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कैदी नंबर 306

कैदी नंबर 306

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हम है राम खिलावन, कैदी नंबर ३०६, उम्र ५२ साल और यहाँ जेल मैं सजा काट रहे है आज बेशक एक कैदी से ज्यादा कुछ नहीं परन्तु कैदी होने से पहले हम एक प्रेस रिपोर्टर थे घर पर एक घरवाली भी थी और हाँ एक लड़का भी था शायद अब भी होंगे शायद इसलिए क्योंकि पता नहीं पिछले २ सालों से हम तो कैदी नंबर ३०६ है और घरवाली और लड़के से मुलाकात नहीं हुआ है पर कहीं न कहीं तो जरूर होंगे चलो आज आपको कुछ पुराने किसे सुनाते हैं।

कुछ बरस पहले की बात है जब मैं अपनी रामदुलारी यानि की बाइक से आफिस जा रहा था सामने देखा तो गाड़ियों की भीड़ दिखाई दी भीड़ में कुछ भी देख पाना संभव नहीं था ऐसा लग रहा था जैसे कि कोई एक्सीडेंट हो गया है । भीड़ और हवलदार जिस तरह से डंडा लहरा रहा तो ऐसा लगता था जैसे कि कोई बहुत बड़ा एक्सीडेंट हुआ हो । मुझे एक्सीडेंट और बहते हुए खून को देख कर मितली आ जाती है फिर भी डरते डरते नज़दीक पहुंच गया गौर से देखा तो सुकून मिला कोई एक्सीडेंट नहीं था बस पुलिस चेकिंग चल रहा था में भी अपने पेपर चेक करवाने के लिए लाइन में लग गया।

ऐसा नहीं था कि सबको रुकना पड़ रहा हो कुछ लोग सड़क पर गाड़ी हवलदार के पास और लगभग तुरंत ही रवाना हो जाते ऐसा क्यों था की कुछ लोग लम्बी लाइन मैं खड़े थे पेपर चेक करवाने के लिए और कुछ लगभग बिना रुके निकल रहे थे मुझे उत्सुकता हुई जानने की। लाइन मैं पीछे खड़े पडोसी ने बताया की जो लोग हवलदार को 50 रूपये दे रहे है उनको जाने दिया जा रहा है जो नहीं दे रहे उनको लाइन मैं खड़ा किया जा रहा है ध्यान से देखा तो पता चला की बात सही थी खेर हमें क्या हमने अपने पेपर चेक करवाए और फिर ऑफिस चले गए कुछ दिन बाद सब्जीमंडी का चक्कर लगा बहुत भीड़ थी ऐसा नहीं है की सब्जीमंडी के लिए जगह कम हो पर क्या है न की पार्किंग वाली जगह पर और लोगों के चलने वाली जगह पर फेरी वालों ने कब्ज़ा कर रखा है इसीलिए लोग गाड़ियां सड़क पर पार्क करते हैं।

और फिर भीड़ इतनी बढ़ जाती है की बस पूछो मत। चिड़चिड़ा कर शर्मा जी से शिकायत की और उनसे विचार विमर्श किया ताकि अवैध कब्जे वाली पार्किंग पुलिस की मदद से खाली करवाई जा सके तो उन्होंने बताया की ऐसा है की अवैध कब्जे वालों से पुलिस हफ्ता लेते है इसीलिए शिकायत का कोई फायदा नहीं है। चलो कोई बात नहीं हमें क्या फर्क पड़ता है हम भी दूसरों की तरह सब्जी ख़रीदे और घर आ गए कुछ दिन और गुजरे एक दिन सुबह सुबह बहार आये अखबार उठाने तो पता चला की हम हमारी रामदुलारी यानि की फटफटिया रात को अंदर करना ही भूल गए थे।

और अब क्या देखते है की रामदुलारी का साइड वाला बक्सा कोई चोर चुरा कर ही ले गए। हमने भी छाबड़ा जी की घंटी बजा दी और उनसे रिक्वेस्ट की ताकि वह पुलिस स्टेशन तक साथ चले और कम्प्लेन दर्ज़ करवा आएं अब छाबड़ा जी समझने लगे की भैया जी साइड वाला बक्सा ही तो गया है 200 रूपये का नया लगवा लीजिये न पुलिस कम्प्लेन करेंगे तो सारी की सारी फटफटिया ही पुलिस खा जाएगी न। 

