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Bhavna Thaker

Drama Romance Tragedy

5.0  

Bhavna Thaker

Drama Romance Tragedy

कागज़ी एहसास

कागज़ी एहसास

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सुबह की चाय के साथ ही मेरे सर पर तपाक से थपकी लगाकर उसने कहा, "वाह क्या लिखती हो, कल देर रात तक जगकर तुम्हारा लिखा सब पढ़ डाला..!"

मैंने सिर्फ़ हम्मम् में में सिर हिलाया और पूछा- "सच में सब पढ़ डाला..!"

बोले- "हाँ..."

मैंने पूछा- "क्या लिखा है बताओ..क्या तात्पर्य है मेरे लिखने का, क्या उद्देश्य है ओर किसके लिए, क्यूँ लिखा है मैंने इतना सारा..!"

बोले- "अरे भई, वो मुझे कैसे पता चलता बस अच्छा लगा तो पढ़ डाला। ऐसे ही लिखती रहो।"

"ओह तो तुमने खुद को ही पढ़ा और पहचाना भी नहीं"

"हाँ, तुम्हें कैसे पता चलता जो मेरी आँखों के भाव भी आज तक ना पहचान पाए वो मेरा लिखा कैसे जान पाता..!

कैसे महसूस कर पाते मेरी रचनाओं में बसा मेरा शिद्दत वाला इश्क, जो सिर्फ़ तुम्हारे लिये बहताी है मेरी कलम की जुबाँ से..!"

"क्यूँ नहीं छूते तुम्हें मेरे अल्फ़ाज़..? एक-एक शब्द से तुम ही तो उभरते हो, एक-एक मिसरे में तुम ही तो बसते हो, एक एक पन्ने पर तुम्हारा ही राज है, सारी की सारी रचनाएँ तुमको ही समर्पित है..! अरे, सिर्फ़ इतना ही बोल देते की तुम्हारे एहसास पढ़े...१० वे पन्ने पर लिखा तुम्हारे नाम के साथ मेरा नाम पढ़ा, कुछ दर्द पढ़ा, तुम्हारी शिद्दत पढ़ी..! मैं समझ लेती मेरा लिखना सार्थक रहा..! बिना महसूस किए पढ़ा तो तुमने क्या पढ़ा, ख़ाँमख़ाँ नीली स्याही को ज़ाहिर किया मैंने लाल खून जलाने के लिए, मन करता है जला ड़ालूँ कागज़ी एहसास, पर ना तुमने ही कहा, ऐसे ही लिखती रहो... देखती हूँ लिख-लिखकर तुम्हारे दिल तक पहुँच पाती हूँ की नहीं।।"


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