Himanshu Sharma

Tragedy

4  

Himanshu Sharma

Tragedy

कौवा-भोज

कौवा-भोज

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जैसे ही मेरा पेट गुम्बदाकार हुआ, मेरे घर के सभी सदस्यों ने आपस में सलाह-मशविरा करके ज़ोर-ज़बरदस्ती कर मुझे अल-सुबह घूमने जाने को प्रेरित किया! ख़ैर! ज़बरदस्ती के डर एवं कुछ ख़ुद की इच्छा से मैंने मन पक्का कर लिया कि मुझे हर सुबह क़रीबन पौन से एक घंटा घूमना ही है! तो जिस रास्ते से मैं रोज़ घूमने निकलता हूँ, उसी रास्ते के बीच ही शमशान भी पड़ता है! शमशान के बाहर मुझे रोज़ एक ही तरह का दृश्य देखने को मिलता था! शवयात्रा एवं अंतिम संस्कार में प्रयुक्त अन्न एवं फल-फूल शमशान के बाहर पड़े रहते थे और उसका उपभोग हर सुबह करते थे कौवे! उसी शमशान के बाहर एक महिला अपने दूध-मुँहे बच्चे के साथ बैठी रहती थी! शमशान में जो कोई भी अपने किसी रिश्तेदार को अंतिम विदा देने आते थे, वो उसे कुछ खाने-पीने की चीज़ दान-दक्षिणा स्वरुप दे जाते और उसका जीवनयापन हो जाता! मुझे रोज़ का कौवा-भोज और उस महिला को देखने की आदत हो गयी थी! एक दिन बचपन के दोस्त के घर आने की वजह से मैं उसके साथ पुरानी बातें ताज़ा करते हुए देर रात तक जागा जिसकी वजह से मैं अगले दिन घूमने नहीं जा सका और अगला पूरा दिन मेरे मित्र के साथ गुज़ार, मैं अगली सुबह का इंतज़ार करते-करते सो गया!

अगली सुबह जब मैं उस रास्ते से गुज़रा तो कौवा-भोज तो यथावत था परन्तु वो महिला और उसका नवजात वहाँ नहीं था! उस दिन के पश्चात यही दिनचर्या हो गयी कि कौवा-भोज तो वहाँ होता था परन्तु उस महिला और उसके नवजात का कहीं नामो-निशान नहीं था!

एक दिन मैंने हिम्मत करके सुबह-सुबह उस शमशान के भीतर जाने का फ़ैसला किया कि अगर अंदर कोई पुजारी या पुरोहित होगा तो उससे पूछ लूँ कि वो महिला और उसका नवजात कहाँ गया! मैं अंदर पहुँचा तो देखा कि पुजारी जी रो रहे थे और हमारी वार्तालाप कुछ यूँ चली:

"बाबा! राम राम! क्या हुआ आप रो क्यों रहे हैं?" मैंने पूछा!

"आप कौन?" सिसकते हुए बाबा ने कहा!

"बाबा! मैं रोज़ यहाँ से घूमने जाता था तो बाहर बैठी हुई उस युवती और उसके बच्चे को देखता था, अंदर यही सोचकर आया था कि कोई अगर अंदर मिलेगा तो उनके बारे में उस व्यक्ति से पूछ लूँगा कि वो कौन हैं?" मैंने जैसे ही बात पूरी की कि बाबा की सिसकियाँ भयानक रुदन में बदल गयीं! मैंने बमुश्किल ढाढ़स बँधा चुप करवाया और तत्पश्चात उन्होनें बताया,"दरअसल! वो बाहर बैठी औरत कोई और नहीं मेरी बेटी है जिसे मेरी पहली पत्नी ने जाया था! न जाने कैसे गर्भावस्था के अंतिम दौर के दौरान उसको अचानक ही ह्रदयाघात हुआ और उसे लेकर मैं अस्पताल भागा जहाँ डॉक्टरों ने उसको श्वसन-प्रणाली पे रखते हुए, इस बच्ची को पैदा करवाया, परन्तु इस प्रजनन-प्रक्रिया के तुरंत पश्चात मेरी बीवी का देहावसान हो गया! जब समय गुज़रा तो इसकी हरकतों से पता चला कि अचानक हुए हृदयाघात एवं अन्य कारणों से ऑक्सीजन का संचार इसके दिमाग तक पहुँचना कुछ क्षणों के लिए बंद हो गया था जिसकी वजह से ये दिमागी रूप से कमज़ोर पैदा हुई थी! इनके लालन-पालन के लिए दूसरी शादी की तो कुछ ही समय के पश्चात पता चला कि मेरी पत्नी कभी माँ नहीं बन सकती है! वो इस बात की खीज इस पर निकालने लगी! समय का पहिया घूमा साहब, शरीर बढ़ गया मगर दिमाग अभी भी शरीर की उम्र से काफ़ी छोटा था! एक दिन पास ही के एक रईस के बेटे ने मेरी इस बेटी के साथ कुकर्म कर दिया वो भी तब जब मैं और मेरी बीवी यहाँ नहीं थे! मेरी बीवी पहले ही इस नादान से चिढ़ी हुई थी और जब इस बात का पता उसे चला तो उसने इसको बाहर निकाल दिया! ये पगली जाती भी कहाँ साहब, माँ के डर से अंदर नहीं आ सकती थी तो बाहर ही बैठने लगी! एक दिन मैंने थाने में रपट लिखाई और तहरीर दी की कि अपराधी को पकड़ा जाए! रसूख़ के कारण मेरी रपट दबा दी गयी! मुझे लोगों से पता चला कि कप्तान साहब जो हैं बड़े ही ईमानदार और न्यायप्रिय आदमी है! मैंने उनको बताया और उन्होनें मेरे सामने ही थानेदार को फोन लगा ज़ोरदार झाड़ लगाई! मगर मेरा वहाँ जाना ही मुझे भारी पड़ गया! पिछले मंगल को मैं उस पगली को रोटी देकर जैसे ही अंदर आया कि अचानक एक गाडी रुकी उसमें से वो रईस औलाद निकली, मेरे समझने से पहले ही उसने और उसके साथियों ने उठाकर गाड़ी में पटका और वहाँ से चले गए! कल उन दोनों की लाश मिली थी साहब, अपने ही यहाँ अपनी बेटी दी और नाती को गाड़ा है साहब!" इतना बताकर उनका वही पूर्व-रूदन चालू हो गया! अबकी बार मेरी हिम्मत नहीं हुई उन्हें ढाढ़स बँधाने की और मैं उठ कर बाहर चला आया! अचानक ही मेरी नज़रों कौवों पे पड़ी जो कि अब भी भोज में मग्न थे, मगर आज उनका भोज किसी पशु का शरीर था, जिसे मैं बड़ी हिक़ारत भरी नज़र से देखता हुआ आगे बढ़ गया! मैं सोच रहा था कि शमशान में मृतकों को लाया जाता है अंतिम संस्कार हेतू मगर मृत समाज के अंतिम संस्कार हेतू क्या कभी कोई शमशान बनेगा? शायद ये प्रश्न शाश्वत रहेगा! 


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