दया, धर्म और कर्म
दया, धर्म और कर्म
"दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान, तुलसी दया न छोड़िये जब तक लागि घट में प्राण"।
दयालुता की बात करें तो दया एक ऐसा दैवी गुण है जिस पर सभी धर्म स्थिर हैं, क्योंकि दया बगैर कोई भी धर्म टिक नहीं सकता, कहने का मतलब दया ही अपने आप में सबसे बड़ा धर्म है, जिसको अपनाने से आत्म विश्वास बड़ता है तथा समस्त अवगुण जैसे ईर्ष्या, बैर विरोध, हिंसा इत्यादि शांत हो जाते हैं, यह भगवान का दिव्य गुण है जो चन्द लोगों के पास होता है, और दया दृष्टि से किया गया हर कर्म बहुत ही फलदायी होता है, तथा इससे सभी का भला होता है,
दयालुता एक ऐसा गुण है जिससे शत्रु भी मित्र बन जाते हैं,
दया व करूणा भरा कार्य का फल सीधा भगवान की तरफ से मिलता है और जिससे सब का भला होता है तथा ऐसे मनुष्य भगवान के लिए सदा , सदा के लिए प्रिय हो जाते हैं, व्यास जी ने सच कहा है,
सब प्राणियों के प्रति दया का भाव रखना ईश्वर तक ,पहुँचने का सबसे सरल मार्ग है,
यही नहीं दया का दान सबसे उत्तम दान माना गया है, यह सुधार का एक शक्तिशाली माध्यम है, दया मित्रता का पात्र है जो संतोष, प्रसन्नता, उत्साह, पैदा करती है जिससे किसी भी मुसीबत पर काबू पाया जा सकता है,
जैसे परमात्मा से हम दया की प्राथना करते हैं, इसी प्रकार इंसान का भी कर्तव्य बनता है कि वो भी दुसरों पर दया का भाव बनाये रखे जिससे दयालुता बनी रहे क्योंकि धार्मिक होने के लिए दया सबसे पहली शर्त है,
दया वो भाषा है जिसे बहरा सुन सकता है और अन्धा देख सकता है तथा उनके प्रति किया गया प्रत्येक कर्म, परमात्मा की आवाज बन कर निकलता है, क्योंकि यहाँ दया होती है वहाँ धर्म भी होता है इसलिए तो कहा है,
"यहाँ दया तहाँ धर्म,
यहाँ लोभ वहाँ पाप,
यहाँ क्रोध वहाँ काल
यहाँ क्षमा , वहाँ प्रभु आप"
इसलिए हम अपने कर्मों में करूणा को लाकर ही दयालुता का भाव जागृत कर सकते हैं,
आखिरकार यही कहुंगा कि दयालुता जीवन में सबसे सुखद अनुभवों में से एक है,
दयालुता एक ऐसी चीज है जो दुसरे व्यक्ति की आत्मा में प्रवेश करती है और अच्छे कर्मों का उदाहरण पेश करती है, इसलिए दयालुता ही मानव के कर्मों का सबसे अनुठा गुण है,
सच भी है, दया ही कर्म है और कर्म ही पूजा है तथा अच्छे कर्मों का सबसे बेहतर गुण दयालुता का भाव सदगुण है, इसे बनाये रखने चाहिए ताकि हम एक अच्छे इंसान की श्रेणी में आ सकें और हमारे कर्म हमेशा फलदायी रहें जिससे हर प्राणी का भी भला हो सके यही हमारा परम धर्म तथा कर्म गिना जा सकेगा।