Akanksha Gupta

Crime

4.7  

Akanksha Gupta

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कातिल (हु नेवर मडर्ड) भाग-3

कातिल (हु नेवर मडर्ड) भाग-3

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भले ही मिस्टर सिंघानिया की रहस्यमयी मौत की गुत्थी अभी तक सुलझ ना सकी हो लेकिन न्यूज चैनल्स और मीडिया के लिए अब सिंघानिया एम्पायर के नए मैनेजिंग डायरेक्टर मिस्टर विधान सिंघानिया की काबिलियत एक सवाल बनकर उभरी थीं कि क्या मिस्टर पुरषोत्तम के देहांत के बाद विधान उसी तरह से इस एम्पायर को नई ऊंचाइयों पर लेकर जा पायेंगे? आखिर क्या होगा इस सिंघानिया एम्पायर का भविष्य?

किसी की मौत से जिंदगी रुकती नही और पुरषोत्तम सिंघानिया की मौत के बाद भी यही हो रहा था। विधान ने ऑफिस जाना तो शुरू कर दिया था लेकिन वहाँ पर उसका मन नही लग रहा था। उसके मन में एक सवाल ही चल रहा था कि उसके पापा की हत्या किसने की और क्यों? क्या उनकी जिंदगी में कुछ ऐसा हुआ था जो किसी को नहीं पता और वो कौन था जिसने उन्हें उस फ्लाईओवर पर बुलाया था?

मिस्टर सिंघानिया की मौत के सात दिन बाद आज माधवी ने खुली हवा में सांस ली थी। लिविंग रूम की खिड़की से झांकते हुए माधवी के चेहरे पर एक अजीब सी बैचैनी और गुस्सा झलक रहा था। उसके साथ लिविंग रूम में एक और शख्स मौजूद था जो सोफे पर बैठा हुआ था।

मैं पिछले चार दिनों से तुमसे बात करने की कोशिश कर रहा हूँ लेकिन ना तुम मेरा फोन रिसीव कर रही हो और ना ही कोई रिप्लाई कर रही हो, हुआ क्या है तुम्हें माधवी? इस तरह से रिएक्ट क्यों कर रही हो? उस शख्स ने पूछा तो माधवी उसकी ओर मुड़ी और गुस्से में बोली- “मुझे क्या हुआ है, यह तुम पूछ रहे हो? पुरषोत्तम की डेथ हुए आज पूरे सात दिन हो गए हैं। किसी ने उसका मर्डर कर दिया है।चारों ओर यह खबर फैली हुई है और तुम अब आए हो अपनी दोस्ती निभाने।” कहने के साथ ही माधवी सोफे पर बैठ गई।

“ऐसा नही हैं माधवी, तुम तो जानती हो कि मै एक इम्पोर्टेन्ट सर्जरी के लिए आउट ऑफ इंडिया गया था। आज सुबह जैसे ही मुझे इस बारे मे पता चला, मै सीधा तुमसे मिलने चला आया। मुझे तो अब तक यकीन नहीं हो रहा कि कोई उसका मर्डर भी कर सकता हैं। तुम तो मेरा फोन भी तो रिसीव नही कर रही थी जो मुझे इस बारे मे कुछ पता चलता।” उस शख्स ने सफाई देते हुए कहा तो माधवी का गुस्सा शांत हुआ।

माधवी ने कुछ सोचते हुए कहना शुरू किया- “मुझे डर लग रहा है शैलेश, कहीं यह सब उस दिन की वजह से तो नही हो रहा? कहीं कोई हमसे उसका बदला तो नहीं ले रहा?”

शैलेश चौंक गया। उसने माधवी को इस तरह देखा जैसे किसी ने उसके सामने कोई भूत लाकर खड़ा कर दिया हो। कुछ पल तक चुप रहने के बाद शैलेश ने माधवी से धीमे स्वर में कहा- आर यू आउट ऑफ योर माइंड माधवी? तुम्हें होश भी हैं कि तुम क्या कह रही हो? हमने उस बात को वहीं दफन कर दिया था तो आज तुम यह बात क्यो खोल रही हो। भूल गई हमने एक दूसरे से प्रॉमिस किया था कि इस बात का खयाल तक अपने जेहन में नही आने देंगे। पुरषोत्तम की भी यहीं इच्छा थी कि हम उस राज को अपने दिल में ही दफन कर देंगे। तब से लेकर आज तक हमने उस बारे मे एक शब्द तक नहीं कहा और तुम कहती हो कि कोई उस वजह से पुरषोत्तम की हत्या करेगा। यह हो ही नहीं सकता।”

