Shelly Gupta

Drama

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Shelly Gupta

Drama

कड़वी सच्चाई

कड़वी सच्चाई

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"छोड़ दो मेरा पैर, छोड़ दो मेरा पैर", कहते हुए विमला जी जोर से चिल्लाई और बार-बार अपना पैर पटकने लगी। उनकी आवाज सुनकर उनका बेटा मनुज दौड़ा-दौड़ा आया और पूछने लगा," क्या हुआ मां? क्यों चिल्ला रही हो और ऐसे पैर क्यों पटक रही हो?"


"देख ना बेटा यह मेरा पैर ही नहीं छोड़ रही। कितनी देर हो गई कोशिश करते करते पर इस कमबख्त ने ऐसे जकड़ रखा है कि मैं हिल भी नहीं पा रही।"


अपनी मां की बात सुनकर मां मनुज बड़ा हैरान होकर बोला," मां क्या कह रही हो? किसने पकड़ा है तुम्हारा पैर कोई हो भी तो सही पैर पकड़ने के लिए?"


अब विमला जी ने जमीन की तरफ इशारा करते हुए बोला," देख बेटा इस परछाई ने पकड़ा हुआ है मेरा पैर"।


मनुज ने हैरानी से अपनी मां की तरफ देखा और उनका हाथ पकड़कर अपनी तरफ खींचने लगा तो विमला जी बड़े आराम से चल पड़ी। ये देखकर मनुज बोला," कहां जकड़ा हुआ था मां? लगता है बुढ़ापे में सठिया गई हो"।


विमला जी उसकी बात सुनकर चिढ़ गई," अब तू अपनी मां पर भी यकीन नहीं करेगा और यह कहकर वह कमरे से बाहर निकल गई और सीधा भगवान के मंदिर में आकर बैठ गई। मनुज माने या ना माने पर यह सच था कि उस परछाई ने उनका पैर पकड़ रखा था।


वह बहुत घबराई हुई थी। आज परछाई के द्वारा उनका पैर पकड़ना और उनका कल रात का सपना, दोनों ने मिलकर उन्हें बहुत डरा दिया था। कितना भयानक सपना देखा था उन्होंने कल रात कि कोई उनका पीछा कर रहा है। बड़ी कोशिश की उन्होंने सपने में उस पीछा करने वाली की शक्ल देखने की पर वह देख नहीं पाई और देखते-देखते उस शख्स ने उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े करके बहुत ही निर्मम तरीके से उनकी हत्या कर दी। विमला जी पसीने पसीने हो कर उठी थी। बाकी सारी रात उन्होंने हनुमान चालीसा पढ़ते हुए ही बिताई थी।


बड़ी देर मंदिर में बैठने के बाद विमला जी मंदिर से बाहर निकली और सोचा कि चलो अब खाना बना लूं पर तभी परछाई ने फिर उनका पैर पकड़ लिया और इस बार कुछ अचानक से इस तरीके से पकड़ा कि विमला जी सर के बल धड़ाम से गिर गई और उनके सिर से खून का फव्वारा छूट पड़ा ।यह तो अच्छा था कि मनुज अभी घर में ही था और वो उनको फटाफट डॉक्टर के पास ले गया।


विमला जी बहुत घबरा गई थी ।मनुज उनसे बार-बार पूछ रहा था कि मां क्या हुआ, कैसे गिरी और वह हर बार उसको कहे जा रही थी कि बेटे परछाई ने फिर से पैर पकड़ लिया। मनुज को कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसने उसी शहर में रहने वाली अपनी मौसी शीला को फोन करके मां की सारी हालत बताई उन्होंने मां के पास बुला लिया ताकि मां का डर भी कम हो और उसके ऑफिस जाने के बाद वो मां का ध्यान भी रख सकें।


घंटे भर में ही शीला जी उनके घर पहुंच गई और विमला जी की हालत देखकर हैरान रह गई। अपनी बहन को देखते ही विमला जी फूट-फूटकर रो पड़ी और बोली," वो वापिस आ गई शीला, वो वापस आ गई ।मुझे बचा लो शीला, मुझे बचा लो। वो मुझे मार देगी"।


