काश तुम आ जाते इस बार

काश तुम आ जाते इस बार

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दिन भर का थका मैं सबके जाने के बाद बिस्तर पर आकर लेटा तो पूरे दिन का घटनाक्रम मेरी आँखों के सामने घूम रहा था। सुबह 8 बजे नर्स का फ़ोन.... मेरी हॉस्पिटल के लिए रवानगी.... सुमन का मृत शरीर...... अंतिम संस्कार प्रक्रिया..... लोगों का आना जाना। अब थका सा अकेला था, पर थकान के बाद भी नींद आँखों से दूर थी।

नर्स की कही बातें मेरे जेहन में घूम रही थीं। किस तरह मेरी गैरहाजिरी में माँ ने सारी हद्दें पार कर दी थीं। पहले सीढ़ियों से फिर घर से धक्के देकर उसे निकाला था, वो भी तब जब वो मेरे बच्चे की माँ बनने वाली थी। अजन्मा माँ के धक्के सहन ना कर सका और पैदा होने से पहले ही........।

मैं भी गुस्से में माँ की बातों पर यकीन कर गया कि सुमन को बच्चा नहीं चाहिए इसलिए सफाई......।

अनाथ थी तो कहाँ जाती.... माँ को पसंद नहीं थी पर मैं तो पसंद करके लाया था उसे। क्यों सिर्फ माँ की बातों का ही भरोसा करता रहा। मैंने एक बार भी उसका फ़ोन तक नहीं उठाया..... ना ही कभी उसकी कोई खबर ली.... वो कहाँ थी.... कैसी थी.... जिन्दा भी थी या नहीं....। क्यों हर बार उसका फ़ोन काट देता रहा..... कितना निष्ठुर हो गया था मैं....। फिर से बिखरने के बाद किस तरह से संभाला होगा उसने खुद को.... वो अकेली जीवन की सब कठिनाइयों से जूझती रही..... नौकरी.... बीमारी.... अकेलापन..... असुरक्षा.... कैसे जी होगी....। अब जबकि ना माँ थी, ना सुमन....

मैंने नर्स का दिया हुआ सुमन का अंतिम पत्र जेब से निकाला और पढ़ने लगा, बहुत छोटा सा पत्र था। चार दिन पहले की तारीख थी, शायद मुझे अंतिम बार फोन लगाने के बाद लिखा होगा

प्रिय राकेश,

मुझे ख़ुशी है कि मैं आज भी तुम्हें पहले जैसा ही प्यार करती हूँ। सिर्फ इस बात का दुःख है कि तुम मुझे समझ नहीं सके। मुझे जो भी मिला मैं उसमें भी खुश हूँ। ताउम्र तुम्हारे नाम के साथ जी ली और तुम्हारे ही नाम के साथ मर रही हूँ। बस एक अफ़सोस रहा तुम्हें मुझपर यकीन नहीं था। फिर भी बस एक बार पीछे मुड़कर तो देखा होता। दो दिन पहले अंतिम बार तुम्हें फोन किया था। दिल में कहीं चाह थी कि पहले ना सही पर काश तुम आ जाते इस बार......., तो मरने से पहले एक बार तुम्हें देख तो लेती....।

तुम्हारी

सुमन

मेरे आँसू मेरे मन में बरसों के जमे मैल को धो रहे थे.... अंधियारी रात बीत चुकी थी और हल्का हल्का उजाला होने लगा था...


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