कागज
कागज
कुछ दिनों से मसूद बहुत ही परेशान दिखाई दे रहा था ।चुपचाप आता था और काम करके चला जाता था ।मसूद मेरे घर में माली का काम करता था और पास ही की मिलीजुली आबादी वाली बस्ती में रहता था ।बहुत गरीब था वह ।वो और उसकी पत्नी दोनों ही मिलकर काम करते थे तभी जाकर चार बच्चों का पेट भर पाते थे ।घर में शादी लायक बेटी थी नजमा जो मेरे घर में घर के काम करती थी । आखिरकार एक दिन मैंने सोच में डूबे हुए मसूद से पुछा क्या बात है मसूद क्या सोचते रहते हो ।"साहेब आप तो पढ़े लिखे हैं बड़े अफसर हैं, वो लोग कह रहे हैं कि अब हम लोगों को यहाँ रहने के लिए कागज दिखाने होगे नहीं तो हमें यहाँ इस देश से निकाल दिया जायेगा ।साहेब हमें तो पता ही नहीं है की हम कितनी पीढ़ियों से यहाँ रह रहे हैं ।हम तो यहाँ मजदूरी करने बिहार से आये हैं ,घर बार सब बाढ़ में बह गया अब किसी तरह से गुजर बसर हो रही है ।साहेब हमारे पास तो कोई भी कागज नहीं है । कुछ लोग कह रहे थे की कागज बनवाने के भी पैसे लगेंगे ।हमारे पास तो पैसे भी नहीं है "मसूद बोलै "क्या कोई नया कानून आ गया है हमें इस देश से निकलने का "मसूद बोलै ।"नहीं नहीं ऐसे कोई बात नहीं है घबराने की ""मैंने मसूद को सान्तवना दी "कुछ नहीं होगा "मैंने कहा ।लेकिन मन में मेरी भी दुविधा थी । "मसूद जैसे न जाने कितने लोग है जो अपना पेट किसी तरह पाल रहे हैं क्या होगा इनका "सोचकर में भी थोड़ा परेशान हो गया ।अगली सुबह ऑफिस के लिए तैयार ही हो रहा था की गली में बहुत शोर सुनाई दिया और साथ में कुछ नारे लगाने की भी आवाजें आ रही थीं ।जानने के लिए मैंने घर से बाहर जाना चाहा तो बेटी ने रोक दिया ।"पापा शायद दंगे हो गए हैं आप ऑफिस मत जाइये आज "बेटी बोली ।मसूद और नजमा दोने ही आज काम पर नहीं आये थे ।गली में शोर बढ़ता ही जा रहा था ।डर के कारन पडोसी भी हमारे ही घर आ गए थे । दिन भर ऐसा ही माहौल रहा ।बाहर की कोई भी खबर नहीं थी ।काळा धुंए साथ वाली बस्ती से आता दिखाई दे रहा था ।मसूद की बहुत चिंता हो रही थी एक मेरे साथ के मित्र भी इसी बस्ती में रहते थे ।दुसरे और तीसरे दिन भी ऐसा ही माहोल रहा ।सभी घरों में ही बंद थे ।गली में पुलिस घूम रही थी । टीवी भी नहीं आ रहा था और इंटरनेट भी बंद था ।पांचवे दिन जाकर कुछ स्थिति सामान्य हुई तो घर से मोहल्ले के कुछ दोस्तों के साथ निकला ।चारों तरफ जली हुई दुकाने घर गाड़ियां दिखाई दे रही थी ।कुछ और अंदर बस्ती में जाकर देखा जहाँ मसूद रहता था ।वहां तो कुछ भी नहीं था उसका मकान जला पड़ा था और परिवार का कोई भी सदस्य नहीं था ।आगे जाकर मेरे मित्र का घर था वहां पहुंच कर देखा तो घर के अंदर से जोर जोर से रोने की आवाज़ें आ रही थी और घर के बाहर भीड़ लगी हुई थी ।"क्या हुआ है यहाँ पर गुप्तजी कहाँ हैं? "मैंने पुछा ।तभी अचानक कुर्सी पर निढाल पढ़े गुप्ता जी पर नजर गयी
"क्या हुआ है "मैंने पुछा इनका बेटा दंगों के दिन से ही ऑफिस से नहीं लौटा है कुछ भी पता नहीं चल रहा है "कोई बोला।""अरे पुलिस में रिपोर्ट करो ""मैंने घबराकर कहा और सुनील की सूरत मेरी निगाहों के सामने घूम गयी ।"पुलिस कह रही है की जब पता चलेगा तो बता देंगे
मिसिंग रिपोर्ट लिख ली है ।
मैं घर वापस आ गया पर चिंता के मारे चैन नहीं पड़ रहा था बहुत बुरे बुरे ख्याल मन में आ रहे थे । एक दो दिन में स्तिथि सामान्य होने पर घर से निकला तो पता चला कि थोड़ी दूर पार्क में रिलीफ कैम्प्स लगे हैं ।कदम अपने आप उधर ही चल पढ़े ।नजरें मसूद के परिवार को ढूढ़ रही थीं ।तभी अचानक खाना लेने की लाइन में लगी नजमा पर नजर पड़ी ।उसने भी मुझे देखा और दोड़कर मेरे पास आई और जोर जोर से रोने लगी ।"मसूद कहाँ है मैंने पूछा। "" हॉस्पिटल में है बहुत मारा था उनको भीड़ ने "नजमा बोली हमें तो उन्होंने पड़ोस के घर में छुपा दिया था।घर भी जला दिया उस भीड़ ने "रोते हुए नजमा बोली ।
मैं पता लगाते लगाते अस्पताल पहुंचा तो देखा मसूद लेटा हुआ था और भी बहुत सारे जख्मी लोग पड़े हुए थे वहां पर ।मुझे देखकर वो रोने लगा.
"साहेब घर भी जला दिया अब कहाँ रहेंगे " वो बोला। "घबराओ नहीं अभी सब ठीक हो जायेगा ।" मैं बोला । फिर मैं गुप्तजी के घर की तरफ चल पड़ा ।गली मैं बहुत भीड़ इकठा थी और घर से जोर जोर की रोने की आवाजें आ रही थी ।""क्या हुआ मैंने बेचैनी से पूछा ""।""वो गुप्ता जी के बेटे की डेड बॉडी मिली है ""कोई बोला """"""उस दिन ऑफिस से लौटे वक्त दंगाइयों की भीड़ ने उसे मार डाला ""कोई बोला ।क्या ,,,,,,जैसे विश्वास ही नहीं हुआ मुझे ।किसी तरह घर वापस आया । ये सब क्या है क्या मिलता है लोगों को ये सब करके मैं सोचने लगा ।
ये भीड़ न हिन्दू देखती है न मुस्लमान इस पर तो खून सवार हो जाता है और हम लोग चुपचाप ये सब होते हुए देखते हैं ।कुछ दिन अख़बारों की सुर्खियां बनती हैं ये खबरें और फिर कोई दूसरी खबर इनकी जगह ले लेती है ।पर मसूद और गुप्तजी जैसे अनेक लोगों की जिंदगियां उजड़ जाती हैं हमेशा के लिए, इनको कोई भी नहीं पूछता है ,सरकार भी थोड़ा बहुत पैसा दे कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाती है। मसूद अपने कागज पूरे कर पायेगा या नहीं और गुप्तजी का परिवार इस सदमे से कभी उबर पायेगा क्या यह एक अनुत्तरित प्रश्न है हम सबके सामने ।
