Sudershan kumar sharma

Inspirational

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Sudershan kumar sharma

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कर्म और विधि का विधान

कर्म और विधि का विधान

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अगर कर्म के सिद्धांत की बात करें, कर्म का यही सिद्धांत है कि जो कर्म के फल का कारण बनता है उसे ही उसका फल भोगना पड़ता है तथा उसे किसी तरह कि राहत नहीं मिलती यही ईश्वरीय न्याय है, देखा गया है कर्म करने के लिए जीव स्वतंत्र होता है लेकिन फल भोगने के लिए हिचकचाता है, लेकिन सच मानो कर्म का सिद्धांत यह कहता है जो जैसा कर्म करेगा बैसा ही फल भोगेगा, यह भी सत्य है कि जीवन जीते हुए कोई भी कर्म से भाग नहीं सकता, लेकिन कर्म जैसा भी हो उसका हिसाब होता ही है, 

सर्वप्रथम कर्म का हिसाब मनुष्य स्वंय करता है क्योंकि कर्म करते वक्त हमारी आत्मा खुद गवाही देती है कि कर्म सही है या गलत लेकिन फिर भी हम ऐसा कर्म कर ही लेते हैं जो हमारे लाभ के लिए हो लेकिन यह नहीं याद रखते की ईश्वर की अदालत में कभी पल्स मानिस नहीं होता वो हिसाब बराबर रखता है, और विधि का विधान कर्मों का फल अवश्य देता है, जैसे श्रवण कुमार के माता पिता को जो वियोग उससे विछुड़ने का हुआ था वोही वियोग राजा दशरथ बनकर राम से विछुड़ने का हुआ , जैसी करनी बैसी भरनी इस वाक्य में साफ झलकती है, 

सच कहा है, कर्म की गठरी लाद के जग में फिरे इंसान, जैसा करे वैसा भरे विधि का यही विधान, सच यही है कर्मों का फल क्या मिलेगा इसका न्याय विधाता ही करते हैं, उनको किसी से भी मोह लोभ नहीं है, इसलिए हर मानव को कर्म करते वक्त यह जरूर सोच लेना चाहिए कि जो मैं कर रहा हूँ उसका फल मुझे कैसा मिलेगा, ऐसा करने से हम अपना हर कार्य सही ढंग से करेंगे और पाप से मुक्त रहेंगे, यह मत भूलिए बुराई थोड़ी देर के लिए बहुत अच्छी लगती है लेकिन उसका खामियाजा सभी को भुगतना पड़ता है, एक छोटी सी कहानी प्रस्तुत करने जा रहा हुँ कि करनी का फल कैसे सभी को भुगतना पड़ता है, 

एकबार नारद जी भ्रमण करते करते विष्णु भगवान के पास जा रहे थे तो उन्हें रास्ते में दो नदीयां, दो वृक्ष तथा दो गायें मिलीं, जिनका जीवन अजीब सा था, नदीयां जल से परिपूर्ण थीं किन्तु कोई भी उनके जल का इस्तेमाल नहीं कर सकता था, इसी तरह दोनों वृक्ष फलों से लदे हुए थे लेकिन कोई भी उनका फल नहीं खा सकता था, दोनों गायें दुधारू थीं लेकिन कोई भी उनका दूध नहीं पी सकता था यहाँ तक की उनके बछड़े भी, उन तीनों ने नारद जी से विनती की हमारी ऐसी हालत क्यों है जरूर भगवान से सवाल करना, नारद जी ने भगवान जी से मुलाकात करके तीनों के विषय में जब पूछा तो तीनों को उनकी करनी का फल ही मिला था, भगवान ने कहा दोनों नदीयां सगी बहनें थी और उनके पास बहुत धन दौलत तो थी लेकिन वो अपना धन केवल अपने रिश्तेदारों को ही दान करती थीं ताकि उनका नाम हो सभी उनकी प्रशंसा करें जब कि उनके धन की जिनको जरुरत थी नहीं मिला, उनकी इस मूढ़ता के कारण यह दण्ड मिला है, जबकि दोनों पेड़ जो फल से भरपूर थे वो पिछले जन्म में, विद्वान थे लेकिन अपनी विद्या का सही इस्तेमाल नहीं करते थे सिर्फ अपने यश के लिए धन लेकर विद्या देते थे लेकिन विद्या का विस्तार सही ढंग से नहीं कर पाये उसी कारण इनको यह कष्ट मिला है कि आपके पास सबकुछ होते हुए भी आपको कोई नहीं पूछेगा, अब गाये बछड़े की बात सुनो, यह दोनों पहले जन्म में किसी लंगर में महिलाओं के रूप में खाना परोसा करती थीं और यह खाना देते भेदभाव करती थीं और आपने चेहतों को ही भर पेट खाना देती थीं, उसी कारण इनको यह सजा दी है कि आपके आपने चेहते भी आपके दूध का लाभ नहीं उठा सकेंगे, नारद जी ने भगवान जी का शुक्रिया अदा किया और सारी बात तीनों को बताई और कहा आप सभी का तभी उदार होगा जब तक आप अपने कर्मों का फल नहीं भोग लेते, कहने का भाव की अपनी करनी का फल भोगना ही पड़ता है, 

इसलिए विधि का विधान कर्मों पर निर्भर करता है अतः हम सब को अपने कर्म सही ढंग से निभाने चाहिए। 



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