जिंदगी के अनूठे पल
जिंदगी के अनूठे पल
उम्र-ऐ दराज मांग के लायी थी चार दिन जिंदगी के, दो आरजू में कट गए दो इन्तजार में।
देखने में जिंदगी बहुत लम्वी लगती है लेकिन आहिस्ता आहिस्ता इसका सफर कब खत्म हो जाता है पता भी नहीं चलता, इसके सफर की बात करें तो पहले दो पड़ाव आराम से कट जाते हैं जिनमें से पहला पड़ाव बचपन का लाड प्यार से गुजर जाता है और दुसरा जवानी का ताकत व जोरों शोरों से भरा होता है, पता भी नहीं चलता कब गुजर गया, जिंदगी की लास्ट स्टेज में जिसे बुढ़ापा कहा जाता है, बहुत कष्टदायक व दुसरों पर निर्भर करता हुआ जीवन व्यतीत करना पड़ता है, और यह सच्चाई भी है जो पैदा हुआ उसे बुढ़ापा भी जरूर आयेगा बशर्ते उसकी दीर्घ आयू हो, तो आईये आज तनिक विचार बुढ़ापे पर करें, मेरा मानना है, यह स्टेज बुजुर्गों की स्टेज होती है, इस उम्र में उनकी देखवाल की खास जरूरत होती है, जो आजकल के जमाने, में बहुत कम लोग करते हैंजबकि यह सच्चाई है, जिस परिबार में बुजुर्गों का सम्मान नहीं होता उस परिबार में सुख, संतुष्टि और स्वाभिमान नहीं आ सकता और यदि हम परिबार में सुख शान्ति व समृदि स्थायी तौर पर चाहते हैं तो हमें बुजुर्गों का सम्मान करना चाहिए,
देखा जाए हमारे देश की संस्कृति बडी अनुठी रही है, यहां बुजुर्गों को हमेशा घर का मुखिया समझा जाता रहा है और घर परिबार की हर बात
उनसे पूछ कर ही की जाती रही है लेकिन आजकल भारत की संस्कृति पर भी नजर लग चुकी है, आजकल बुजुर्गों का पहले वाला दबदवा नहीं रहा, क्योंकी आजकल देखने व सुनने को यही मिलता है, ज्यादातर बुजुर्ग गुलामी की जिंदगी व्यतीत कर रहे हैं, जो एक चिन्ता का विषय बन चुका है, पहले बुजुर्गों को घर का मुखिया माना जाता रहा है, अक्सर यही कहाबत होती थी करो सेवा खाओ मेवा लेकिन आजकल के बदलते युग में परिबार बिखर रहे हैं, बुजुर्गों का बुरा हाल हो रहा है, आदर और सेवा का भाव कम हो रहा है तथा बुजुर्गों का सत्कार पहले वाला नहीं रहा है, कहने का भाव संस्कारों में कमी आ चुकी है जो एक चिन्ता का विषय है, अगर यही हाल रहा तो वो दिन दूर नही जब हम सड़कों पर दर बदर भटकते मिलेंगे, यह सच है बुढ़ापा तो सभी को आयेगा, यही नहीं बुढ़ापा बिन चाहे मिलने वाली एक मुराद है, फिर क्यों न हम अपने बच्चों के मन में ऐसे संस्कार भरें ताकि वो बुजुर्गों को सम्मान दें, क्योंकी बच्चें बुजुर्गों के खिलोने होते हैं उन्हीं को देख कर वो अपना जीवन व्यतीत करते हैं तथा बच्चों में ही अपना वचपन देखते हैं, देखा जाए जिंदगी भर की कमाई का व्याज बुजुर्ग अपने पोते पोतीयों के रूप में देखते हैं ताकि उनकी देखभाल सही ढंग से हो सके, लेकिन ऐसा होता बहुत कम परिबारों में देखने को मिल रहा है, बुढ़ापा अब तो अभिशाप बन कर रह गया है, क्योंकी परिबारों के परिबार अब टूटते नजर आ रहे हैं जिनके कारण बुजुर्गों को कहीं भी स्थान नहीं मिल पा रहा है, ज्यादातर लोग उनकी संम्पति पर नजर रखते हैं लेकिन उनको कोई भी रखना नहीं चाहता, और बुजुर्ग बेसहारा भूखे प्यासे अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं, इंसान ने इंसानियत खो दी है,
हम सब को आगे आने की जरूरत है ताकि हम हरेक को समझाने का प्रयास करें ताकि आज का बुजुर्ग चैन की सांस ले सके, तथा आने वाली पीड़ी दर पीड़ी इसका भरपूर आनंद ले सके तथा बुढ़ापा अभिशाप न बन कर रह जाए क्योंकी बुढ़ापे में सहारे की जरूरत पड़ती है, जो आजकल बहुत कम देखने को मिल रहा है, बुजुर्ग लोग सब कुछ सहन करते हुए भी बोल नहीं सकते, सच भी है,
जरूरतों की भूख जब पेट में शोर मचाती है तो दिल की ख्वाहिशें चुप्पी साध लेती हैं,
अगर देखा जाए इस धरती पर इंसान ईश्वर की बहुत सुन्दर कला है, हमारे चारों तरफ सुंदर वातावरण है, ईश्वर ने हमें स्वस्थ मस्तिष्क दिया है यह हम पर निर्भर करता है कि हम अपनी शक्ति को कैसे देखते हैं और अपने चारों तरफ के वातावरण को कैसा महसूस करते हैं तथा बनाये रखते हैं तथा अपने, विचारों को कैसे ग्रहण करते हैं, क्या इंसान को इंसान ही समझते हैं, याद रखें जो कार्य हम अपने लिए करते हैं वो हमारे साथ ही चला जायेगा लेकिन जो कार्य या भलाई हम दुसरों के लिए करते हैं वो एक विरासत के रूप में यहीं रह जायेगी, ज्यादातर देखने को मिलता है जरूरत के वक्त हम किसी की सेवा भाव नहीं करते मगर वक्त गुजरने पर अफसोस जताते हैं जिसका कोई मायने नहीं रहता, क्योंकी अफसोस की कोई कीमत अतीत को बदल नहीं सकती और चिंता की कोई कीमत भविष्य को नहीं बदल सकती हमें वर्तमान में अपने कर्मों को सही दिशा में दर्शाना होगा, जीवन में केवल यही देखना जरूरी नहीं की कौन हमसे आगे है या पीछे मगर यह देखना भी जरूरी है कि कौन हमारे साथ है और हम किसके साथ हैं या हमें यहां तक पहुंचाने में किनका योगदान रहा है, इससे शायद हमारे मन में तरूंत अपने बजुर्गों का ख्याल आयेगा जो हमारे बर्तमान के सहयोगी रहे हैं हम जो कुछ भी हैं सब उनकी बदौलत हैं, हमें भी अपने फर्ज व कर्ज को कभी नहीं भूलना चाहिए और हमेशा बुजुर्गों का सम्मान व सेवा का पूरा ध्यान रखना चाहिए, ताकि हमारे बच्चे हमारा बर्तमान देखकर हमारे भविष्य का पूर्ण ध्यान दें तथा अपने में भी अच्छे संस्कार भरें, अन्त में यही कहुंगा,
"आहिस्ता, आहिस्ता चल जिंदगी, अभी कुछ फर्ज निभाना बाकी हैं, कुछ कर्ज चुकाना बाकी हैं, कुछ दर्द मिटाना बाकी हैं, कुछ रिश्ते बनके टूट गए, कुछ जुड़ते जुड़ते छूट गए"।