कचरा

कचरा

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महिला दिवस पर सुबह शहर का कचरा साफ करते समय गन्दे गहरे नाले के किनारे कचरे के ढेर पर कचरे की तरह फेंकी गयी पोटली से शिशु रुदन की आवाज सुन उसके कदम रुक गये। ऐसा लगा कि पोटली फेंकी तो उस गहरे नाले में गयी थी पर किनारे पर पड़े ऊँचे कचरे के ढेर के कारण किनारे पर ही गन्दे कचरे पर अटक गयी थी।

आगे बढ़ कर उसने ज्यों ही पोटली खोली अन्दर सद्यजन्मी मादा शिशु बुरी तरह बिलख रही थी। उसके हृदय में ममता जाग उठी। हालांकि वो एक बहुत ही गन्दी बस्ती में रहती थी जहाँ रोज ही रात को कोमल स्वरों की दर्दनाक चीख़ें गूँजती थीं।

सुबह तक पूरी बस्ती में खुशी की लहर फैल गयी कि एक और नगीना बस्ती में आ गया है। अब वह उसे गोद में लेकर भीख माँगने जाने लगी थी।

एक दिन एक नव युगल कचरे के ढेर पर पाई गयी बच्ची के बारे में सबसे पूछता हुआ उसके पास आ कर उससे अपनी बच्ची को माँगने लगा।

उसने निर्भीकतापूर्वक उन्हें उस बच्ची को देने से मना कर दिया बोली “तुमने तो शादी से पहले इसके जन्म लेने पर कचरा समझ कचरे की तरह कचरे के ढेर में फेंक दिया था। शादी के बाद इसे लेने आये हो और अगर शादी ना करते तो आते भी नहीं। हमने इसे छाती से लगा कर जिलाया है।अब हम इसे किसी को ना देंगे।”

वो दोनो उल्टे पैरों लौट गये।

कुछ सालों बाद अब उस झोपड़ी से भी रात में चीखें आने लगी थी। जबकि अभिजात्य वर्ग में महिला दिवस मनाना बदस्तूर जारी था।


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