस्त हुआ था की हमें उसे काटना पड़ा, नहीं तो इसकी जान बचाना नामुमकिन था, अब वो ख़तरे से बाहर है, उसकी माँ की हालत भी अब स्टेबल है, उसके पिता की मौत का हमें बेहद अफ़सोस है, आप धीरज रखिये।"


कैसे रखता वो धीरज उसकी जिंदगी, उसकी खुशी इस हालात में थी तो कैसे धीरज रखता वो। वो चीख पड़ा, "नहीं डॉक्टर ऐसा मत कहिए, कह दीजिए ये सब झूठ है, मेरी खुशी के साथ ऐसा नही हो सकता, उसका सपना, अब उसका सपना कैसे पूरा होगा डॉक्टर??" और अपने घुटनों के बल बैठ गया, अपना मुंह दोनों हाथों के बीच रख के फूट फूट कर रोने लगा। डॉक्टर साहब ने उसे समझाया और संभलने के लिए कहा। 


कुछ देर संभलने के बाद विनय ने संजना को कॉल किया और सारी बात बतायी। अपनी प्यारी सहेली के बारे में पता चलते ही संजना भी दुखी हो गयी थी। खुशी और विनय का रिश्ता अभी घरवालों के सामने उजागर नहीं हुआ था, इसीलिए ना ही खुशी के घर का कोई विनय को जानता था और ना ही विनय कभी किसी से मिला था। पर खुशी अक्सर अपने बनारस वाले चाचा और मुम्बई में रहनेवाली बुआ के बारे में बताया करती थी। विनय ने नर्स से खुशी का मोबाइल मांगा और चाचा और बुआ दोनों को खबर कर दी। 


एक तरफ खुशी की माँ को जहाँ होश आ गया था वही खुशी अब तक बेहोश थी। अपने पति के निधन की खबर और बेटी की ऐसी हालत देख के खुशी की माँ भी अधमरी सी हो गयी थी। खुशी के घरवालों के आते ही हॉस्पिटल की सारी जिम्मेदारी उन्होंने संभाल ली।

घटना के तीन बाद खुशी को होश आया, विनय भी तीन दिन से अपने घर नहीं गया था। खुशी को होश आने से ही विनय के जान में जान आ गयी थी, लेकिन वो परेशान था जब खुशी को उसके एक पैर के बारे में पता चलेगा तो क्या होगा? 


पिछले तीन दिनों में खुशी की माँ ने विनय को अच्छे से जान लिया था। विनय ने अपना परिचय खुशी का दोस्त हूँ ये कह के दिया था, लेकिन उसकी बेचैनी ने माँ को सब कुछ बता दिया था। खुशी ने जब आँख खोली अपने सामने माँ और विनय को देखा तो वो खुश हुई थी। वो बड़ी मुश्किल से बस इतना ही पूछ पायी "पापा??।"


खुशी की माँ ने मुँह फेर लिया पर विनय ने सब कुछ संभाल लिया, " पापा ठीक है तुम बस अभी कुछ मत बोलो, जल्दी से ठीक होना है ना??"

बेहोशी से अभी अभी उठी खुशी को अपने एक पैर ना होने का एहसास तक नहीं हुआ वो बस अपनी आँखें खोलकर इधर उधर देख पा रही थी। एक दिन और बीत गया। सुबह विनय फ्रेश हो के खुशी के कमरे में गया उसके पसंदीदा पीले गुलाब ले के, उन्हें देख खुशी के चेहरे पे हल्की से मुस्कान आ गयी। विनय ने धीरे से खुशी के माथे को चूमा। तभी खुशी ने विनय से कहा, "विनय, मैं उठकर बैठना चाहती हूँ, मुझे बिठा दोगे? प्लीज।" ये सुनते ही विनय एक पल के लिये सहम सा गया, लेकिन अब इस बात का सामना खुशी को कभी ना कभी तो करना ही था, यही सोचकर उसने खुशी को सहारा देते हुए बिठाया। खुशी को पूरे शरीर मे दर्द महसूस हो रहा था, लेकिन जैसे ही वो बैठी उसे कुछ अजीब सा महसूस हुआ। " विनय, विनय!!!" वो चीख पड़ी, विनय मैं अपना बायां पैर हिला नहीं पा रहीं हूँ, विनय, देखो तो मुझे अजीब लग रहा है कुछ, जैसे जैसे...... बस इतना ही कह के उसने अपने एक हाथ से चादर हटाई और ज़ोर से चीखी...न ...नहीं.....