“तो फिर किसने मारा है पुरषोत्तम को? उसका कोई बिजनेस राइवल तो हो नहीं सकता क्योंकि तुम जानते हो कि वो अपने दुश्मनों के साथ क्या करता है। किसी मे उसके सामने खड़े होने की हिम्मत नहीं थी तो फिर कौन है जिसमें उसकी हत्या करने की हिम्मत हो.....” माधवी शैलेश से बहस कर ही रही थी कि उसके कानों में एक आवाज पड़ी- “इसका पता हम लगायेंगे मिसेज सिंघानिया कि मिस्टर सिंघानिया का हत्यारा कौन है लेकिन फिलहाल अभी तो हमें आपकी मदद चाहिए।”

शैलेश और माधवी ने चौंक कर दरवाजे की ओर देखा तो वहाँ अर्जुन प्रिया के साथ खड़ा हुआ मुस्कुरा रहा था जैसे कि उसने कुछ सुन लिया हो। दोनों को वहाँ देखकर शैलेश और माधवी की सिट्टी पिट्ठी गुम हो गई। उन्हें डर था कि अर्जुन ने उन दोनों की बातें सुन ली होगी। शैलेश ने खुद को संयत किया और माधवी को नॉर्मल होने का इशारा किया। उसने आगे बढ़कर अर्जुन और प्रिया का वेलकम किया।

“आइये एसीपी अर्जुन, आखिरकार आपसे मुलाकात हो ही गई।काफी कुछ सुना था आपके बारे मे लेकिन सोचा नहीं था कि इस वजह से मुलाकात होगी।” शैलेश ने अर्जुन और प्रिया को बैठने का इशारा किया और खुद माधवी के बगल में जाकर बैठ गया।

“डॉक्टर शैलेश चलिए अच्छा ही है, इसी बहाने अब आप दोनों से एक साथ बात हो जाएगी वरना आपको परेशान करना पड़ता।” अर्जुन ने कहा

“नही एसीपी अर्जुन, इसमें परेशानी वाली कोई बात नहीं। आप बस अपनी ड्यूटी कर रहे हैं। खैर कहिये आपको क्या मदद चाहिए? हम आपको पूरा कॉपरेट करेंगे।” शैलेश ने कहा।

अर्जुन ने माधवी की ओर देखा और पूछा- मिसेज सिंघानिया क्या आप पार्टी वाले दिन के बारे में कुछ बताना चाहेंगी?”

माधवी ने पार्टी की शुरुआत से लेकर झगड़े तक की सारी बातें बताने के बाद कहा- “उसके थोड़ी देर बाद जब मैं नीचे गई तो पुरषोत्तम वहाँ नही थे। मुझे लगा कि शायद गुस्से में कहीं चले गए होंगे लेकिन जब कुछ देर तक पुरषोत्तम वापस नहीं आये तो मैने ही पार्टी खत्म की और वापस अपने कमरे में आ गई। फिर उसके बाद तो बस पुलिस स्टेशन से पुरषोत्तम के बारे में खबर ही मिली।” कहते हुए माधवी की आंखे भर आई।

“तो जब आप कमरे मे आई थी तो क्या आपने सुना था कि वे किससे क्या बात कर रहे थे?” अर्जुन ने माधवी से पूछा।

“मुझे नहीं पता लेकिन उस फोन को सुनकर वे काफी परेशान हो गए थे और हमारे कहासुनी के बाद कमरे से बाहर चले गए। उसके बाद क्या हुआ मैं नहीं जानती।” माधवी ने कहा और चुप हो गई।

“और डॉक्टर शैलेश क्या आप बता सकते हैं कि वो फोन किसका हो सकता हैं?”अर्जुन का निशाना अब शैलेश की तरफ था।

“जी अब मैं क्या बता सकता हूँ। पुरषोत्तम ने इस बारे में कभी कोई जिक्र नहीं किया। अगर मुझे पता होता तो मैं आपको जरूर बताता।आई एम सॉरी एसीपी अर्जुन बट मैं आपकी इस मामले में कोई हेल्प नही कर पाऊंगा।” शैलेश ने कहा तो अर्जुन के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।