बात हमारी दिमाग मैं भी घुस गयी और हमने २०० रूपये मैं नयी बक्सा लगवा लिया कुछ दिन और गुजरे हमारे घर से ५ मकान छोड़ कर एक माकन बिक रहा था बहुत महंगा था साल भर से ग्राहक आ रहे थे कोई ले नहीं रहा था एक हफ्ता पहले बिक गया हमने भी शुक्र मनाया। क्या है न की हर हफ्ते कोई न कोई ग्राहक आ जाता था मकान के बारे मैं पूछताछ करने चलो अब माकन बिक गया झंझट ख़तम हुआ शाम को ऑफिस से वापिस लोटे तो पता चला की नया माकन मालिक शिफ्ट हो गया है कोई पुलिस वाला है हमने भी सोचा प्रेस रिपोर्टर को पुलिस वाले से बना कर रखनी चाहिए न तो मिलने चले गए। अरे यह क्या यह तो अपने भंडारी बाबू है पर भंडारी बाबू तो हैडकांस्टेबले है इतना महंगा माकन कैसे ले सकते है पर क्या करें भंडारी बाबू से पूछ तो नहीं सकते न तो चले आये चाय पीकर वापिस।

घर आये तो रमेश जी इंतज़ार कर रहे थे आते ही लपककर गले मिले और हाथ मैं १ लाख रूपये रकते हुए बोले की रामभरोसे जी यह १ लाख भंडारी बाबू को देने है उन्होंने हमारा एक ट्रक पकड़ लिया है उसको छोड़ने की कीमत है हमने भी रमेश बाबू को बोल दिया ऐसा नहीं हो सकता हमारे भंडारी बाबू पैसा नहीं खाते। रमेश जी ने जबरदस्ती भेज दिया तो हम भी बुड़बुड़ाते चले गए पैसा देने और मजे की बात भंडारी बाबू ने वह पैसा तुरंत ले लिया एक डकार तक नहीं ली चलो कोई बात नहीं कोनसा मेरा पैसा गया है कुछ दिन और गुजरे दीनानाथ जी का पोता को पुलिस पकड़ कर ले गयी कुछ नशे वगैरह का मामला था अब एक ही मोहल्ले मैं रहते है तो दीनानाथ जी के साथ जाना पड़ा दीनानाथ जी ने हमको पुलिस स्टेशन भेज दिया और रास्ते मैं खुद कुछ जरूरी काम निबटने चले गए।

हम भी सोच रहे थे की कैसा बुड़बक आदमी है लड़के की जमानत से ज्यादा जरूरी काम इनको और क्या सूझ गया। दीनानाथ जी आये और उन्होंने २ लाख दिए SI को और बस लड़के को लेकर घर आ गए न कोई केस हुआ न कोई जमानत न कोर्ट कचेहरी पलिस ने पैसा खा कर सब थाने मैं ही निबटा दिया। पर हमें क्या कोनसा हमको अपनी जमानत करवानी थे कुछ दिन और गुजरे। ...... अब ऐसा है की कहाँ तक सुनते रहे सब जानते है की पुलिस क्या है और कैसे काम करती है कैसे झूठे केस बनती है कैसे मुजरिमों को छोड़ देती है।

सब पैसे का खेल है पर एक दिन हमारे शहर के तो भाग ही खुल गए सुबह सुबह जगे तो पता चला की हमारे शहर की पुलिस तो एकदम ईमानदार और दूध की धूलि बन गयी अब ये रिफार्म कैसे हुआ वह सुनो हां तो कुछ दिन गुजरे सुबह सुबह पेपर उठाने बहार गए तो देखा की मोहले मैं सब इकठा हो रहे है कहीं जाने के लिए काफी उत्तेजित दिख रहे थे हमने भी सोचा की मोहले की कोई समस्या होगी सो हमारा भी फ़र्ज़ बनता है। हमने भी अखबार छोड़ा और उन सबके साथ चलने की तयारी करने लगे। 