अपनी मां की बात सुनकर मनुज बड़ा हैरान हुआ ।उसने अपनी मौसी से पूछा," मौसी! मां क्या बात कर रही है? कौन वापस आ गया जो उन्हें मार देगा?" इस पर शीला जी बात संभालते हुए बोली," लगता है तेरी मां ज्यादा डर गई। तू फ़िक्र मत कर। अब मैं आ गई हूं ,अब मैं इसका ख्याल रखूंगी। तू कल से आराम से ऑफिस चले जाना।


शीला जी ने मनुज को तो कमरे से बाहर भेज दिया और खुद पलटकर विमला जी से पूछा," क्या कह रही हो दीदी तुम? कौन वापस आ गई ?तुम उसी की बात कर रही हो क्या?"


"हां शीला! वही आई है, परछाई बनकर। मेरा जीना हराम कर रखा है उसने।" अभी दोनों बहने आगे कुछ बोलती कि तभी शीला जी का पैर भी उस परछाई ने पकड़ लिया। शीला जी ने अपना पैर उस से छुड़वाने की बहुत कोशिश पर वो नहीं छुड़वा पा रही थी और उनकी हालत को देखकर विमला जी बोली," यही तो कह रही थी मैं तुम्हें। ये नहीं छोड़ेगी हमें। बस मनुज के सामने नहीं आती ये। इतना सुनते शीला जी ने मनुज को आवाज दी और उसको बहाने से बुलाकर कहा," मुझे तेरी मां की दवाई तो समझा दे"।


मनुज के आते ही परछाई फिर गायब हो गई। ये देखकर शीला जी ने मनुज को कहा," बेटा मैं अकेली तेरी मां को नहीं संभाल पाऊंगी ।आज रात तू हमारे साथ ही सो जा"। शीला जी की बात सुनकर विमला जी ने भी ठंडी सांस ली कि कम से कम आज की रात तो शांति से निकलेगी।


अगले दिन सुबह उठते ही शीला जी ने सारे घर में गंगा जल छिड़क दिया और मनुज के जाने से पहले ही अपने जान-पहचान के पंडित जी को बुला लिया जो कि तंत्र विद्या भी जानते थे। मनुज ने अपनी मौसी को बड़ी हैरानी से देखा और बोला," मौसी, मां तो ऐसे ही बुढापे में सठिया गई हैं। इसमें पंडित जी को बुलाने की क्या बात है"।


शीला जी बोली," तुम कुछ नहीं समझते मनुज। मुझे जैसा ठीक लग रहा है वैसा करने दो"। उनकी बात सुनकर मनुज चुप हो गया और थोड़ी देर में पंडित जी भी आ गए।


घर में दाखिल होते ही पंडित जी को जोर से झटका लगा। उन्होंने चौंक कर इधर-उधर देखा और फिर अपना आसन ग्रहण करके उन्होंने शीला जी से पूछा," किस लिए बुलाया मुझे"।


शीला जी बोली," जो आपने घर में दाखिल होते हुए ही महसूस किया है बस उसी के लिए आपको बुलाया है। इस घर पर कोई शैतानी ताकत का साया है। उसने मेरी बहन को परेशान कर रखा है। हमें मुक्ति सिर्फ आप ही दिलवा सकते हैं। हमें उससे छुटकारा चाहिए।"


पंडित जी ने ध्यान लगाया और उसके बाद आंखें खोल कर पूछा," अभी कुछ समय पहले इस घर में किसी की मौत हुई है ना?" जिस पर मनुज बोला," जी हां, मेरी बीवी शुभ्रा की। अभी 3 महीने पहले ही उसका देहांत हुआ है ।वह प्रेग्नेंट थी और अचानक से सीढ़ियों में अपना संतुलन खो कर गिर गई और मौके पर ही उसकी मौत हो गई"।


पंडित जी ने बड़ी तीखी नजरों से शीला जी और विमला जी की साइड देखा और पूछा," क्या वाकई उसकी मौत सीढ़ियों में अपना संतुलन खोकर हुई थी या कुछ और बात है?"


