मंजिल

मंजिल

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बड़े सा सुसज्जित हाल खचाखच भरा था। कुछ ही देर में प्रदेश के मुख्यमंत्री निस्वार्थ समाज सेवा के लिए सम्मानित करने वाले थे, जिसके लिए नीति माथुर का नाम भी दिया गया था।

नीति एक मध्यमवर्गीय परिवार की बेटी थी जिसके जन्म के पूर्व ही ऐक्सिडेंट में उसके पिता का निधन हो गया था। रिश्तेदारों से ना के बराबर मदद मिलती, माँ नौकरी करती तो नीति को कौन पालता। विधवा माँ ने कहीं से कोई सहारा ना मिलने पर लोगों के कपड़े सिलकर उसे पाला और पढ़ाया लिखाया।

दसवीं बारहवीं तक आने पर नीति खुद भी पढ़ती और ट्यूशनें भी लेती। बचपन से बुरे दिन देखकर पलते बढ़ते उसके कोमल मन में जरूरतमंदों की सहायता करने के जज्बे ने अपना स्थान बना लिया था।

कॉलेज में पढ़ाई के दौरान ही उसने अपने कुछ मित्रों के साथ मिलकर समाजसेवा करने का एक संगठन सा बना लिया था।

सभी मित्र लोगों को सोशल मीडिया के माध्यम से संदेश भेजते और उनके घर जाकर पुराने कपड़े, जूते -चप्पल किताबें, बैग, खिलौने, कम्बल, रजाई, दवाएं, खाद्य सामग्री इत्यादि अनुपयोगी सामग्री एकत्रित करके स्लम एरिया में जाकर आवश्यकतानुसार खुद बाँटते। यह काम वे छुट्टी के दिन करते। जवानी के गरम खून की रौ में पहले यह काम जितना सरल लगा था बाद में उतना कठिन लगा।

एक तरफ लोगों को विश्वास दिलाना था दूसरी ओर उनका खुद का भविष्य भी था। पढ़ाई समाप्त होने के बाद नीति के लिए नौकरी करना भी अनिवार्य था। अतः नीति ने समाजसेविका बनने के लिए कोर्स किया और अनाथ बच्चों की एन.जी. आे. से जुड़ गई। यहाँ सेवा भी थी और स्वयं के जीवन निर्वाह के लिए कमाई भी। वह समाज सेवा का कोई मौका ना छोड़ती। माह में एक बार वह गरीब बस्ती की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सिलना -पिरोना और स्वच्छता तथा स्वास्थ्य की बातें बताती। पुरानी, टूटी व बेकार चीजों से तरह तरह का सामान बनाना सिखाती।

माँ की उम्र ढल रही थी, अपने जीते जी नीति का विवाह करना चाहती थी। परन्तु नीति जानती थी विवाह के पश्चात उसे समाज सेवा का मौका इस प्रकार से नहीं मिलेगा। यही सोचकर नीति ने विवाह ना करने का निश्चय किया।

इधर उसने माँ को अपना निर्णय सुनाया उधर उसके काम और सेवा भावना से खुश होकर एन. जी. ओ. के चेयरमैन श्री माथुर के लड़के सुबोध का रिश्ता आया। रिश्ता सजातीय ना था परंतु उसके कार्यक्षेत्र को देखते हुए एकदम उपयुक्त था। नीति सुबोध को जानती थी। वह दिखने तथा स्वभाव से भी अच्छा था।

सभी की रजामंदी से दोनों का विवाह सम्पन्न हुआ तथा नीति पूर्ववत समाजसेवा से जुड़ी रही। उसकी कई वर्षों से की गई निस्वार्थ सेवा के फलस्वरूप उसे सम्मानित किया जा रहा था। नीति सुबोध की जीवनसंगिनी बनकर खुश थी जिसके सहारे वह अपनी मंजिल की ओर बढ़ रही थी।


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