काश!मैं तुम्हारे लिए लड़ा होता
काश!मैं तुम्हारे लिए लड़ा होता
रवीश हॉस्पिटल के बेड पर लेटी अपनी पत्नी को एक टक देख रहा था, उसकी आंखें सुनी हो गई। मन गलानी से भर रहा था। उसकी पत्नी निशा जिंदगी के आखिरी सांसें ले रही थी। शायद निशा भी रवीश का चेहरा नहीं देखना चाहती थी। क्यूंकि कहीं ना कहीं उसकी उस दशा का जिम्मेदार वो ही था।
पांच साल पहले ही रवीश और निशा की शादी हुई थी, निशा के मां बाप दोनों ही नहीं थे, निशा के मामा ने रवीश से शादी करके अपनी जिम्मदारियों से हमेशा के लिए पल्ला झाड़ लिया था।
निशा के ससुराल में सास ससुर , जेठ जेठानी , और रवीश थे।
सास ससुर पुरानी सोच वाले लोग थे। इंसान की भावनाओं की कीमत शायद ही उन्हें थी। घर में सास का एक छत्र राज था। सास ससुर के कहने के बाद ना बेटों की सुनी जाती थी ना बहूओ की।
निशा की अपनी जेठानी मधु से अच्छी बनती थी। निशा मधु को अपनी बड़ी बहन ही मानती थी। दोनों एक दूसरे से दिल की बात कर लेती थी। एक दूसरे का ध्यान रखती थी।
शादी के साल भर बाद ही निशा ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया। सभी खुश थे सिवाय सास ससुर के। उन्हें पोते की आश थी। क्युकी बड़ी बहू मधु के भी बेटी ही थी, और अब निशा के भी।
समय बितता चला गया। दो साल बाद निशा फिर से गर्भवती हुई। फिर से सास ससुर को एक पोते की आश जग गई।
लेकिन शायद समय कुछ ओर ज़ाल रच रहा था, डॉक्टर ने चेक अप के दौरान बताया की निशा के गरभाशय में गांठ है, हो सकता है कोई गंभीर बीमारी के संकेत हो, तो आप पहले इसका इलाज करा ले ओर प्रेगनेंसी को आगे ना बढ़ाए।
जिसका डर था वहीं हुआ, पता चला कि ये कैंसर की गांठ है, अभी शुरुआत ही है। लेकिन इसके ऑपरेशन के लिए बच्चा गिराना पड़ेगा।
बच्चे को गिराने की बात से ही सास ससुर ने हंगामा कर दिया। ससुर जी ने साफ साफ बोल दिया " कोई बच्चा नहीं गिराया जाएगा, पहले बच्चा हो जाए बाद में देखते है उसका इलाज करा लेंगे। "
सास ने भी कह दिया"कौनसा अभी मर रही है पहले बच्चा हो जाए इस घर का कुल दीपक फिर देखते हैं। "
सभी ने समझाने की कोशिश की लेकिन सास ससुर अपनी बात पर अडे रहे। रवीश ने भी भगवान के उपर ही छोड़ दिया, मां बाप के फैसले से अलग जाने की हिम्मत ना जुटा पाया।
छह महीने बाद निशा ने एक बेटे को जन्म दिया। सास ससुर की तो मन की मुराद पूरी हो गई। वे तो भूल ही गए जिसने इस बच्चे को जन्म दिया है उस निशा को कैंसर अंदर से कितना खोखला करते जा रहा है।
निशा की बेटी अभी दो साल की थी और बेटा बस एक महीने का ही हुआ था कि डॉक्टर ने कह दिया अब किमो दे कर ही कुछ उपाय किए जा सकते है, कैंसर इतना फेल चुका है कि अब निशा का बचना ना के बराबर है। इसलिए हॉस्पिटल में भर्ती करवा दे।
अपनी दो साल की बेटी ओर दूध मुहे बच्चे को जिसे ठीक से गोद में भी नहीं ले पाई उसे अपनी जेठानी मधु को सौंपते हुए निशा ने कहा-
"जीजी मैं शायद अब कभी वापिस लोट कर इस घर में ना आ पाऊं, कभी अपने बच्चों को भी ना देख पाऊं, मुझे सिर्फ और सिर्फ आप पर ही भरोसा है, आप ही मेरे बच्चो की मां बन सकती है। बस आप मेरी बेटी को ये सीख देना , की अपने लिए आवाज उठा सके, अपनी जिंदगी के फैसले खुद ले सके इस काबिल बनाना। ओर मेरे बेटे को सही ग़लत में फर्क करना सीखना की किसी लड़की की जिंदगी खराब ना हो। "
निशा फिर से अपने दोनों बच्चों को कस कर गले लगाती है ओर हमेशा हमेशा के लिए अपने बच्चों को मधु की गोद में सौंप देती है।
आज एक महीना हो गया निशा को भर्ती हुए, किमो थैरेपी काम ना आया। ओर निशा ने अपनी आंखे हमेशा के लिए बंद कर ली। निशा जा चुकी थीं
रवीश की मां ने बेटे को समझाते हुए कहा "बेटा जो होना था हो गया। अब जन्म मरण किसी के हाथ में थोड़ी होता है। "
"ये तो हत्या है मां, ओर मैं गुनहगार हूं अपनी पत्नी का जिसकी आंखें हमेशा मुझसे सवाल करेगी कि मैं उसके लिए क्यूं नहीं लड़ा। अपने बच्चों का गुनहगार हूं कि उनसे उनकी मां को छीन लिया। "
रवीश खुद ही खुद के अकेले पन से लड़ रहा है, शायद ये ही उसकी सजा है।
दोस्तों, ये कहानी एक सत्य घटना से प्रेरित है। इस कहानी को लिखते समय भी मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि क्या इंसान सच में इतना स्वार्थी हो सकता है जो दूसरे इंसान के जीवन की कीमत ना समझे। लेकिन आंखों देखी घटना है तो सत्य से मुंह नहीं फेर सकते।