दोनों बहनें पंडितजी की बात सुन कर सकपका गई तभी शीला जी बोली," पंडित जी! हम क्यों झूठ बोलेंगे? वह वाकई अपना संतुलन खो कर गिर गई थी "।


जिस पर पंडित जी बोले," फिर इस घर में भी कोई शैतानी ताकत नहीं है ।आपकी बहन के मन का वहम है सब। मैं चलता हूं।"


शीला जी ने दौड़कर पंडित जी को रोक लिया और विमला जी की ओर देखने लगी। विमला जी चुप थी पर शीला जी के बार बार इशारा करने पर उन्होंने आखिरकार अपना मुंह खोल ही दिया," नहीं वो कुलक्षणी अपनी मौत नहीं मरी थी। मैंने उसे सीढ़ियों से धक्का दिया था। कितनी बार उसको कहा था कि गोदभराई के लिए अपने बाप से रानी हार और दो लाख रुपए मांगे पर उसने मांगने से साफ मना कर दिया। उस दिन भी हमारी छत पर इसी बात को लेकर बहस हो रही थी। उसके फिर इनकार करने से मुझे बहुत गुस्सा आया और मैंने उसे धक्का दे दिया। वो प्रेग्नेंट थी इसलिए पेट के बल गिरते ही उसकी मौत हो गई। मैंने फटाफट शीला को फोन लगाया और उसने आकर सब कुछ ऐसे संभाल लिया कि लगे शुभ्रा अपने आप गिरी।"


मनुज हक्का-बक्का कभी अपनी मां को देख रहा था कभी अपनी मौसी को। वो वहीं जमीन पर बैठकर फूट-फूट कर रो पड़ा। उसे ऐसा लगा जैसे उसकी शुभ्रा की मौत 3 महीने पहले नहीं बल्कि आज हुई है। उसने अपनी मां को कहा," ये तुमने क्या किया मां? अपने लालच में तुमने मेरी हंसती खेलती ज़िन्दगी को आग लगा दी। मैं अब से कभी तुम्हें अपनी मां नहीं मानूंगा"।


मनुज को रोता हुआ देखकर पंडित जी बोले," शुभ्रा की आत्मा का हाल भी तुम्हारे जैसा ही है ।वह भी खुश नहीं है तभी दर-दर भटक रही है। शायद अपनी सच्चाई वो तुम्हें बताना चाहती थी इसीलिए तुम्हारी मां को परेशान कर रही थी। इस घर में आते ही मैं समझ गया था कि इस घर में तो एक बड़ी दुखी आत्मा का निवास है। अब तुम विधि विधान से मेरे साथ पूजा करो ताकि तुम्हारी शुभ्रा की आत्मा को शांति मिले और वह मुक्त हो जाए। मनुज ने रोते हुए पंडित जी के कहे मुताबिक सारी पूजा की विधियां निपटाई। पूजा पूरी होते ही उसे एक पल के लिए ऐसा लगा कि मानो उसकी शुभ्रा ने उसे गले से लगा लिया हो पर वो अहसास सिर्फ पल भर का था। अगले ही पल उसके मन ने उसे समझा दिया कि उसकी शुभ्रा उसे हमेशा के लिए छोड़ कर चली गई ।


पंडित जी को विदा करने के बाद मनुज ने भी अपना एक सूटकेस तैयार किया और हमेशा के लिए घर छोड़ दिया। जाने से पहले वो अपनी मां से बोला," चाहता तो था कि आपको पुलिस के हवाले कर दूं पर बहू के साथ आपका बेटा भी आज से मर गया आपके लिए, ये सजा आपके लिए सबसे सही है और मेरी ज़िन्दगी की यही कड़वी सच्चाई रहेगी कि मेरी मां मेरे जीवन की खुशियों पर काली परछाई बन कर मेरी खुशियां लूट कर ले गई"।





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