सच का सामना

सच का सामना

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लोग सुबह पसंदीदा समाचार पत्र, 'सच का सामना' में एक खास खबर ढूँढ रहे थे। वे सच्चाई जानने को लालायित थे।

रजत राय का खुद दैनिक समाचार पत्र का कार्यालय था। 'सच का सामना' नाम से उसका दैनिक पेपर निकलता था‌ यह बहुत ही लोकप्रिय समाचार पत्र था, जो अच्छे बड़े ओहदेदार लोगों की सच्चाई भी निर्भीकतापूर्वक खबरों में बयान करता था। दूसरे समाचार पत्र किसी भी खबर को गोलमोल बातों में घूमा दें पर 'सच का सामना' समाचार पत्र लोगों के सामने हमेशा सच्चाई ही पेश करता था।

समय- समय पर लोग रजत राय को मोटी- मोटी रिश्वत का लालच देकर सच छुपाने को कहते परन्तु वह हमेशा रिश्वत को ठोकर मारकर जनता के सामने सच को ही पेश करता। यही कारण था कि वह तीन वर्ष जैसे छोटे से समय में बहुत लोकप्रिय हो चुका था। इसके परिणामस्वरूप उसके दोस्त कम थे और दुश्मन अधिक...।

सुना है, अभी दो रोज़ पहले ही सुर्खियों में छपी खबर के चलते रजत को किसी नेता के चमचे ने पहले रिश्वत देकर खबर बदलने का ऑफर दिया था। रजत के ना मानने पर उसे जान से मारने कि धमकी भी दी गई थी।

कल शाम ही पता चला था कि किसी ने रजत को पार्किंग स्थल पर उसे गोली मार दी थी। निशाना अचूक था। गोली सीने के पास लगी थी और दुर्घटनास्थल पर ही उसकी मृत्यु हो गई थी।

शंका जताई जा रही है कि शहर का मशहूर नेता शंकर खुद वेश्याओं का अड्डे का मालिक है। उसी की पनाह में चलने वाले वेश्यालय खत्म नहीं हो पा रहे। पहले शंकर का बेटा गैंगरेप में पकड़ा गया था और अब खुद...।

पुलिस के छापे में शंकर को वेश्यालय से ही गिरफ्तार किया गया था। जिसकी खबर सिर्फ सच का सामना समाचार पत्र में छपी थी। अन्य समाचारपत्रों ने खबर में से शंकर के नाम को हटा दिया था। इसी रंजिश के रहते किसी ने रजत का काम तमाम कर दिया था।

कहते भी हैं, शब्दों के बाण तलवार से दिए घावों से अधिक दुखते हैं जो व्यक्ति को रह-रहकर भीतर तक तकलीफ़ देते हैं। शायद ऐसी ही सच्ची खबरों ने शंकर को भीतर तक आहत किया होगा। लोगों में सच का सामना करने की हिम्मत जो नहीं बची।


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