कर्तव्य या कर्म
कर्तव्य या कर्म
मनुष्य के कर्तव्य की अगर बात करें तो सबसे पहला कर्तव्य समाज के प्रति है, जिसे हर प्राणी को उसे भली भाँति निभाना चाहिए, इसके अतिरिक्त अपने परिवार के सदस्यों की जिम्मेदारियों को भी बाखूबी से निभाना चाहिए तथा अपने पद के अनुसार जो कर्तव्य मिला हो उसे सही दिशा में करना वा करवाने में अहम भूमिका निभाते हुए अपना फर्ज वा कर्ज पूरा करना भी एक आदर्श व्यक्ति की निशानी है,
यह अटूट सत्य है कि जीवन में लोग अक्सर कर्तव्य भूल जाते हैं लेकिन अपने, अधिकारों को याद रखते हैं, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति को कोई न कोई कर्तव्य जरूर मिला होता है और उस पर सही उतरना वा सही दिशा में ले जाना उसका इंसानी फर्ज बनता है लेकिन बहुत कम लोग इसे बखूबी से निभाते हैं जिसका असर आम व्यक्ति के ऊपर पड़ता है, और इंसानियत का मोल बहुत कम आंकने को मिलता है, देखा जाए कर्तव्य कोई ऐसी वस्तु नहीं है जिसे माप तोल के देखा जाए मगर यह इंसान की नियत पर तय करता है कि वो अपने कर्तव्य को कितनी महानता से करता है, तथा उसकी बुद्धि और हृदय को क्या अच्छा लगता है, लेकिन इंसानियत यही कहती है कि अपने जीवन में मिली हर जिम्मेदारी को अपना परम धर्म समझ कर पूरा करना चाहिए नहीं तो ईश्वर उसे कभी माफ नहीं करेगा,
यह सत्य है कि जब व्यक्ति स्वंय का आकलन स्वयं से करके अपनी अन्तरआत्मा द्वारा कोई कार्य करता है, तो वो कार्य शुभ ही होता है और उसका परिणाम भी अच्छा होता है, और उसकी आवाज सीधी परम परमेस्वर के घर पर पहुँचती है,
क्योंकि जीवों पर दया करना मनुष्य का परम कर्तव्य माना गया है और अंहकार करना मनुष्य की बड़ी भूल हैै,
यह मत भूलें की कर्तव्य एक अहसास है जो इंसान अपने अंदर महसूस करता है लेकिन जिम्मेदारी एक बोझ है जो आप अपने आप उठाते हैं, या आपको उठाने के लिए मजबूर किया जाता है,
अगर तनिक सोचा जाए कर्तव्य पालन करना ही जीवन का सार है और यही भगवान् की पूजा भी
लेकिन हम अपने कर्तव्य को किस रूप से करते हैं और किस हद तक अंजाम देते हैं यह बात हम पर निर्भर करती है,
यह मत भूलना जो मनुष्य अपने कर्तव्यों को सही ढंग से निभाता है उस सदाचारी मनुष्य को कभी दुख नही पहुँच सकता क्योंकि वो ईश्वर की इच्छा अनुसार कार्य करता है, और ईश्वर सदैव उस पर दयालू रहते हैं,
आखिर कार यही कहुँगा कि समाज के हर व्यक्ति का धर्म है कि वो आने वाली पीढ़ी दर पीढ़ी को कर्तव्य की महिमा व उससे होने वाले समाजिक लाभों एंव बदलावों के विषय में जानकारी दे तथा खुद भी एक उदाहरण बन कर दिखाऐ जिसका लाभ हमारे राष्ट्र व मानव जाति को मिल सके, यही मानव का परम कर्तव्य है जो मानव कल्याण के लिए हितकारी वा लाभकारी भी है इससे बड़ा न कोई पुण्य है ना यज्ञ।