काजल बुआ

काजल बुआ

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स्वरा आज सुबह से ही तैयारियों में लगी हुई थी। दोपहर की ट्रैन से काजल बुआ जो उसके घर आने वाली थी। वैसे तो उसकी तीन बुआ थी पर काजल बुआ से उसे बहुत लगाव था। खाना बनाते-बनाते स्वरा बचपन की यादों में खो गई। काजल बुआ उससे सिर्फ चार साल बड़ी थी। उन दोनों का रिश्ता बुआ-भतीजी का कम सहेलियों का ज़्यादा था। दोनों एक दूसरे को अपने मन की सभी बातें बताती थी पर फिर भी उनमें हमेशा एक बड़े वाला रौब रहता इसलिए ज़्यादातर किसी भी तर्क-वितर्क में स्वरा को ही चुप होना पड़ता था। समय बीतने के साथ-साथ काजल बुआ का विवाह पास के ही एक गाँव में तय हो गया...बहुत ज़्यादा अमीर परिवार नहीं था पर किसी चीज़ की कमी भी न थी। शादी के पांच-छ: साल के भीतर उनके तीन बच्चे हो गए और कुछ दिन बाद स्वरा की भी शादी शहर में एक अच्छे परिवार में हो गई।

काजल बुआ वैसे तो बहुत प्यारी थी पर कुछ बातों को लेकर उन्होंने अपनी सोच बहुत सीमित बना रखी थी और सबके लाख समझाने पर भी वो उन्हें बदलना नहीं चाहती थी। स्वरा ने उनके लिए सारा खाना शुद्ध देसी घी में बना कर तैयार किया। दोपहर को ठीक दो बजे विनायक बुआ को स्टेशन से लेकर आ गए। आते ही काजल बुआ ने स्वरा को कस के गले लगाया और उसे ढ़ेर सारी आशीषें दी। स्वरा ने बुआ का सारा सामान गैस्ट रूम में रखवाया और उनके लिए ठंडी-ठंडी लस्सी लेकर आ गयी। बुआ का मन लस्सी पी  कर प्रसन्न को गया। पूरा दिन स्वरा ने अपनी बुआ से जी भर के बातें की। विनायक और बच्चों ने भी उनकी आवभगत में कोई कसर नहीं छोड़ी। अगले दिन स्वरा ने सोचा बुआ को मॉल दिखा कर लाती हूँ। उसने उनसे तैयार होने को कहा और खुद भी तैयार होने चली गयी। गर्मी बहुत थी इसलिए स्वरा ने हलके रंग की पतली सी कुर्ती के साथ मैचिंग पैंट पहन ली।

मेकअप स्वरा ने ना के बराबर किया था...तभी काजल बुआ भी भारी सी साड़ी पहन कर बाहर आई। लंबी सी बड़ी सी बिन्दी, आँखों में भर-भर कर काजल एक-एक हाथ में दर्जन भर चूड़ियां, पैरों में मोटी सी पायल और दोनों पैरों की तीन-तीन उँगलियों में बिछियां...स्वरा बुआ को देखती रह गयी और सोच में पड़ गई "बुआ लग तो सुन्दर रही हैं पर हम किसी शादी में थोड़ी जा रहे हैं"।

स्वरा सोचने लगी मॉल में इस तरह जाना थोड़ी अच्छा लगेगा। स्वरा की बुआ से कुछ कहने की हिम्मत नहीं हो रही थी। स्वरा को इतने सादे से रूप में देख कर काजल बुआ ने उसे डांटते हुए कहा "यह कैसे तैयार हुई है तू, एक हाथ में घड़ी पहन ली और दूसरे हाथ में एक कड़ा...ना मांग भरी और ये बिंदी भी कितनी छोटी लगाईं है, दिख ही नहीं रही। हमारे गाँव में तो इसे गरीबी की निशानी मानते हैं और सुहागन तो सजी-धजी ही अच्छी लगती है। स्वरा ने कहा "बुआ यहाँ शहर में सब ऐसे ही रहते हैं"। बुआ ने स्वरा को आँखें दिखाते हुए कहा  "यहाँ शहर में रह कर तुझे भी शहर की हवा लग गई"। स्वरा ने विश्वास से कहा "बेशक बुआ यहाँ शहर में रह कर मेरी सोच में भी बहुत परिवर्तन आया है।