पता चल की सब पुलिस स्टेशन जा रहे है हमने भी पेण्ट शर्ट पहनी अपना कैमरा कलम उठाई और पुलिस स्टेशन की और भाग लिए। अरे यह सामने तो पूरा का पूरा पुलिस थाना ही घिरा हुआ है भीड़ बहुत ज्यादा है बीच बीच मैं हमारे मोहले वाले भी दिख रहे थे कुछ पुलिस वाले भी दिख रहे थे जो एक तरफ खड़े थे सीना फूला कर।

फूल नारेबाजी पुलिस की जयकार हो रही थे फिर अचानक पता नहीं क्या हुआ भीड़ अचानक पुलिस ठाणे मैं घूस गयी खूब हंगामा हुआ जब भीड़ छंटी तो वहां बच गयी थी बस २ आदमियों के मुर्दा जिस्म पहचाने भी नहीं जा रहे थे हम अपने कैमरा के साथ दूर एक तरफ खड़े रहे पास जाकर फोटो लेने की हिम्मत नहीं हुई बताया था न की एक्सीडेंट खून वगेरा से मितली होने लगती है तभी अपने भंडारी बाबू दिखाई दिए सोचा की उनसे डिटेल पता की जाये शायद अख़बार मैं छपने लायक कुछ हो भंडारी बाबू ने बताया की कल देर रात तकरीबन १० से ११ के बीच अपने भूतों वाले बगीचे मैं एक लड़की का रपे और उसका क़त्ल हो गया उसी सिलसिले मैं दो लड़के गिरफ्तार किये थे रपे और क़त्ल करने के बाद ट्रैन से भागने की कोशिश कर रहे थे तुरंत कारवाही की और पकड़ लिए पर क्या करें भीड़ बेकाबू हो गयी और दंगे मैं दोनों लड़के मारे गए।  हमने सोचा चलो अच्छा हुआ साले मरे गए ऐसी ही सजा मिलनी चाहिए थी सालो को। 

भंडारी बाबू का फोटो लिया और फिर चलने की सोच ही रहे थे अभी तक मुर्दा जिस्म वही पड़े थे। एक बार तो सोचा की ऑफिस चला जाये फिर सोचा की चलो हिम्मत करके दोनों लाशों की फोटो ले ली जाये ताकि अखबार मैं छाप कर वाह वाही कमाई जा सके।  अकेले जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी अब लाश हमला तो कर नहीं सकती पर डर तो लगता ही है न इसलिए भंडारी बाबू से साथ चलने की रिक्वेस्ट कर दी।  भंडारी बाबू तो तैयार ही बैठे थे हमने भी कैमरा लाशों की तरफ किया और दबा दिया बटन ५ या ७ बार बस फिर जल्दी से दूर हट गए।  साइड मैं जाकर जब डिस्प्ले मैं देखा तो देखा की दोनों लड़को के कपडे कुछ पहचाने से है गौर से देखा तो दोनों लड़के भी पहचाने से लगे धीरे धीरे पहचान पाए एक तो अपना भावेश था और दस्ता उसका छोटा भाई। अरे अपने मुन्ना के दोस्त कल दोपहर मैं ही आये थे।

और यह दोनों लड़के तो कल शाम ७ बजे से लेकर १२ बजे तक मेरे साथ ही थे हम लोग होटल भानु मैं डिनर कर रहे थे और उसके बाद रेलवे स्टेशन चले गए १२ बजे उन दोनों की ट्रैन थी स्टेशन पर ही थे हम जब ट्रैन आयी और हम दोनों लड़कों को डिब्बे मैं बैठा कर घर चले आये जब दोनों लड़के ७ बजे से १२ बजे तक हमारे साथ थे तो आखिर दोनों ने रेप और क़त्ल कैसे किया हो सकता है हम भागे भागे गए भंडारी बाबू के पास और उनको बता की यह दोनों लड़के तो कल सारी शाम हमारे साथ थे और साहब आफत टूट पड़ी हमारे ऊपर भंडारी बाबू ने तुरंत हमको मुजरिमों के तीसरे साथी के रूप मैं कोर्ट मैं पेश कर दिया और फिर बस क्या बताएं क्या क्या हुआ बस अब हम कैदी नंबर ३०६ है।


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