उसकी चीख सुन के उसकी माँ जो बगल के ही बेड पे सो रही थी, घबरा कर उठी और जख्मी हालत में भी धीरे से उठ के खुशी के पास आई। " माँ , ये नहीं हो सकता, मेरा पाव , माँ मेरा पाव, मेरा सपना...." इतना ही कह पायी वो और बेहोश हो गई। विनय भागता हुआ गया और डॉक्टर को बुला लाया। 


विनय सोच ही रहा था की खुशी को अभी उसके पापा के बारे में भी बताना है पता नहीं ये सदमा वो कैसे बर्दाश्त करेगी, तभी उसके मोबाइल की रिंग बजी, उसके पापा का कॉल था, पिछले 4-5 दिनों में जो भी हुआ उसके बारे में उन्हें सब पता चल गया था। अब खुशी के बारे में भी जानते थे वो सब कुछ। उन्होंने खुशी और उसके माँ की तबीयत की खबर ली।


विनय के ऑफिस से भी लगातार फ़ोन आ रहे थे और हर बार वो थोड़ी और मोहलत माँग लेता ताकि ज्यादा से ज्यादा वक़्त वो खुशी को दे सके। कुछ दिन बीत गए और अब खुशी ने अपने साथ हुए हादसे को सह लिया था। एक दिन माँ उसके पास बैठ के उसे सूप पिला रही थी, विनय भी वही बैठा था। तभी अचानक खुशी ने ऐसा कुछ कहा जिसे सुनकर माँ और विनय दोनों हैरत में पड़ गए। खुशी ने बहुत शांत आवाज़ में पूछा, " आप दोनों और कितने दिन तक मुझसे पापा की बात छुपा कर रखने वाले हो"?? आँखों में आये आँसू को पोंछते हुए उसने माँ की तरफ़ देखा, " हाँ माँ, मुझे सब पता है।" बस इतना कहने की ही देरी थी, माँ-बेटी गले लग के खूब रोयीं, विनय ने भी सोचा इस सैलाब का बह जाना ही अच्छा है तो वो भी चुप रहा। थोड़ी देर बाद खुशी ने ही बात की।

"तुम ही बताओ माँ, क्या ऐसा हो सकता है कि मैं इस हालत में हूँ और पापा मुझसे मिलने की ज़िद ना करें?!", जब भी मैं उनके बारे में पूछती आप दोनों किसी ना किसी बहाने से बात टाल देते, तभी मैं समझ गयी थी की कुछ बात तो ज़रूर है जो आप दोनों मुझसे छुपा रहे हो। 

खुशी के बातों से विनय थोड़ा हैरान था, इस भयानक हादसे ने उसे शरीर से कमज़ोर कर दिया था लेकिन जिस बहादुरी से उसने अपने पापा की मौत का सामना किया था वो सच मे हैरान कर देने वाला था। 


दिन बीतते गए । खुशी अब घर लौट आयी थी। विनय भी अब अपने काम में व्यस्त हो गया था। हर शाम ऑफिस के बाद पहले वो खुशी से मिलने जाता और फिर अपने घर। हर वीकेंड विनय खुशी को लेके कही बाहर घूमने जाता। खुशी भी अब पहले से काफी बेहतर महसूस कर रही थी। बैसाखी के सहारे वो अब अपने काम भी खुद कर लिया करती थी। एक दिन शाम को विनय और खुशी छत पे बैठे थे, सूरज डुबने ही वाला था। आकाश में केसरिया रंग छाया था। तभी विनय ने खुशी का हाथ अपने हाथों में लिया और कहा, " तो बताओ कब कर रही हो मुझसे शादी"??!! विनय के इस सवाल से खुशी का चेहरा उतर गया और आँखें भर आयी। " क्यों मज़ाक कर रहे हो विनय, पहले ही इस ज़िन्दगी ने मेरे साथ जो मज़ाक किया है वो कम है क्या??" खुशी ने कहा ।