शादी के बाद कुछ सालों तक मैं भी हर समय बनी-ठनी रहती थी पर यहाँ "मैंने देखा ज़्यादातर औरतें बहुत साधारण वेश-भूषा में ही रहती हैं। जो नौकरी करती हैं, उन्हें तो रोज़ इतनी भाग-दौड़ करनी होती हैं तो उनके लिए तो ज़्यादा सजना-धजना और मुश्किल हो जाता है। उन्हें अपनी सुरक्षा का भी ध्यान रखना होता है...सिर्फ लम्बी सी मांग भरने से ही पति की लम्बी उम्र नहीं होती। यहाँ तो बहुत सी औरतें मांग ही नहीं भरती सब किस्मत का खेल होता है। "मुझे भी अच्छे से तैयार होना पसंद है पर शादी-ब्याह या तीज त्यौहार के मौके पर"...स्वरा को पता था बुआ के ऊपर उसकी बातों का कोई असर नहीं हो रहा होगा इसलिए वो चुप हो गयी। बुआ भी स्वरा से ज़्यादा बहस नहीं करना चाहती थी इसलिए बस इतना ही बोली "तुम लोगों ने अपने संस्कार, अपने रीति-रिवाज सब भुला दिए"।

बुआ ने भी स्वरा से बोली "मॉल-पॉल तो छोड़ वहां तो सब लूटते हैं....तू मुझे यहाँ की चाट खिला कर ला। विनायक जी के साथ स्टेशन से आते हुए रास्ते में मैंने बहुत से चाट वाले देखे थे। मेरे मुंह में तो तब से ही पानी आ रहा है"। स्वर ने कहा "चाट तो मैं आपको ज़रूर खिलाऊंगी"। बुआ ने जी भर के चाट खाई। एक हफ्ता कैसे निकल गया पता ही नहीं चला। इस एक हफ्ते में काजल बुआ रोज़ स्वरा को अच्छे से सज-धज कर रहने की हिदायत देती और कहती "ईश्वर का दिया हुआ जब सब कुछ है तेरे पास तो ऐसे गरीबों की तरह क्यूँ रहती है।

अपने सुहाग की लम्बी उम्र के लिए ऐसे ही लम्बी सी मांग भरा कर जैसे में भरती हूँ"। स्वारा को पता था कुछ बातों को लेकर बुआ अपनी सोच से बाहर नहीं आना चाहती इसलिए वो उन्हें ज़्यादा. कुछ नहीं कहती। ऐसे ही बुआ का जाने का समय आ गया, दोनों बुआ-भतीजी गले लग कर जी भर के रोई। करीब एक साल बाद पता चला....एक्सीडेंट में काजल बुआ के पति यानी स्वरा के फूफाजी चल बसे।

स्वारा तो सुनते ही सकते में आ गयी। अगली ट्रैन पकड़ कर ही बुआ के घर पहुंची। रास्ते भर बुआ का मासूम चेहरा, उनका अपनी बातों पर, अपनी सोच पर अडीग विश्वास। स्वरा को तो हमेशा से उनका खिलखिलाता हुआ चेहरा देखने की ही आदत थी...उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था की वो उनका कैसे सामना करेगी। बुआ के घर के बाहर बहुत भीड़ थी अंदर एक कमरे में सर ढ़के बिल्कुल निढ़ाल सी बुआ स्वारा को देखते ही उसे गले लगा कर फफक-फफक कर रोने लगी... जैसे उससे कहना चाह रही हों "क्या गलती थी मेरी, क्या नहीं किया इनकी लम्बी उम्र के लिए व्रत त्यौहार साज़ श्रृंगार फिर क्यूँ अकेला छोड़ कर चले गए।"


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