“देखिए मिस्टर शैलेश, जबसे यह शहर मिस्टर सिंघानिया को जानता है तबसे लेकर आज तक उनकी लाइफ के हर छोटे बड़े इवेंट्स में फिर चाहे वो अच्छे हो या बुरे, आपने उनका हर सुख दुख में साथ दिया है तो फिर आप इस बात से कैसे अंजान रह सकते है? कही ऐसा तो नही कि आप हमसे कुछ छुपा रहे है?” अर्जुन ने शक जताया तो शैलेश का चेहरा तमतमा गया। वो लगभग चिल्लाते हुए बोला- “देखो एसीपी मुझ पर शक करके तुम अपना और मेरा दोनों का टाइम बर्बाद कर रहे हो। मुझे इस फोन कॉल के बारे मे इसलिए नही पता क्योंकि उस वक्त मैं इंडिया के बाहर गया था सर्जरी के लिए। इसी वजह से मैं उस दिन की पार्टी में भी नहीं आ पाया।”

“पहले तो चिल्लाना बंद कीजिए मिस्टर शैलेश। माना कि आप उस दिन के बारे मे कुछ नहीं जानते लेकिन फोन कॉल के रिकॉर्ड्स के मुताबिक ये सिलसिला तो पिछले छः महीने से चल रहा था। क्या अब भी आप यही कहेंगे कि आप इस बारे मे कुछ नहीं जानते।” अर्जुन ने अपने पत्ते खोले तो शैलेश की बोलती बंद हो गई।

“क्या कह रहे है एसीपी अर्जुन पिछले छः महीने से यह सब चल रहा है। इतने टाइम से मतलब कोई उन्हें फोन करके किसी बात पर परेशान कर रहा था और मुझे इसकी भनक तक नहीं लगी। क्या तुम इस बारे जानते थे शैलेश?” माधवी हैरान थीं।

“नही माधवी, मैं इस बारे मे बारे मे कुछ नहीं जानता। पुरषोत्तम ने इस बारे मे कभी कुछ बताया ही नहीं। और एसीपी अर्जुन मुझे आपसे सच छुपाकर कुछ हासिल नहीं होगा तो मैं आपसे सच क्यो छुपाउंगा।” शैलेश की आवाज धीमी पड़ चुकी थीं और अब वो सफाई दे रहा था।

“मुझे तो यह सब उस दीप्ति का किया धरा लगता है। यह सब उसी की चाल है।” माधवी ने शक जताया।

आपको ऐसा क्यों लगता हैं माधवी जी? दीप्ति ऐसा क्यों करेगी? वो तो आपकी कम्पनी में बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर्स की मेम्बर हैं। मिस्टर सिंघानिया ने खुद उसे बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर्स में शामिल किया था। अर्जुन ने वजह जाननी चाही।

“ये तो मैं नहीं जानती कि वो ऐसा क्यों करेगी लेकिन यह सब उसने ही किया है और इसका मुझे पूरा यकीन है। आज से लगभग ढाई साल पहले जब नेशनल हाईवे पर पुरषोत्तम का एक्सीडेंट हुआ था तो दीप्ति ने उनकी जान बचाई थीं और इसके बदले में पुरषोत्तम ने उसे अपनी कम्पनी मे सी.ए. की जॉब ऑफर की। जॉब पर आने के बाद उसने पुरषोत्तम का विश्वास जीतना शुरू किया और धीरे धीरे पुरषोत्तम के साथ कम्पनी के फैसलों में अपनी राय देने लगी।”

“करीब तीन महीने पहले पुरषोत्तम ने मुझसे उसे बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर्स में शामिल करने की बात कही। पहले तो मुझे लगा कि वो मुझे परेशान करने के लिए मजाक कर रहा है लेकिन जब उसने कहा कि वो वाकई यह करना चाहते हैं तो मैने उन्हें समझाया कि यह करना ठीक नहीं होगा लेकिन उनकी आंखों पर तो जैसे अंधविश्वास की पट्टी बंधी हुई थी। उन्होंने मेरी एक नहीं सुनी और उस दिन उसे बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर्स में शामिल कर लिया। मुझे तो डर था कि कहीं पुरषोत्तम उसे इस घर की बहू बनाने की तो नही सोच रहे और इसी बात को लेकर हम दोनों के बीच वो झगड़ा हुआ था। बाकी तो आपको सब पता ही है।” माधवी ने अपनी बात खत्म की।