विनय ने उसके आँसू पोंछे और कहा, " नहीं खुशी, ये कोई मज़ाक नहीं है, तुम जानती हो मैं सिर्फ तुमसे प्यार करता हूँ और तुम्ही से शादी करूँगा।" अपनी बैसाखियों के सहारे खुशी खड़ी हुई और कहा, " तुमने जिस खुशी से प्यार किया था वो कोई और थी, मुझे देखो मैं अब तुम्हारी खुशी नहीं रही। इतना कह कर वो डूबते सूरज को देखने लगी। फिर कहने लगी, "ये केसरिया रंग देख रहे हो विनय, बिल्कुल ऐसी ही थी ना तुम्हारी खुशी, लेकिन अब देखना सूरज डूब रहा है और धीरे धीरे कालिख़ छा रही है सब तरफ...वो कालिख़ अब मैं हूँ विनय, इस अँधेरे को अपना जीवनसाथी कौन बनायेगा??"


"पागलों जैसी बातें मत करो खुशी, तुम्हारे बिना मैं कैसे जीऊँगा। कुछ नहीं हुआ है तुम्हें मेरी तरफ देखो, क्या मेरा प्यार तुम्हें इतना स्वार्थी नज़र आता है?? क्या मैं तुम्हें ऐसी हालत में अकेला छोड़ दूँ इस दुनिया में?? क्या तुम्हें अपने विनय पे भरोसा नहीं रहा अब??" विनय ने उसे झकझोरते हुए पूछा। 


विनय आगे कहने लगा, " सही कहा था तुमने तुम इस केसरिया रंग की तरह हो, मेरे जीवन का उजाला, अपने इस प्यार के केसरिया रंग को मैं कभी कालिख़ में बदलने नहीं दूँगा। मैंने तुमसे सच्चा प्यार किया है खुशी, अभी तो हमें साथ जीना है, तुम्हारा सपना भी तो पूरा करना है।"

खुशी चौंक गयी, "सपना??! अब कैसा सपना विनय??!"


ये देखो, विनय ने अपने जेब से एक पेपर निकाला, "अपनी मुंबई जाने की परसों की फ्लाइट की बुकिंग, मैंने सब पता कर लिया है, मुंबई के बहुत बड़े डॉक्टर है Dr. शाह, उन्होंने तुम्हारे जैसे कई केस हैंडल किये है। मैंने परसो की अपॉइंटमेंट ले ली है। मैंने सुना है उनके इलाज के दौरान वो ऐसा आर्टिफिशियल पैर लगाते है कि मरीज़ अपनी ज़िन्दगी नार्मल लोगों की तरह ही जी सकता है, चल फिर सकता है और हाँ नाच भी सकता है।


तुम फिर पहले की तरह हो जाओगी खुशी, तुम्हारा सपना भी पूरा होगा, मैं लाऊंगा फिर से वो केसरिया रंग तुम्हारी ज़िन्दगी में खुशी, बस अपने विनय पे भरोसा रखो।" 

खुशी कुछ भी ना कह पायी, विनय के गले लग के रोती रही बस।


फिर वो दिन भी आया जिसका सबको इंतज़ार था। 

वहीं देहरादून का ऑडिटोरियम, वहीं गाना जो खुशी की आवाज़ में रेकॉर्ड हुआ था और वही स्टेज पे अपने नृत्य से सबको मंत्रमुग्ध कर देने वाली खुशी। सारा ऑडिटोरियम तालियों की गूंज से झूम उठा। खुशी की माँ की आँखों मे आँसू थे वो अपने बेटी के सपने को पूरा होते हुए जो देख रही थी। विनय भी अपने माता पिता के साथ था, बेटे की खुशी आज देखते बनती थी। जैसे ही फंक्शन खत्म हुआ, सब घर वाले मिले, तब विनय की माँ ने खुशी की हाथों में एक बड़ा सा बॉक्स दिया और कहा, "यही पहनना है तुम्हें शादी वाले दिन, विनय की पसंद का है।"

विनय ने धीरे से खुशी के कानों में कहा, "जरा खोलके तो देखो बॉक्स को!।"

शरमाते हुए खुशी ने बॉक्स खोला और देखा, केसरिया रंग का शादी का जोड़ा था उसमें।

विनय ने मुस्कुराते हुए कहा, " कहा था ना मैंने फिर से ले आऊंगा तुम्हारी ज़िन्दगी में केसरिया रंग प्यार का।"



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama