प्रकृति
प्रकृति


सदैव सहनशील, सौम्य, शांत, जीवन दायिनी देव स्वरूप प्रकृति। पृष्ठभूमि में विद्यमान, कभी श्रेय न जतलाती और शायद इसीलिए प्रताड़ित, शोषण का शिकार होती, मानव जाति के हाथों।
आज जब जननी ने तीसरा नेत्र खोल मानव पर आग्नेय दृष्टि डाली और पूछा, 'आखिर क्यों?,' तब चारों ओर हाहाकार मच गया।
प्रकृति ने इंगित कर दिया, जननी हूँ मैं, यदि जीवन देती हूँ तो ले भी सकती हूँ।