पूरी बात सुनकर अर्जुन ने कुछ सोचा और फिर माधवी और शैलेश के सामने एक कागज रख दिया।

“ये क्या है एसीपी अर्जुन?” माधवी और शैलेश उस कागज को देखकर हैरान परेशान थे।

ये मिस्टर सिंघानिया के कॉल डिटेल्स हैं। क्या आप दोनों में से कोई यह नम्बर पहचानता है? अर्जुन ने एक नम्बर पर उंगली रख कर पूछा।

“नही। किसका नम्बर हैं यह? दीप्ति का?” माधवी और शैलेश ने सवाल किया।

“नही यह वो नम्बर हैं जिसपर मिस्टर सिंघानिया की आखिरी बार बात हुई थी।” अर्जुन ने बताया।

“किसका नम्बर है यह? कौन है वो जिसने पुरषोत्तम के साथ यह सब किया?” दोनों की बेचैनी बढ़ती जा रही थी।

“यह नम्बर किसी ‘के.के.शर्मा’ के नाम पर रजिस्टर्ड हैं। क्या आप दोनों में से कोई इन्हें जानता है?”अर्जुन ने बताया।

कमरे में एक बार को खामोशी छा गई। शैलेश और माधवी एक पल के लिए बुत बन गए लेकिन अगले ही पल शैलेश ने संभलते हुए कहा- “नही मैं इस नाम के किसी आदमी को नही जानता।” माधवी ने भी यही जवाब दिया। फिर शैलेश ने कहा- “ये जो कोई भी है प्लीज इसको जल्दी से जल्दी पकड़िये और सजा दिलवाइये। यह किसी भी हालत में बचना नही चाहिए।”

“आप उसकी चिंता न करें। कातिल बहुत जल्द हमारी गिरफ्त में होगा। एनीवे माधवी जी एंड शैलेश जी सॉरी टू interrupt योर डिस्कशन। अब मैं हमें चलना चाहिए। आगे जैसे ही कुछ पता चलता है आपको इन्फॉर्म कर दिया जायेगा।” अर्जुन ने खड़े होते हुए शैलेश से हाथ मिलाया।

अर्जुन के वहाँ से जाते ही माधवी ने शैलेश से कहा- “देखा तुमने मैं कह रही थीं ना, कोई हैं जो हमसे उस बात का बदला ले रहा है।”

“पर यह है कौन जो सबकुछ जानता है और हमसे बदला लेने आया है?” शैलेश के चेहरे पर हवाइयां उड़ी हुई थी।

उधर सिंघानिया मेंशन से कुछ दूर आते ही प्रिया ने अर्जुन से पूछा- “अर्जुन वो नाम और पता तो फर्जी था तो फिर तुमने उनसे उसके बारे मे क्यो पूछा?

“भले ही वो नाम और पता फर्जी हो लेकिन उन दोनों के चेहरे का उतरा हुआ रंग तो असली था।” कहकर अर्जुन ने प्रिया की ओर देखा और फिर मुस्कुराया। शायद प्रिया को अर्जुन की बात समझ में आ गई थी इसलिए वो ‘ओह आई सी’ कहते हुए मुस्कुरा दी।

“तुम्हें जो टास्क दिया था उसकी क्या रिपोर्ट है? कितने दिन का काम है?” अर्जुन ने प्रिया से पूछा।

“बस दो दिन और इंतजार करना होगा अर्जुन। उसके बाद नतीजा आपके सामने होगा।” प्रिया ने कहा।

“ओके दैन वेट टिल रिजल्ट्स कम।” अर्जुन ने कहा और दोनों खिलखिला कर हंस पड़े।

उधर उस अंधेरे कमरे में वो साया एक अखबार के टुकड़े पर लाल स्याही से क्रॉस का निशान लगा रहा था जिसपर शैलेश की फ़ोटो थी।

निशान बनाते हुए वो कहता जा रहा था- “वेलकम बैक टू यू डॉक्टर शैलेश, यू हैव टू पे फॉर योर सिंस नाउ।



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