ऐड़े बनकर पेड़े खाना
ऐड़े बनकर पेड़े खाना
शिल्पी दोपहर का खाना खाकर अपनी बहन के घर जाने के लिए तैयार हो रही थी कि रीना उसके पास आकर बोली, "भाभी बिना अंडे का केक कैसे बनता है ? मुझे तो अंडे वाला ही आता है। मम्मीजी कह रही हैं पापाजी के जन्मदिन के लिए घर पर ही बिना अंडे का केक बनाना है।
"हाँ, पापाजी अंडा नहीं खाते इसीलिए.......।"
"मैं कैसे बनाऊँगी, आप भी जा रही हो...."
"कोई बात नहीं, तुम ऐसा करना पढ़कर बना लेना। मैं तुम्हें रेसिपी वॉट्सएप कर रही हूँ, साथ ही वीडियो का लिंक भी है। मुझे आने में थोड़ी देर....... रात के खाने तक ही आ पाऊँगी।" शिल्पी ने तैयार होते हुए कहा
रीना की आदत थी कि वह छोटे- मोटे काम तो कर देती पर अधिक देर चलने वाले कामों से जी चुराती थी।
कुछ रोज पहले विमला ने अपनी छोटी बहू रीना से कहा था, "बेटा शाम के खाने में गाजर का हलवा भी बनेगा..... तेरे पापाजी ने गाजर और मावा लाकर रखा है ..... और सुन सूखे मेवे और डालकर अच्छे से बनाना।"
"ठीक है मम्मी जी" रीना ने कह तो दिया पर वह जानती थी यह अधिक मेहनत का काम है और काफी समय लगेगा। सो दोपहर में रोटी सेंकते समय उसने बड़े भोलेपन से जेठानी शिल्पी से कहा "भाभी मुझे तो गाजर का हलवा बनाना ही नहीं आता। हमेशा तो मम्मी बनाती थीं। मुझे तो यह भी नहीं पता कि गाजर को कुकर में कितनी देर उबालना है।"
"नहीं छोटी गाजर को कुकर में उबालते थोड़ी ना हैं...... कद्दूकस करके बनाते हैं...." शिल्पी ने हँसते हुए कहा
"वही तो कह रही हूँ, मुझे बनाना नहीं आता, अगर ठीक नहीं बना तो सब मेरी हँसी उड़ाएंगे।" बच्चों जैसी रोनी सूरत बनाकर रीना बोली, भाभी प्लीज आप बना देना....."
ममतामयी भोली शिल्पी अकेले ही लग गई काम में..... उधर रीना मजे से अपने कमरे में फिल्म देखती रही।
कुछ दिन बाद विमला ने रीना से मिर्ची का अचार बनाने का कहा। रीना ने फिर भोली बनकर वह काम भी शिल्पी के सिर कर दिया।
रोज़मर्रा के कामों के अतिरिक्त विमला रीना को जो भी काम बोलतीं वो भोलेपन से काम नहीं आने का बहाना बनाकर उससे बचती और कमरे में फिल्म देखती या मोबाइल चलाती। धीरे-धीरे विमला और शिल्पी रीना की चालाकियाँ समझने लगी थीं।
विमला रीना को काम इसलिए बोलती जिससे दोनों बहुओं पर काम का समान भार रहे। देर सवेर दोनों को काम करने की आदत बनी रहे। उधर शिल्पी किसी काम से इसलिए ना नहीं बोलती थी कि संयुक्त परिवार में काम कोई भी करे पर काम पूरा हो जाना चाहिए और सभी में प्यार बना रहे।
एक रोज़ रीना की सहेली आई थी विमला उसे चाय के लिए बुलाने गई तो रीना की बात सुनकर दरवाजे पर ही रुक गईं। रीना बड़े मजे से बता रही थी, "अरे मैं तो ऐडे़ बनकर पेडे़ खाती हूँ। मेहनत का काम कौन करे, बस मुझे नहीं आता बोल देती हूँ और भाभी खुद उस काम को कर देती हैं।" रीना और उसकी सहेली ठहाका लगाकर हँस पड़ीं।
रीना की चालाकियाँ सुनकर विमला तो दंग रह गई। रात भर सोचती रही, उनके हँसते-खेलते परिवार में ये कैसा कूटनीति का खेल चल रहा है। जिस परिवार को उन्होंने इतने समय से बाँधकर रखा है, वो बिखर जाएगा और ऐसा वो हरगिज़ ना होने देंगी। सोचते- सोचते जाने कब उनकी आँख लग गई।
इस बार उन्होंने रीना को एगलेस केक बनाने का बोलने से पहले ही उन्होंने शिल्पी को सारी बात समझाकर उसे उसकी बहन के घर जाने के लिए राजी कर लिया था। इस बार पेड़े खाने की बारी उनकी थी।