कच्चा प्रेम

कच्चा प्रेम

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शीरीन को नए शहर में आये एक साल हुआ था। घर परिवार सबसे दूर पढ़ाई के लिए यहाँ विदेश आयी थी। पढ़ाई, खेल कूद हर क्षेत्र में अव्वल रही शीरीन को अच्छी यूनिवर्सिटी में दाख़िला और वज़ीफ़ा मिल गया था। आने से पहले उसकी ख़ुशी का ठिकाना न था मगर जब यहाँ आयी तो घर से दूरी, विपरीत बदलाव, पहली बार एक वयस्क का जीवन और अपनी ज़िम्मेदारी खुद उठाना सब उसके लिए नया सा था। घर पर नियमित बात करती मगर अकेलेपन ने उसे घेर लिया था। कॉलेज में कुछ दोस्त बन गए थे और फिर उसकी मुलाक़ात हुई विपुल से। विपुल भी मूलतः भारतीय था मगर अपने परिवार के साथ हमेशा से दूसरे देशों में रहा और पला बढ़ा था। फेस्टिवल के दौरान दोनों की मुलाक़ात हुई और धीरे धीरे गहरी दोस्ती में बदल गयी। अधिक से अधिक समय साथ बिताने लगे और पता ही न चला कब दोस्ती प्रेम प्रसंग बन गयी। फिर दोनों साथ ही कैंपस के पास एक कमरा लेकर रहने लगे थे। साथ साथ कॉलेज जाते पढ़ाई करते और घूमते फिरते। शीरीन अब खुश रहने लगी थी उसका साथ पाकर। वीरान सी दिखने वाली जगह, बेरंग ठण्ड में अब ख़ूबसूरती दिखने लगी थी। अब ये शहर, ये देश उसे गैर नहीं लगता था। जब भी घर पर फ़ोन से बात करती माता पिता उसकी आवाज़ में चहक सुनकर खुश हो जाते। 

तीन महीनों में साथ अब ऊब लगने लगा था। कम उम्र का प्रेम जैसे उफनती लहर की तरह उभरा और फिर विलीन हो गया। कॉलेज के पास शीरीन ने विपुल को किसी और के साथ देखा तो ईर्ष्या से सुलग गयी। शाम को विपुल से सवाल किया तो मानो वह इंतज़ार में था। बहस हुई और अपना सामान लेकर निकल गया। इतनी जल्दी शीशा टूट जाएगा, शीरीन को इसका अंदाज़ा भी न था। प्यार का मतलब तो साथ निभाना होता है न, कम से कम उलझन को सुलझाने का प्रयास तो किया ही जाता है न? बिना कुछ कहे समझे बस ऐसे चले जाना, ऐसा कैसे कर सकता है विपुल। कुछ दिन उसने इंतज़ार किया, उससे दोबारा बात करने की कोशिश भी की मगर वो तो जैसे अजनबी था। उसकी सहपाठी ने समझाया दिल पर मत ले ये, हिंदी फिल्म नहीं है, यहाँ ऐसा होता है। मगर शीरीन तो उसे सच प्रेम समझ बैठी थी। कई दिन कॉलेज नहीं गयी, बस चुपचाप बैठी रोती या यहाँ वहां निकल जाती। कई दिन घर पर फ़ोन भी नहीं किया। 

सुबह उठी तो दरवाज़े की घंटी बजी, देखकर हैरान रह गयी, सामने बाबा खड़े थे। "आप यहाँ कैसे?" "तुमने इतने दिन फ़ोन नहीं किया, हम सब बहुत चिंतित थे, फिर सोचा देख ही आऊं।" "मगर इतनी जल्दी टिकट वगैरह?" बाबा ने कुछ कहा नहीं मगर चेहरा देख कर समझ रही थी कितना खर्च और परेशानी उठा कर आये थे इतनी दूर। घर पर दीवाली भी नहीं मनी थी ठीक से इस साल, उसके जाने के बाद घर सूना हो गया था। सब देख सोच शीरीन आज बहुत रोई और अपनी नादानी का एहसास भी हो गया। क्या एक अपरिपक्व और बेख़बर लड़के का प्यार इतना अहम् हो गया कि वो अपने माता पिता के दरिया जैसे दिल को दुखाने चल दी। क्या है प्यार? आज उसने ठान लिया अब ऐसी ग़लती फिर कभी न करेगी और पूरी तन्मयता से अपना लक्ष्य पाने में जुट गयी। 


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