जिंदगी के बिगड़ते सुधरते लम्हे
जिंदगी के बिगड़ते सुधरते लम्हे
"जवानी की जिद्द भी खूबसूरत होती है, एक उम्र के बाद समझौता करना ही पड़ता है"।
जिंदगी एक खूबसूरत लम्हा है, लेकिन कईबार इंसान इसे खुद ही गमों भरी दास्तान में तब्दील कर देता है, हंसी खेलती दूनिया उजाड़ लेता है, कारण कुछ भी हो, छोटी सी बात लम्वी होती जाती है और वाद में एक विवाद सा बन जाता है, अगर उसे संभाला न जाए तो सारी उम्र पछतावे में चली जाती है और हासिल कुछ भी नहीं होता, कहने का भाव की आजकल के दौर में हरेक इंसान अपना दबदवा बनाना चाहता है, छोटा दिखने को कोई भी तैयार नहीं होता, अगर गुस्से में किसी से एक लफ्ज भी निकल जाए दुसरा जब तक चार न सुनाऐ तो उसे खाना तक हज्म नहीं होता, ऐसा ज्यादातौर पर जवानी के दौर में ही देखा जाता है, क्योंकी इस दौर में, ताकत, गुस्सा जोरों पर होता है और सहन शक्ति बहुत कम होती है, बात झगड़े तक पहुंच जाती है, और अपनी चारदिवारी को भी पार कर लेती है, ऐसे में बात का बतंगड़ बन जाता है जिसे संभलाना मुश्किल हो जाता है, जब लोगों तक बात पहुंचती है तो उसमें इतना उछाल आ जाता है कि रिलेशन तक खत्म हो जाते हैं, जरा सोचिए अगर दो मे से एक में सहनशक्ति हो तो बात बहीं रूक सकती है, जिससे जिंदगी भर के कलेश से बचा जा सकता है, लेकिन यह तभी संभव हो सकता है जब हम अंहकार को त्यागें तथा सहनशीलता से रहें व छोटी मोटी बात पर समझौता कर लें, मेरे ख्याल में समझौता एक ऐसा हुनर है जो गई हुई जिंदगी को वापिस ला सकता है, मेरे ख्याल में जीवन में वक्त के साथ साथ विचारों में बदलाव होना जरूरी है, क्योंकी कईबार समझौते के असार बनते हैं लेकिन हमारा स्वभाव व बिचार ऐसा करने नहीं देते, जिसके कारण जिंदगी भर पछताना पड़ता है, समझौते से रिश्ता बच सकता है और नफरत मिटती है, ऐसी नौवत तभी आती है, जब दो पक्षों के बीच आपसी विवाद उतपन्न होता है फिर उस विवाद को हल करने का शेष यही तरीका रह जाता है, और यह तभी तोड़ चढ़ सकता है जब दोनों पक्ष पुराने विवादों को छोड़कर नया शान्तिपूर्ण जीवन शुरू करें, मेरे ख्याल में हालात के साथ समझौता करने में समझदारी है, यह तभी संभव है जब मनुष्य अंहकार को त्याग दे, क्योंकी यह हालातों के हारने के बाद ही हो सकता है, जब किसी के हाथ से सब चला जाता है तो उसे जिंदगी के साथ समझौता करना पड़ता है, लेकिन यह सच है समझौता करने वाले हमेशा कामयाब रहते हैं, और हालात के साथ समझौता करना ही समझदारी भी है, इसी से विवाद का अन्त होता है, इससे फायदे ज्यादा और नुक्सान बहुत कम होते हैं,
इसलिए कभी कभी हालातों के देखकर अपनी गलती स्वीकार कर लेनी चाहिए, अगर न भी हो तो रिश्ता देख कर कहने में शर्माना नहीं चाहिए कि मेरी ही गलती थी ऐसा करने से हालात काबू हो सकते हैं, कहा भी गया है,
"भूल सभी से होती आई, कौन है जिसने न ठोकर खाई,
भूलों से सिखे जो मंजिल उसने पाई, समझौता गमों से कर लो"।
अगर हम जिंदगी की शुरूआत समझौतों से करना सीख जांए तो हमारी जिंदगी लगभग खुशियों भरी रहेगी, हमारा परिवार, समाज, एंव सगे सबंधी सब के सब खुश रहेगे, तथा हर कार्य समय अनुसार ही होगा तथा कामयाबी के अबसर भी बढेंगे बशर्ते हमें हालातों के साथ समझौता करना आना चाहिए, अगर रावण ने राम जी के साथ समझौता किया होता जब अंगद जी को समझौते के लिए भेजा था तो उसके वंश का कभी नाश नहीं होता, इसी तरह से अगर दुर्योधन ने श्री कृष्ण जी की बात मान ली होती जब वो शान्तिदूत बन कर आये थे तो महाभारत का युद्ध कभी न होता कहने का भाव हमें अपनी ऐंठ में रहकर हालातों को बद से बदतर नहीं बनाना चाहिए केवल सुधार की तरफ लाने की कोशिश करनी चाहिए, इसलिए समझौता करवाना वा होना बहुत अत्छी बात है, जिससे हमारा व हमारे समाज का भला हो सके, जलती में घी डाल कर तमाशा देखना या किसी के मन मे नफरत फैलाने से बेहतर है किसी को समझौते की पहल करने के लिए कहा जाए यही एक इन्सानी फर्ज व दर्द भी है हां अगर हमारे चरित्र या हमारे स्वाभिमान पर ठेस पहुंचे तो ऐसे में इसे नहीं अपनाना चाहिए, अन्त में यही कहुंगा, हमें अपनी वाणी, विचारों व विवादों पर हमेशा सुधार लाना चाहिए ताकि ऐसी नौवत न आए लेकिन अगर कभी ऐसे हालात बन भी जांए तो उन्हें तरुंत समझौता करके निपटा लेना चाहिए,
सच भी है
"लड़ते, लड़ते थक गए, जज्बातों से, चलो समझौता कर लेते हैं हालातों से"।