भक्ति और कर्म
भक्ति और कर्म
अगर भक्ति और कर्म की बात की जाए तो प्रभु की भक्ति करने के लिए भी अनेक कर्म हैं, अलग अलग भक्त अलग नियम के अनुसार या अलग अलग कर्म के अनुसार प्रभु की भक्ति करते हैं, यह सभी नियम एक ही लक्ष्य को पाने की इच्छा के लिए किए जाते हैं वो है प्रभु भक्ति, देखा जाए प्रभु को पाने के अनेक रास्ते हैं लेकिन कौन सा रास्ता प्रभु भक्ति को पाने के लिए उत्तम माना गया है, यह सब भक्त के नियमों पर निर्भर करता है, आईये आज का रूख प्रभु भक्ति को और करते हैं देखते हैं कौन से नियम अपना कर भगवान जी ज्यादा प्रसन्न होते हैं वैसे तो भगवान को अपना शिष्य हमेशा प्यारा ही लगता है और वो अपने सच्चे भक्त को आँच भी नहीं आने देते लेकिन सच्ची भक्ति क्या है इसे कैसे अपनाया जा सकता है तो इस पर बात करते हैं,
देखा जाए भक्ति के चार मुख्य स्तंभ हैं जिनमें श्रद्धा, विश्वास, प्रेम और समर्पण आते हैं, जिस मनुष्य के अन्दर यह चार गुण विराजमान हैं वो प्रभु का सच्चा व उतम भक्त कहलाता है, वास्तव में निस्वार्थ भाव से ईश्वर भक्ति करना ही सच्ची भक्ति है तथा भगवान का वोही सच्चा भक्त होता है जो भगवान से प्रेम करता है और सच्चे हृदय से उसे याद करता है तथा भगवान से कुछ नहीं मांगता और यही चाहता हो की उसकी सच्ची लगन प्रभु से लगी रहे, यहाँ तक श्रद्धा की बात है, यह एक प्रकार की मनोवृत्ति है जिसमें किसी पुज्य व्यक्ति के प्रति भक्तिपूर्वक विश्वास के साथ उच्च और पुज्य भाव उतपन्न होता है, देखा जाए श्रद्धा जिस किसी के मन में होती है वो विश्वास और आस्था से परिपूर्ण होता है तथा उच्च ज्ञान को प्राप्त करता है,
दुसरी तरफ विश्वास ही प्रेम की कुन्जी है, इसलिए प्रभु से प्रेम पाने से पहले विश्वास बहुत जरूरी है,
इसी तरह से समर्पण करना भी भक्ति के लिए बहुत जरूरी है, अपने मन को समर्पण करना यानि अपने अंहकार को त्यागना तथा अपने तन मन को परमात्मा के प्रति समर्पण करना, झुक जाना तथा भक्ति में लीन हो जाना होता है कहने का भाव जिस व्यक्ति के अंदर यह सारी भावनाएँ हैं वो प्रभु के करीब माना जाता है,
अन्त में यही कहुंगा की प्रभु भक्ति के लिए भी कुछ नियम हैं, जो मनुष्य उन नियमों का पालन करते हुए भक्ति करता है वोही सच्चा व पहुँचा हुआ भक्त कहलाता है और परम परमेस्वर का प्यारा बन जाता है, हम सभी को चाहिए की प्रभु की भक्ति को नियम अनुसार करना चाहिए ताकि हम एक अच्छे व सच्चे भक्त बन सकें।